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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, November 28, 2008

कशमकश-हिंदी शायरी

जब हकीकतें होती बहुत कड़वी
वह मीठे सपनों के टूटने की
चिंता किसी को नहीं सताती
जहां आंखें देखती हैं
हादसे दर हादसे
वहां खूबसूरत ख्वाब देखने की
सोच भला दिमाग में कहा आती

दर्द से लड़ते आंसू सूख गये है जिसके
हादसों पर उसकी हंसी को मजाक नहीं कहना
उसकी बेरुखी को जज्बातों से परे नही समझना
कई लोग रोकर इतना थक जाते
कि हंसकर ही दर्द से दूर हो पाते
जिक्र नहीं करते वह लोग अपनी कहानी
क्योंकि वह हो जाती उनके लिये पुरानी
रोकर भी जमाना ने क्या पाता है
जो लोग जान जाते हैं
अपने दिल में बहने वाले आंसू वह छिपाते हैं
इसलिये उनकी कशकमश
शायरी बन जाती
शब्दों में खूबसूरती या दर्द न भी हो तो क्या
एक कड़वे सच का बयान तो बन जाती
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Monday, November 24, 2008

बिक जाते हैं हर अगले पल जो-हिंदी शायरी

सिद्धांतों का तो बस नाम होता है
पर्दे के पीछे तो पैसे का काम होता है
लोगों की एकता के लिये करते हैं वह शो
गाते हैं बस उसका नाम, जेब भरता है जो

इशारों को समझा करो
लिख गया है शब्द, उसे पढ़ा करो
दिल बहलाने के लिये इंसानों के जज्बात से
खेलते हैं सौदागर
जहां से आती है दौलत की सौगात
उसका ही गुणगान करते हैं वो
परदेसियों के इशारों पर देश को नचाते हैं वो
अपनों से दिल के रिश्ते का दिखावा
खूब वह करते हैं
नजरें बाहर लगाये रहते हैं वो

दिखा रहे हैं वह
उसे अनदेखा कर डालो नजर उस पर
छिपा रहे हैं जो
आंखों में कुछ और दिखाते
दिल में किसी और को बसाते
वफा की बात करते हैं वह हमेशा
बिक जाते हैं हर अगले पल जो

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Saturday, November 15, 2008

सवाल कभी उन्होंने किया नहीं-व्यंग्य शायरी

दिन के सभी पल गुजारे जिन के साथ
रात की बैचेनी पर कभी
सवाल कभी उन्होंने किया नहीं
दिन में ही जब बैचेनी हुई तो
उनकी आंखों से दूर थे
पर फिर उन्होंने याद किया नहीं
लड़ते रहे अपने दर्द के साथ अकेले
वह बैचेन न हों इसलिये इतला किया नहीं
पर जब फिर दिन गुजारने
पहुंचे तो
हमारी गैर हाजिरी पर
सवाल उन्होंने किया नहीं
किस किसकी शिकायत करें
किस पर दिखायें गुस्सा
किसके साथ किफायत करें
मकसद के सब हैं
आते ही अपना मुकाम
छोड़ जाते हैं साथी
हम पर क्या गुजरती है
सवाल कभी उन्होंने किया नहीं


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Monday, November 3, 2008

पंगेबाजी जिनका खेल है वही खेलें-हास्य कविता

फंदेबाज घर आया
साथ में हिट होने का फार्मूला भी लाया
सुनाते हुए बोला
"आज तो गजब हो गया
मेरे भतीजे ने एक लडकी की दिल जीतने के लिए
एक दांव खेला
पहले उसके दोस्त ने उस लडकी को छेड़ा
फिर मेरे भतीजे की मार को झेला
फिर उसने अपने दोस्त के लिए भी
ऐसी ही भूमिका निभाई
वही से यह आईडिया मेरे दिमाग में आया
क्यों न तुम भी अंतर्जाल पर हिट होने के लिए
किसी "पंगेबाज" से फिक्सिंग कर लेते
दोनों मिलकर एक दूसरे को हिट कर देते
सब जगह चलती है यह नूरा कुश्ती
जिसे नए जमाने के लोग फिक्सिंग कहते
जमाने को दिखाने के लिए दोस्त आपस में ही
एक दूसरे की मार सहते
और चलते जाते प्रचार के दरिया में बहते
देखो क्या जोरदार आईडिया मेरे दिमाग में आया"

पहले अपना गला खंखारा और
फंदेबाज की तरफ घूरते हुए बोले महाकवि दीपक बापू
"इस बात की तो हम माफ़ी मांग लेते हैं कि
खालीपीली तुम्हारे पास दिमाग न होने का शक किया
लग लगी है तुम्हें भी ज़माने की हवा
करने लगा है वह
जो ऐसा आईडिया दिया
भले ही प्यार और जंग में फिक्सिंग जायज हो
पर यहाँ हिट होने की सोचकर आया ही कौन था
लिखने निकले थे अपनी बात अपने ढंग से
कभी चिंत्तन तो कभी हास्य के रंग से
जब बोलता ज़माना भी लगता मौन था
जानते हैं आजकल नूराकुश्ती का चला पडा है खेल
हम नहीं करेंगे चाहे कहलायें फेल
रोना और हंसना
इल्जाम और तारीफ़
प्यार और दुत्कार
सभी फिक्स खेल की तरह लगते हैं
पहले होता था नाटकों और फिल्मों में अभिनय
अब तो सभी अभिनेता हो गये
फिर भी लोग उन पर यकीन करते हैं
अपने जज़्बात उनके साथ जोड़कर चलते हैं
मगर कोई खेल दूर तक नहीं चलता
जानते हैं कई लोग, उनका दिल अब नहीं मचलता
हमारे बूते का नहीं है यह सब
पता नहीं पोल खुल जाए कब
अभी तो लेखकों की जमात में
चुपचाप बैठे खेल देख तो रहे हैं
कहीं हिट हो गए तो पकडे भी जायेंगे
फिर टेंशन में कहाँ लिख पायेंगे
उठाकर बाहर कर दिए जायेंगे
आज हिट तो कल दूसरा पंगा कहाँ ले पायेंगे
पंगेबाज के लिए जरूरी है रोज पंगे लेना
भला हम कहाँ कर पायेंगे
झूटी तारीफों के साथ
इल्जामों में भी फिक्सिंग का हो गया है फैशन
फिक्सिंग के साथ मजा है उनके लिए
जिनका ख्याल अपने से आगे नहीं जाता
ज़माने की सोचने वालों को यह नहीं भाता
यह पंगेबाजी जिनका खेल हैं वही खेलें
हमें तो दर्शकों में ही हमेशा मज़ा आया

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