tag:blogger.com,1999:blog-6215700670796750066.post521757856083898747..comments2023-10-03T14:11:50.485+05:30Comments on दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका: न्यूड होटल को हिंदी में क्या कहें? वस्त्रहीन भोजनालय! (हास्य-व्यंग्य)दीपक भारतदीपhttp://www.blogger.com/profile/06331176241165302969noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6215700670796750066.post-59997607732303589852009-05-24T06:10:33.987+05:302009-05-24T06:10:33.987+05:30प्रिय दीपक ’
पता नहीं ये बात खबर कैसे बन गयी ?
यह ...प्रिय दीपक ’<br />पता नहीं ये बात खबर कैसे बन गयी ?<br />यह तो अर्से से है . यहां तक की लम्बे समुद्रतट , भोजनालय और होटल एक साथ . वस्त्रहीन होने के बाद ही प्रवेष .वहां रहने तक . फ़िर जाते समय सामान्य .<br /><br />कौतुहल वश , केलिफ़ोर्निया मे , ऐसी ही एक जगह मैं भी गुज़ार आया हूं . इसके एक फ़ल्सफ़े पर आपने अपने अन्दाज़ मे कह ही दिया है . विश्वास करिये सिर्फ़ नग्नता के चलते यौन प्रवेग तो मैंने नहीं महसूस की , ना किसी मे असामान्य दिखी . यही जानने गया भी था . मह्सूस तो यह हुआ कि ऐसी सामान्य जगहें जो चलन मे हैं वहां उल्टे ज्यादा यौन उद्दीपन मह्सूस होता है .<br />हमारे वश्त्र ही हमे दूसरों से कितना अलग करते हैं , <br />बना देते हैं ? ( अक्सर क्रितिमता से ) . उसके बिना कितनी सामान्यता का अहसास होता है .<br />हां फ़िर भी , रन्ग रूप , कद काठी , उम्र आदि तो बने ही रहते हैं , जैसे सामान्य . मेरी एक दिक्कत यह थी कि अमेरिकनों ( गोरे काले सभी ) के बीच एक भारतीय , मैं कैसा लगूंगा और दूसरों का व्यवहार कैसा होगा ? सुखद आस्चर्य यह था कि उनके मन मे अविश्वसनीय कौतुहल वैसा ही देखा , बहुत स्नेह्मय , दोस्ताना , जैसे मेरे मन मे था . बहुत सारे दुनियां के अलग जगहों के थे और अन्ग्रेजी नहीं बोलते थे . काफ़ी जापानी थे . शायद उनमे से बहुत धनी भी रहे हों या गरीब ही ( वहां के हिसाब से ) ,सिर्फ़ मैं अन्दाज़ा ही लगा सकता था . हां ग्यान और सोच का मान्वीय द्रिस्तिकोण भी दिखा और बेफ़िक्री भी .<br />कुछ अन्तर चर्चा मे यह देख आस्चर्य हुआ कि कुछ तो खजुराहो और चारवाकीय दर्शन पर ,मुझसे तो ज्यादा ही जानते थे . व्यक्त भी किया कि ऐसे देश मे वर्तमान ’ नैतिक ’ जीवन शैली कैसे रास्ता पार कर गयी . ( उन्हें हमारे ही नहीं दुनियां के बहुत सारे जीवन शैलियों के ’ बाह्य आवरण ’ के बारे मे पता है .)<br />विश्वास करें , वहां जैसा परस्पर शांत सह अस्तित्व ’बाहर’ नही मिलता .<br /><br />सोचने का विषय तो है ही ’ नग्नता ’ !! :)<br /><br />भले जीने के दिन दूर हों . या भारत और दुनिया के ना जाने कितने मज़्बूर हों नग्न रहने के लिये !RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.com