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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, October 31, 2014

इतिहास और सत्य-हिन्दी कविता(history and trurh-hindi poem,ithas aur satya-hindi poem)



इतिहास में लिखा
हर शब्द सत्य है
यह कौन कहता है।

अस्त्र शस्त्रों से
लड़े गये युद्ध
विजेता और पराजित
बड़े वीरों का
प्रसिद्ध हुआ नाम
मगर रक्त बहाने वालों
आम इंसानों की चर्चा  पर
हर कोई मौन रहता है।

कहें दीपक बापू बुद्धि की सिद्धि से
आज उगे फल को
कल बोया ही जानो,
आज बो रहे हो
वह कल सामने होगा
यह भी मानो,
घटना और पात्र हर बार
पर्दे पर बदल जाते हैं,
मगयर भूमिका  एक जैसी पाते हैं,
इतिहास के कूड़ेदान में
अमृत ढूंढनें के लिये मत रुको
समय एक नदी की तरह है
वही जल भरो
सामने जो नदी में मौन बहता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, October 25, 2014

दीपावली और स्वच्छता अभियान-हिन्दी हास्य कविता(deepawali aur swachchhta abhiyan-hindi comedy poem)



दीपावली बाद बधाई देने
घर आया फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू, सुना है तुमने
केवल दिये जलाकर
सूखी दिवाली मनाई,
पटाखों से दूर रहे
न मिठाई किसी की  चखी
न किसी को चखाई।’’

सुनकर दीपक बापू बोले
‘‘यार, होली पर नकली रंग की तरह
दिवाली पर मिठाई से भी
डर लगने लगा है,
आनंद के पीछे
बीमारी आने का भय
हृदय में घर करने लगा है,
देश में पंचवर्षीय स्वच्छता अभियान
वैसे ही धीमी गति से चल रहा है,
इस पर पटाखों से प्रदूषण
हवाओं में ज्यादा अच्छी तरह पल रहा है,
लोगों को कोई नहीं  परवाह,
घर साफ कर कचरे से
सजा देते सभी की राह,
त्यौहार से तो अब आम दिन
ज्यादा अच्छे लगते हैं,
आता कोई विशेष दिवस
यह टीवी चैनले वाले
चिंतायें जताते
समझ में नहीं आता
हम सुख के पते पर
दुुःख को आमंत्रण भेजकर
किसे ठगते हैं,
बाहर से आकर्षक
अंदर से अस्वस्थ शरीर लेकर
लोग आनंद ढूंढने जाते हैं,
 जो पा नहीं सकते अंदर
वह बाहर भी नहीं लूट पाते हैं,
इसलिये हमने देह के साथ
देश में भी रखने के लिये सफाई,
अपने मन पर नियंत्रण कर ही
यह दीपावली बनाई।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
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Sunday, October 19, 2014

मस्तिष्क में चिंताओं के धागे-हिन्दी कविता(mastishka mein chintaon ke dhage-hindi )



poem)
सभी इंसान
अपने भविष्य के लिये
सपने बुनते हैं।

अंतर इतना है
समझदार अपनी औकात देखकर
रास्ते पर चलते
नासमझ अपनी ताकत से
ज्यादा लक्ष्य चुनते हैं।

कहें दीपक बापू विकास का रथ
उधार और मदद के पहियों से
बढ़ रहा आगे,
सामान घर में भरा
मस्तिष्क में उलझे
चिंताओं के धागे,
चमकते चेहरों के मुख से भी
अंतरंग क्षणों में
लड़खड़ाते स्वर से
टूटते शब्दों को हम सुनते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Monday, October 6, 2014

वचन और चरित्र में अंतर-हिन्दी कविता(vachan aur charitra mein antar-hindi poem)



सभी के श्रीमुख से
श्रेष्ठ वचन
हर चर्चा में
बाहर निकल ही आते हैं।

जिसके भी चरित्र पर
कोई प्रश्न उठाओ
निजता में छिप जाते हैं।

कहें दीपक बापू शब्दों के खेल में
सभी पेशेवर खिलाड़ी लगते हैं,
तालियां बजवाने के लिये
महफिलों में तकते हैं,
व्यसन से बचने की राय
देते हैं जो ऊंची आवाज में
शराब की एक बोतल से
निकली कुछ बूंदों में बहकर
अपनी औकात पर आ जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Wednesday, October 1, 2014

चेतना और जाग्रति-हिन्दी व्यंग्य कविता(chetna aur jagrati-hindi vyangya kavita)





सुख सुविधाओं के गुलाम
ज़माने में बदलाव लाने के
नारे लगाते हैं।

अपनी चेतना रख दी गिरवी
राजमहलों में रहकर
पूरे समाज को वही जगाने आते हैं।

कहें दीपक बापू हाथ की सफाई में
महारत जिन्होंने हासिल कर लिया,
वही रोशनी का वादा करते
रखकर सड़क पर खाली दिया,
रौशनी का चलाते काला बाज़ार
गलियों में प्रकाश करने का
दावा वही जताते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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