tag:blogger.com,1999:blog-6215700670796750066.post506780436726164130..comments2023-10-03T14:11:50.485+05:30Comments on दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका: लफ्जों की लड़ाई में लफ्ज ही तलवार बन पाते-हिंदी शायरीदीपक भारतदीपhttp://www.blogger.com/profile/06331176241165302969noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6215700670796750066.post-12511963554290961172009-05-24T06:31:00.433+05:302009-05-24T06:31:00.433+05:30आप की शायिरी के मिज़ाज की शान मे कुछ ...
मैं ’ बु...आप की शायिरी के मिज़ाज की शान मे कुछ ...<br /><br />मैं ’ बुद्धिजीवी ’ हूं !<br /><br />कलम उठाऊं या तलवार <br />कौन सी क्रान्ति कर लून्गा ?<br />मैं भी व्यवस्था का अन्ग <br />अपनी ही बचा रहा हूं<br />बच जाये बहुत है !<br /><br />तो सत्ता की ?<br />क्या तो मार दूंगा.......<br />..................................या क्या उखाड लूंगा ?? <br /><br /><br />(अर्शा पहले ’इमरजेन्सी’ के समय लिखी थी . कहीं छप भी गयी थी ! :)..........)RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.com