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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, December 28, 2007

जब मोबाइल पर क्लर्क की जगह बोस आया

अपने ऑफिस में बोस से बात
करते हुए क्लर्क के पास मोबाइल पर
उसकी गर्लफ्रेंड का फोन आया
क्लर्क ने उससे कहा
'अभी मीटिंग में बिजी हूँ
बाद में फोन करना
मेरे पास ऐक अर्जेंट काम आया'
गर्लफ्रेंड ने रखा फोन और फिर बोस के
हुक्म पर वह निकला बाहर
अपना मोबाइल वहीं भूल आया

आते ही लग गया अपने काम में
उधर फिर बजी घंटी
मोबाइल उसके बोस ने उठाया
गर्लफ्रेंड ने कहा
''जानू ऐसा भी क्या काम है
जो मुझसे बात करने की फुर्सत नहीं है
तुम बहुत निष्ठुर हो
इससे तो अच्छा बोस न होकर
कोई क्लर्क होते
काम में इतने बिजी तो नही होते
इतना ऊंचा पद तुमने क्यों पाया'

इधर बोस भी युवा था उसे
अपने क्लर्क पर गुस्सा आया
वह बोला
'जिसका है यह मोबाइल वह तो क्लर्क है
मैं उसका बॉस बोल रहा हूँ
अगर बॉस समझ कर प्रेम किया है
तो बन्दा खिदमत में हाजिर है
वह क्लर्क है उसे तो मैंने काम में फंसाया'

गर्लफ्रेंड बोली
'उसने मुझे अपने बोस होने का
यकीन दिलाकर मुझे फंसाया
मैं नहीं कर सकती एक क्लर्क से प्यार
झूठा हो तो बिल्कुल नहीं
मुझे तुम्हारा प्रपोजल रास आया'

बोस ने किया अपना कमरा बंद और
चला गया दौरे के बहाने
दो घंटे बाद लॉट आया
उसके पीछे क्लर्क भी आया
और बोला
'सर मैं अपना मोबाइल आपके कमरे में
भूलकर चला गया था
आपके जाने के बाद मुझे याद आया'

बोस ने दो मोबाइल उसकी तरफ
बढाते हुए कहा
'तुम एक नहीं दो मोबाइल लो
एक तुम्हारा और एक उसे जो दिया तोहफे में
पचास रूपये के टाक टाइम की सिम वाला
सस्ता-घटिया यह मोबाइल
तुम्हारे जाने के बाद उसका फोन आया
बोस मैं हूँ तुम क्लर्क
जब मैंने उसे बताया
उसे तुम पर गुस्सा आया
जब मैंने उसे दिया प्रपोजल
वह खुश हो गयी
मैं अभी उससे मिलकर लौटा हूँ
उसने तुम्हारा मोबाइल भी लौटाया'

दुखी क्लर्क बाहर आया और
ऑफिस की छत की तरफ
देखकर चिल्लाया
अरे यह भी भला प्रेम है
या मोबाइल हो गया है
रोंग नंबर तो इतने आते हैं
पर मेरे मोबाइल पर तो रोंग पर्सन आया
अभी तक मैं अपने प्रेम के
मोबाइल नंबर बदलता था
उसने मेरे शाश्वत प्रेम का
मोबाइल नंबर ही बदलवाया
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1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

पुनः प्रकाशित व्यंग्य रचना को पढं कर अच्छा लगा।

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