समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, December 19, 2011

बिना पांव का झूठ उड़ता चलेगा-हिन्दी कविता (bina paanv ke jhooth udta chalega-hindi kavita or poem or shayari)

जोर से चिल्लाओं
बेबस, गरीब और मरीजों की सेवा करेंगे,
कुछ कायदे कागज पर छपवाओ
सारे जहान के घर में मेवा भरेंगे।
कहें दीपक बापू
झूठ बिना पांव के
इसलिये उड़ता चलेगा,
तुम ही नहीं
तुम्हारा भाविष्य का खानदान भी
इतिहास के सहारे पलेगा,
अगर चले सत्य की राह
कुब्बत होगी तो
चढ़ जाओगे आसमान पर
वरना गैर ही क्या
अपने ही तुम पर हंसेंगे।
---------------------
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Monday, December 12, 2011

दीपक बापू कहिन ने पार की तीन लाख पाठक संख्या-हिन्दी संपादकीय

            दीपक भारतदीप समूह के दीपक बापू कहिन ब्लॉग/पत्रिका ने तीन लाख की पाठक/पाठ पठन संख्या पार कर ली है। यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है पर जब देश में भाषा का तोतलीकरण-अंग्रेजी शब्दों की मिलावट-हो रहा हो और आधुनिक शिक्षा से ओतप्रोत नयी पीढ़ी सहज हिन्दी को बोध से विरक्त हो रही हो तब हम जैसे फोकटिया लेखकों के लिये इतना ही बहुत है कि उनके ब्लॉग अपनी विषय सामग्री के दम पर कुछ पाठक जुटा लेते हैं। यह सही है कि हिन्दी जगत में इस लेखक का नाम कोई चर्चित हस्ताक्षर नहीं है पर इससे लिखने समय जो बेपरवाही होती है वह ऐसी रचनाओं के सृजन में सहायक होती है जिसको चुराकर लोग छापना चाहते हैं।
             जिस तरह देश को आधुनिक बनाने के नाम पर अंग्रेजी पद्धति थोपी गयी उससे बेरोजगारों की फौज बनती जा रही है। उसी तरह अब हिन्दी भाषा में अंग्रेजी शब्द जोड़कर उसका तोतलीकरण हो रहा है। हमारे देश के मध्यम वर्ग के लोगों में विकास के नाम पर केवल अधिक से अधिक धन संपदा सृजन करते रहने का स्थाई भाव है। अधिक से अधिक सुविधा जुटाने की ललक पूरे समाज में है। सबसे बड़ी बात यह है कि बहुत कुछ कमाकर आराम से जिंदगी गुजारने का लक्ष्य है। इसमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है। मुश्किल यह है कि एक तो लोग आराम करना नहीं जानते दूसरी बात यह कि हमारी जो पंचतत्वों से बनी यह देह है उसमें मन, बुद्धि और अहंकार जैसी तीन प्रकृतियां हैं वह ऐसा नाच नचाती हैं कि विरले ज्ञानी ही उसके दुष्प्रभाव से बच पाते हैं। अगर किसी आदमी को ंसंगमरमर से बनी इमारत में बहुत दिन से रहना पड़े तो उसका मन गांव घूमने का करता है। जो गांव में है वह महल चाहता है। इस अंतर्द्वंद्व में फंसा आदमी इधर से उधर भटकता है। बदलते परिवेश में छोटा निजी व्यवसाय या नौकरी करना छोटे होने का प्रमाण बन गया है। इसलिये हमारा सभ्य समाज अपने लड़के लड़कियों के लिये विदेशों में नौकरी ढूंढ रहा है। पहले अंग्र्रेजी जरूरी जा रही थी तो अब उसे हिंन्दी में मिलाकर हिंगलिश बनाया जा रहा है। सभी को विदेश जगह नहीं मिलेगी और जो देश में बच गये वह यहां किस तरह गांव या मध्यवर्गीय शहर में काम करेंगे क्योंकि उनकी भाषा तो तोतली हो गयी होगी।
          लोगों की अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बड़े सपने होते हैं जो अपने शहर में पूरे नहीं होते। इसलिये वह उनको बाहर भेजकर स्वयं अकेले रहना मंजूर कर लेते हैं। यह एकाकीपन अंततः उनके लिये असहनीय होता है। दूर रहते बच्चों पर आक्षेप आता है कि वह माता पिता को देखने नहीं आते। जब संस्कृति और संस्कार की बात हो तो प्राचीन बातें करते हुए सब खुश होते हैं, पर जब स्तर की बात हो तो अपने बच्चों को विदेश या परे दूसरे शहर में रहने के लिये स्वयं तैयार करने वाले दंपत्तियों का यह अंतद्वंद्व समाज में देखा जा सकता है। लब्बोलुआब यह कि खेल रही है माया और आदमी सोच रहा है कि मैं खेल रहा हूं।
       हम जब प्राचीन संस्कारों की बात करते हैं तो यह बात भी देखना चाहिए कि तब व्यवसाय और रहन सहन सहज था। अपने लोग अपनों के पास होते थे। अब विकास के नाम पर हमने जो मार्ग अपनाया है उसमें कथित रूप से संस्कारों की बात तो करना ही नहीं चाहिए। फिर भी लोग कर रहे हैं। ऐसे में व्यंग्य के लिये विषयों की कमी नहीं होती। लोग अपने सिर का बोझ दूसरे पर डालना चाहते हैं पर स्वयं किसी का बोझ उठाने को तैयार नहीं है। एक समृद्ध, संस्कारवान तथा प्रतिष्ठत परिवार का मुखिया होने का मोह आदमी को अंततः ऐसे संकट में डालता है जहां से उबरना सभी के बूते की बात नहीं होती।
        ऐसे में हम जैसे लोग उन गुरुओं का स्मरण करते हुए प्रसन्न होते हैं जिन्होंने तत्वज्ञान दिया है। इस नश्वर देह को लेकर जिस तरह लोग नाटकबाजी करते हुए उसे बर्बाद करते हैं उसे देखकर ज्ञानी लोग दुःखी होते हैं पर मुश्किल यह है कि अपने भौतिक शक्ति केंद्रों पर मजबूती से जमे आदमियों को यह बात समझाना मुश्किल ही नहीं खतरनाक भी होता है। आज ही रहीम के दोहे पर लेख लिखा था। उसका आशय यह था कि सच है तो संसार साथ नहीं है और झूठ है तो राम नहीं मिलते। ऐसे में यहां कुछ पैसा नही भी मिलने पर इस बात की प्रसन्नता होती है कि कबीर, रहीम, तुलसी, चाणक्य, विदुर तथा अन्य विद्वानों के संदेश और उन पर व्याख्यान लिखते हुए जो ज्ञान प्राप्त हो रहा है वह अनमोल है। लोग लाखों कमाते हैं पर ज्ञान तो विरलों को ही मिल पाता है। सच बात तो यह है कि ब्लॉग हमारे गुरु हो रहे हैं।
दीपक बापू ब्लॉग के तीन लाख पाठक/पाठ पठन संख्या पार करने पर पाठकों, मित्र ब्लॉग लेखकों तथा अंतर्जाल पर सक्रिय अज्ञात हिन्दी विशेषज्ञों का आभार। हिन्दी विशेषज्ञों को इसलिये आभार जता रहे हैं कि क्योंकि उनकी वजह से ही अनेक टूल लिखने के लिये मिले हैं।
संपादक और लेखक
दीपक भारतदीप
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, December 3, 2011

पूरा फोटो दिखाओ, हास्य कविता लिखाओ-हिन्दी हास्य कविता (pura foto dikhao, hasya kavita likhao-hindi comedy poem)

फंदेबाज हांफता हुआ आया और बोला
’’दीपक बापू सभी टीवी चैनलों ने
पाकिस्तान से भारत में आयातित
फिल्म अभिनेत्री का नग्न फोटो दिखाया,
मगर बहुत सारा हिस्सा काले रंग में छिपाया,
आप लिखो इस पर कोई कविता,
शायद आपके ऊपर लगा फ्लाप का ठप्पा मिट जाये,
बहने लगे सफलता की सरिता,
देखो
उसकी हरकातें से अपने देश में
पूरा ज़माना बिगड़ जायेगा,
चारों तरफ नग्न फोटो का जाल छायेगा,
अपनी संस्कृति इस तरह मिट जायेगी,
संस्कारों की जगह संकीर्णता आयेगी,
आज जैसे ज्ञानियों और ध्यानियों पर
अब देश का भविष्य टिका है
कुछ करो
वरना देश की अस्मिता खतरे में पड़ जायेगी।’’

दीपक बापू ने घूरकर फंदेबाज को देखा
फिर मुंह में रखी लोंग चबाते हुए कहा
‘‘कमबख्त,
पहली बात यह है कि हमें ज्ञानी और ध्यानी कहना
एक तरह से मजाक लग रहा है,
या फिर तू तस्वीर देखकर वाकई
हादसे का शिकार हो गया है
इसलिये तेरा तीसरा नेत्र जग रहा है,
वरना क्या हमारी कविताऐं पढ़कर
तू अभी तक समझा नहीं इस बाज़ार का खेल,
खींचना है जिसे आम आदमी की जेब से पैसा
भले ही निकल जाये उसका तेल,
हम किस आधार पर
इस फिक्स निर्वस्त्र धारावाहिक पर
अपनी हास्य कविता लिखें,
बिना पूरी तस्वीर देखे टिप्पणी कर
किस तरह जिम्मेदार शहरी दिखें,
हमने देखा टीवी चैनलों पर
पूरी तस्वीर नहीं दिखा रहे हैं
किसी तरह नैतिकता का पाठ
आज के जवानों को सिखा रहे हैं,
लगता है तेरे को गुस्सा इस बात पर नहीं कि
उसने नग्न फोटो क्यों प्रकाशित कराया,
बल्कि तुझे अफसोस है इस बात का
फोटो खिंचते समय वहां तू नहीं था
इस अफसोस ने तुझे सताया,
बिगड़ा है इस बात पर कि
पूरा फोटो किसी चैनल ने क्यों नहीं दिखाया,
तेरी आंखें तरस गयी
पाकिस्तानी अभिनेत्री का जिस्म देखने के लिये
जिसने अपने देश को नंगपन सिखाया,
मगर गुरु हम भी कम नहीं है,
बाज़ार हमसे लिखवा ले
आधे अधूरे प्रमाण पर
उसमें यह दम नहीं है,
पहले पूरा फोटो लाकर दिखाओ,
हमसे एक फड़कती हास्य कविता लिखाओ,
एक नंगे फोटो से संस्कृति और संस्कारों पर खतरा
दिखाकर हमें न डराओ,
हमारे दर्शन में बहुत ताकत है
यह सभी जानते हैं,
मगर दौलत और शौहरतमंद इंसान
अपनी हवस के लिये
धर्म, संस्कृति और नैतिकता की सीमाऐं
लांघ जाते हैं
यह भी मानते हैं,
अपनी हवस मिटाने के लिये
दुश्मन देश से दोस्ती करते हैं,
फिर बिगड़ जाये तो
यहां आकर देशभक्ति का दम भरते हैं,
क्रिकेट, फिल्म और टीवी के धारावाहिकों में
फिक्सिंग होती है यह सभी को पता है,
फंसते जो लोग उनकी अपनी खता है,
इसलिये आधे अधूरे फोटो पर
हम कुछ नही लिख सकते,
शालीनता और अश्लीलता के बीच
पाखंड बहुत चल रहा है
हम अपने को उसमें फंसते नहीं दिख सकते।’’
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर