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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, December 27, 2010

इंसानी दुनियां का दस्तूर-हिन्दी शायरी (insani duniya ka dastur-hindi shayari)

गरीबों और मज़दूरों की
दर्दनाक हालत पर रोते हुए
वह बड़े ख्यालात के इंसान होने की
पदवी जुटाते हैं,
वही करते हैं उन बादशाहों की खिदमत
इसलिये इनामों से नवाजे जाते हैं।
इंसानी दुनियां का दस्तूर यही है
लफ्जों के जादूगर बहुत हुए
उनके अल्फाजों की चर्चा
चाहे कितनी भी हो जाये
ज़माने के हालात कभी नहीं बदल पाते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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Friday, December 10, 2010

तालियां और गालियां-हिन्दी व्यंग्य कविता (taaliyan aur galiyan-hindi vyangya kavita)

भीड़ में जाकर अपने भ्रष्टाचार को
शिष्टाचार समझ जो लोग पी जाते हैं,
मंचों पर वही नैतिकता का पाठ
सुनाकर तालियां बजवाते हैं।
अपने किस्से जब होते हैं आम
तब सफाई में दिखाते खानदान का ईमान,
जब दूसरे पर लगे इल्ज़ाम
उसके लिये तख्ती पर गालियां लगवाते हैं।
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Monday, December 6, 2010

विकीलीक्स के खुलासे में अभी तक मज़ा नहीं आया-हिन्दी व्यंग्य (vikileeks secreat is not for enterntainment-hindi vyangya

विकिलीक्स के खुलासों में मज़ा नहीं आ रहा है। जो खबरें आ रही हैं वह पहले भी आ चुकी हैं। आतंकवादी यह कर रहे हैं वह कर रहे हैं। पाकिस्तान यह योजना बना रहा है और वह छोड़ रहा है। भारत में यह खतरा या वह भय! यह सब पहले भी पढ़ चुके हैं। भारतीय प्रचार माध्यम कई बार ऐसी चीजें देकर अपने विज्ञापन चलाते हैं। कुछ अनोखा नहीं दिखाई या सुनाई नहीं पड़ रहा है।
उधर अमेरिकी सरकार उसके संस्थापक के पीछे पड़ी है। अगर यही खुलासे हैं तो समझ में नहीं आता कि अमेरिकी रणनीतिकार उससे इतने भयभीत क्यों हैं? अमेरिका की विदेश मंत्राणी का कहना है कि यह खुलासे केवल आपसी संवाद हैं और इनका उनके देश की नीति से कोई संबंध नहीं हैं। फिर इतना होहल्ला क्यों?
दरअसल अमेरिका की अर्थव्यवस्था एशियाई देशों पर आधारित है और इन खुलासों में कुछ ऐसा होने की संभावना है जो उन्हीं देशों से संबंधित है जहां के रणनीतिकारों के नाराज होने पर उसे इसके परिणाम भोगने पड़ते हैं।
संगठित प्रचार माध्यम केवल वहीं खबरे दें रहे हैं जिनका कोई महत्व नहीं है। ऐसे में भारत के हिन्दी या अंग्रेजी ब्लाग लेखकों से ही यह आसरा है जो कुछ असाधारण खोज करें। ढाई लाख दस्तावजों को देखना कोई आसान नहीं है। मतलब जो ब्लाग लेखक इधर से उधर भाग रही विकीलीक्स की वेबसाईट पर जायेंगे उनको अपने देश के लिये सामग्री ढूंढना आसान नहीं है। अगर ऐसी ही चलताऊ सामग्री ढूंढेंगे तो उसका कोई मतलब नहंी रह जायेगा। हिन्दी ब्लाग लेखकों के लिंक से वह वेबसाईट देखी थी और लगा कि अगर भारत से संबंधित कुछ ढूंढना है तो बहुत मेहनत करनी होगी। फिर उसमें भी कुछ ऐसा जिसमें भय, खतरा तथा सामान्य समाचार समाचार जैसा न हो। उसमें ऐसा क्या हो सकता है? केवल भारत के शिखर पुरुषों और उनके मातहतों के अमेरिका तथा अन्य देशों से संबंधित व्यवहार या संवाद की ऐसी जानकारी जो अभी तक छिपाई गयी हो। अब तो यह तय हो गया है कि राज्य में बैठे अनेक बड़े अधिकारी वह काम कर रहे हैं जो दुश्मन देश का जासूस भी नहीं कर सकता। ऐसे अनेक अधिकारी जेल मैं हैं और यह कहना ठीक नहीं होगा कि बाकी सब ठीक ठाक हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि देश में इस समय जो घोटालों पर माहौल बना है वह इसी विकीलीक्स में किसी रहस्य को उजागर होने से बचाने के लिये हैं। विकीलीक्स को शायद इधर उधर दौड़ाया भी इसलिये जा रहा है कि किसी भी एशियाई देश की जानकारी अब लोग न देख पायें।
हिन्दी ब्लाग लेखकों में कुछ गज़ब के हैं। इनमें से अनेक न केवल अंग्रेजी और हिन्दी में एक जैसा महारथ रखते हैं। इनमें कुछ का तो वेद और कुरान पर एक जैसा विशद अध्ययन है! इनमें से अनेक वेबसाईटें खंगालते रहते हैं। जब कुछ अपन भाषा वालों के लिये अच्छा लगता है उसका अनुवाद कर प्रस्तुत भी करते हैं। यह कुशल समूह विकीलीक्स पर नज़र नहीं रखता हो यह संभव नहीं है। संभव है यह पूरा दिन वहां कुछ न कुछ ढूढते हों क्योंकि इधर उनकी सक्रियता कम दिख रही है।
ऐसे में उनको करना यह चाहिए कि उन्हें अपनी सरसरी दृष्टि से काम करना चाहिए। अगर वेबसाईट उनके सामने हो तो तुरंत अपने देश से संबंधित सामग्री न होने पर आगे बढ़ जाना चाहिए। इसके अलावा जहां खतरा, भय या योजनाओं की बात हो जो वह पहले से जानते हों उसे छोड़ दें। उनको ढूंढना चाहिए ऐसे व्यवहार, संवाद तथा विचार की जिससे यहां तहलका मच जाये। अब पाकिस्तानी के प्रधानमंत्री हों या राष्ट्रपति उनकी सोच से हमें क्या लेना देना? यह तो बुत भर हैं जो अमेरिका तथा विदेशी पूंजीपतियों द्वारा बिठाये गये हैं। सेना का हाल सभी को मालुम है। भारत के प्रति रवैया क्या है, यह जानने की जरूरत नहीं है। मुख्य बात है कि दोनों के बीच संपकों को लेकर अंदर क्या काला पीली होता है उसे जानना है। याद रखें कि कमरे के अंदर और बाहर की राजनीति अलग अलग होती है, वैश्विक उदारीकरण के इस इस दौर में दोस्ती और दुश्मनी भी क्रिकेट मैच की तरह फिक्स होती है। ऐसे हिन्दी ब्लाग लेखकों के ब्लाग पढ़ने में मजा भी आता है जो खोज परक जानकारी अपने ब्लाग पर देते हैं। वैसे अगर इनमें से कोई महारथी विकीलीक्स का भारतीय संस्करण बना डाले तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। भारत के आम पाठक इस बात का अनुमान नहीं कर सकते कि साफ्टवेयर में भारत का पूरे विश्व में लोहा माना जाता है और इसमें कुशल अनेक लोग ब्लाग भी लिखते हैं। उनके बारे में तभी अनुमान किया जा सकता है जब हिन्दी ब्लाग लेखन पर सक्रिय रहा जाये भले ही लेखक के रूप में नहीं एक पाठक के रूप में ही सही।
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Friday, December 3, 2010

सपना जगा है-हिन्दी कवितायें (sapna jaga hai-hindi kavitaen)

ईमानदारी की बात करते हुए
अब डर लगने लगा है,
अपना चाल चलन भी
अब शक के घेरे लगता है,
सुला दिया है इसलिए सोच को
आंखें खुली हैं मगर सपना जगा है।
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आओ, कुछ किताबों में लिखे
कल्पित नायकों को
दूनियां के सच की तरह रच लें,
लोग उनको ढूंढते रहें,
हम दोस्त बनकर
उनके घर की दौलत लूटते रहें,
इस तरह पहरेदारों से बच लें।
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बेईमान और ईमानदारी के फर्क को
अब कोई इंसान नहीं जानता है,
उच्च चरित्र की बातें किताबों में
पढ़ते हैं सभी
मगर जिंदगी में हर कोई
चादर के बाहर पांव तानता है।
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Tuesday, November 30, 2010

आसमान के सितारों पर यकीन नहीं रहा-हिन्दी व्यंग्य शायरी (asaman ke sitaron par yakeen nahin rahaa-hindi vyangya shayri)

धरती पर घूमते सितारों के चमकने की
असलियत जान ली,
जिन्होंने कुछ उधार पर तो
कुछ लूट पर अपनी
जेब भरने की ठान ली,
इसलिये आसमान के
सितारों पर भी यकीन नहीं रहा।
सोचते हैं
अपनी गलतफहमी में ही
बरसों तक यह कैसा भ्रम सहा।
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वह लुटेरे हैं या व्यापारी
पहचानना मुश्किल है,
दौलत से मिली शौहरत ने
मशहूर कर दिया उनको
पर पता लगा कि
हमारी तरह ही उनका भी मामूली दिल है।
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Saturday, November 20, 2010

भलाई का धंधा आजकल चोखा है-हिन्दी व्यंग्य कविता (bhalai ka dhandha aajkal chokha hai-hindi vyangya kavita)

पूरे ज़माने की तरक्की करने का दावा
अपने आप में बस, एक धोखा है,
बिक जाता है आम इंसानों के बीच
यह नारा केवल वादों की कीमत पर
भलाई का धंधा आजकल बहुत चोखा है।
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एक धोखा देकर चला गया
दूसरा विश्वास निभाने का वादा लेकर आया,
उसने धोखा दिया तो
पहला फिर दिल औद दल बदल का आया,
अपने चेहरे पर उसने नया नकाब लगाकर,
जुबां पर नया वादा सजाया,
इस तरह सिंहासन का चक्र
भलाई के धंधे में समाया
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Tuesday, November 16, 2010

रोकर या हंसकर सब सह लें-हिन्दी व्यंग्य कविता (rokar ya hanskar sab sah len-hindi vyangya kavita)

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान
जो छेड़ा उन्होंने तो देखा
घपलों और घोटालों से
अटा पड़ा देश था,
समझ में नहीं आया कि
देश में है लफड़ा है या
लफड़े में पड़ा देश था।
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आओ देश में फैले भ्रष्टाचार
पर कुछ अपनी बात कह लें,
कभी कभी तो मौका मिलता है
अपनी बात कहने का
वरना तो अपनी आदत है
रोकर या हंसकर सब सह लें।
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Saturday, November 13, 2010

सस्ता है यकीन उनका-हिन्दी शायरी (sasta hai yakeen unka-hindi shayari)

वफदारी का वादा कर
सभी मुकर जाते हैं,
सस्ता है यकीन उनका
कौड़ियों में बेच देते हैं,
अपनी इज़्जत की कीमत
उनकी खुद की नज़र में ही कम है,
इसलिये सस्ते में बेचकर
गद्दारों की जमात में बैठ जाते हैं।
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आंखों से देखते हैं
पर अक्ल से अंधे हैं,
आज़ाद दिखते हैं राजा होकर भी
मगर उनके हाथ
प्रायोजकों से बंधे दिखते हैं।
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Friday, November 12, 2010

खतरनाक चेहरा और खूबसूरत नकाब-हिन्दी व्यंग्य क्षणिका (khatarnak cherha aur khubsurat nakab-hindi vyangya kavita)

काले पैसे का खतरनाक चेहरा
ओढ़ लेता है
आकर्षक इमारतों, हरे भरे बगीचों
और चमचमाती कारों का खूबसूरत नकाब,
देश की तरक्की जरूरी है
आम इंसानों की गरीबी को
कुचल कर निकल जाये
कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनियां में देश का नाम चमकना चाहिए जनाब!
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Wednesday, November 10, 2010

कितने दिन तक कितने भ्रम-हिन्दी शायरी (kitne din tak kitane bhram-hindi shayari)

वह शिखर पर खड़े थे
बहुत ऊंचे कद्दावर दिखाई देते रहे,
आम इंसानों के महान संदेश हो गये,
जो शब्द उन्होंने अपनी जुबान से कहे।
जो नीचे आये तो
उनका चाल चलन देखकर हुआ अहसास
कद के बहुत छोटे हैं
उससे भी ज्यादा छोटी है उनकी सोच
हैरान है अब उनको देखकर
कितने दिन तक कितने भ्रम हमने सहे।
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Monday, November 1, 2010

वासना कभी प्रेम नहीं होती-हिन्दी कविताऐं (vasna kabhi premi nahin hoti-hindi kavitaen)

ज़माने को बदलकर रख देंगे, यह ख्याल अच्छा है,
जो सोचता है यह इंसान, उसका दिमाग बच्चा है।
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भीड़ का इंतजार न करें, अपनी राह चलते रहें।
खुद की जंग खुद लड़ो, भेड़ों के झुंड से बचते रहें।
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तरक्की के रास्ते चमकदार हैं, पर तबाही की तरफ भी जाते हैं।
कपड़े कितने भी सफेद हों, चरित्र के दाग नहंी छिप पाते हैं।
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वासना कभी प्रेम नहीं होती, यह आग जला कर बनाती राख।
शरीर के जख्म देखे ज़माना, आंखें रोती देखकर डूबती साख।
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Friday, October 29, 2010

हास्य कविता-आदर्श चरित्र और आम आदमी-हिन्दी (hindi hasya kavita-adarsh charitra aur aam admi-hindi hasya kavita)

सुनते थे
शहीदों की चिता पर लगेंगे मेले,
नाचेंगे जहां आज़ादी के अलबेले,
मगर अब कहीं गैस एजेंसी तो
कहीं पेट्रोल पर उनके नाम पर बन जाते हैं,
कहीं ऊंची इमारतों में आवास भी तन जाते हैं।
उनकी विधवाओं और बच्चों को
मिलना हो बसेरा,
आम आदमी को भी हो जाता वहीं फेरा,
यह अलग बात है,
खास आदमी वहां भी हक
अपने नाम से मार जाते हैं,
शहीदों की चिता पर मनाते दिखावे का शोक,
मगर अपनी लालच पर नहीं रखते रोक,
बना देते उनका भूला हुआ आदर्श चरित्र
खुद ओढ़ लेते आम आदमी की चादर,
मुश्किल है समझना
आम आदमी फिर कौन कहलाये जाते हैं।
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Sunday, October 24, 2010

योग फिनोमिना-हिन्दी लेख (yoga sadhna and all religion-hindi article)

इंटरनेट पर एक हिंद ब्लॉग में लिखा   गया वह एक दिलचस्प लेख था! मन में आया टिप्पणी करना चाहिए! लेख दोबारा पढ़ा तो लगा कि चलो एक अपना पाठ ही लिख लेते हैं क्योंकि भारतीय योग साधना से संबंधित विधियां और उनके महत्व को लेकर विश्व भर में चर्चा हो रही है पर उसके मूल तत्व किसी को नहीं दिखाई दे रहे हैं। एक तरह से अंधों का हाथी हो गया है भारतीय योग जो केवल देह के इर्दगिर्द ही घूम रहा है और मन और विचारों में उससे होने वाले परिवर्तनों को अनदेखा किया जा रहा है।

बात उन दिनों की है जब इस लेखक ने योग साधना प्रारंभ की थी। शायद दस वर्ष पूर्व की बात होगी तब बाबा रामदेव का नाम इतना प्रसिद्ध नहीं था। भारतीय योग संस्थान के शिविर में अनेक साधकों से भेंट होती। कुछ अन्यत्र शिविरों की भी जानकारी आती थी। ऐसे ही अन्यत्र चल रहे योग शिविर की जानकारी मिली कि एक शिक्षक ने अचानक ही साधना का परित्याग कर दिया था। एक साधक ने बताया कि उनके किसी संत गुरु ने उनको योग साधना करने से मना कर कहा था कि इससे भगवान के प्रति भक्ति भाव कम होता है। अपने गुरु के आदेश का उन्होंने पालन किया। बात आई गयी खत्म होना चाहिए थी, मगर हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अनेक लोग योग साधना के बारे में अनेक संशय पाले हुए हैं। उससे भी ज्यादा यह बात कि लोग इससे अनेक प्रकार की सिद्धियां होने का दावा करते हैं। यह दोनों ही बुरी बात है और मन में असहजता का भाव उत्पन्न करती हैं जो कि ठीक योग के विरुद्ध है। योग साधना से केवल देह, मन और विचारों में सकारात्मक भाव पैदा होता है इससे अधिक कुछ नहीं। अगर कोई योग साधक श्रीमद्भागवत गीता पढ़ ले तो वह अध्यात्मिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाता है और तब स्वर्ग में टिकट दिलाने, हर मर्ज की दवा देने, मनोरंजन करने, सौंदर्य बनाये रखने और काम शक्ति बढ़ाने के उपाय बताने के नाम पर उस पर शासन करने वाले बाज़ार तथा प्रचार का उस नियंत्रण उस पर से समाप्त हो जाता है। सभी योग साधक श्रीमद्भागवत गीता पढ़ें यह जरूरी नहीं है पर चरम पर आने के बाद उसका मन ऐसे तत्व ज्ञान की तरफ स्वतः ही बढ़ता है। ऐसे में वह इस संसार में बुद्धि और मन के आधार पर सामान्य मनुष्यों पर शासन करने वाली शक्तियों के घेरे से बाहर हो जाता है। कोई वाद या विचार उसके आगे निरर्थक विषय के अलावा कुछ नहीं रह जाता। वह संसार के सामान्य कर्म नहीं त्यागता वरन् वह एक स्वतंत्र और मौलिक कर्मयोगी मनुष्य बन जाता है। यही से शुरु होता है योग का विरोध जो शासन और बाज़ार के स्वामी अपने प्रचारकों से करवाते हैं।
उस लेख में बाबा रामदेव के फिनोमिना की बात कही गयी थी। लिखने वाले स्वयं ही कार्ल मार्क्स की किताब पूंजी से प्रभावित हैं। कार्ल मार्क्स का नाम और उनकी पूंजी किताब का भी एक समय फिनोमिना रहा है। कार्ल मार्क्स एक विदेशी लेखक था और उसके विचारों को भारत के संबंध में अप्रासंगिक माना जाता रहा है, मगर शैक्षणिक संस्थानों तथा साहित्यक क्षेत्रों में एक समय ऐसे लोगों का जमावड़ा था जो सोवियत संघ की कथित क्रांति के प्रभाव में वैसी ही क्रांति अपने देश में लाना चाहते थे और गरीब और मज़दूर का उद्धार करना ही उनका लक्ष्य था। उनकी बहसें कॉफी हाउसों में होती थी। यह बहसें या मुलाकतें एक फैशन थी जो किसी विचार या आंदोलन का निर्माण करने में सहायक नहीं थी। उन्होंने इस देश में बुद्धिजीवियों की ऐसी छबि का निर्माण किया जिसका अपना फिनोमना जनता में था। यही कारण था कि ऐसे लोग जो कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रभावित नहीं थे और कहीं न कहीं उनके मन में अपने भारत की विचाराधारा का प्रभाव था वह भी उनकी शैली अपनाने लगे। इससे भारत में विचारधाराओं का फिनोमिना बढ़ा। नये नये देवता गढ़े गये मगर चूंकि सभी भारतीय अध्यात्म ज्ञान से परे थे इसलिये चिंतन केवल चिंता तक सिमट गया। ऐसे में भारतीय योग को देशी विचारधारा के लोग भी एक बेकार चीज़ मानने लगे थे। उनका मानना था कि योगियों की निष्क्रियता की वज़ह से ही विदेशी यहां आकर जम गये जबकि सच यह है कि यह केवल अधंविश्वासी तथा पाखंडी लोगों की सक्रियता से हुआ था। श्रीमद्भागवत गीता को तो केवल सन्यासियों के लिये प्रचारित किया गया।
ऐसे में यह देश बहुत बड़े वैचारिक भटकाव में फंस गया और नतीजा यह निकला कि नारे और वाद ही दर्शन बनकर रह गये मगर यह समाज बिना फिनोमिना के चलने के आदी नहीं है। एक आदर्श आदमी के फिनोमिना में चलने के आदी इस समाज को अगर बाबा रामदेव नाम का नायक मिल गया तो उस पर अध्यात्मिकवादी लोग खुश ही होते हैं। रहा बाज़ार और उसके प्रचारतंत्र का सवाल तो उसके दोनों ही हाथों में लड्डू रहने है और इसे रोकना मुश्किल काम हैं। मुश्किल यह है कि वैचारिक भटकाव के समय इस देश में ऐसे बुद्धिजीवियों की भरमार हो गयी जो चिंतन कम चिंताओं पर अधिक लिखते हैं। समस्याओं को उभारते हैं पर हल उनके पास नहीं है। सबसे बड़ी बात यह कि वह समाज को वैचारिक रूप से आत्मनिर्भर बनाकर समस्याओं का हल ढूंढने की बजाय सरकारी कानूनों से करने की शैली आज के बुद्धिजीवियों में है। पराश्रित बुद्धिजीवी जब योग साधना पर लिखते हैं तो उनका सामना करने वाले लोग भी वैसे ही हैं। आदमी जब दैहिक तनाव से मुक्त होगा वह मानसिक और वैचारिक रूप से स्वतंत्र हो जायेगा। ऐसे में इन बुद्धिजीवियों की सुनेगा कौन?
अमेरिका के एक पादरी ने घोषित किया कि भारतीय योग साधना ईसाई धर्म के विरुद्ध है। इस पर भारत में कुछ लोगों ने विरोध किया। विरोध करने वालों का कहना है कि यह ईसाई धर्म के विरुद्ध नहीं है। यह विरोध करने वाले नहीं जानते कि अनेक हिन्दू संत ही इसका विरोध करते हैं।
सच बात तो यह है कि पूरे विश्व में इतने सारे धर्म होना ही इसका प्रमाण है कि इसके नाम पर जनसमुदाय में भ्रम फैलाया जाता रहा है। किसी भी भारतीय ग्रंथ में धर्म का कोई नाम नहीं है और इसका आशय केवल आचरण से लिया जाता रहा है। मतलब पूरी दुनियां में दो ही प्रवृतियां रहती हैं एक धर्म की दूसरी अधर्म की! धर्म के नाम पर बांटने का काम तो पश्चिम से ही आया है। इसका कारण यह रहा है कि लोग अपने संकटों, बीमारियों तथा अन्य समस्याओं का हल दूसरे से कराना चाहते हैं। योग मनुष्य को शारीरिक, मानसिक तथा अध्यात्मिक रूप से आत्मनिर्भर बनाता है। जब व्यक्ति आत्मनिर्भर हो जायेगा और धर्म का मतलब समझ जायेगा तब वह किसी भी धर्म के किसी ठेकेदार के पास नहीं जायेगा। यह योग तो हर धर्म के लिये खतरा है जिसमें इंसान स्वयं ही इंसान होकर जीना सीख जाता है। ऐसे में सभी धर्म प्रेम, अहिंसा तथा दया भाव से जीना सिखाते हैं जैसी बातें सुनाकर बहसें और चर्चा करने वाले तथा शांति संदेश बेचने वालों का क्या होगा? यही कारण है कि योग फिनोमिना से बहुत लोग आतंकित हैं क्योंकि आधुनिक बाज़ार तथा उसके प्रचारकों का फिनोमिना कम होने का खतरा है। हमने फिनोमिना शब्द का अर्थ इधर उधर ढूंढा पर मिला नहीं। इसका आशय हिन्दी में प्रभाव या प्रभावी हो सकता है और इसीलिये फिनोमिना शब्द प्रयोग करके देखा है। जब आप योग साधना करते हैं तो ऐसे प्रयोगों की प्रेरणा स्वतः पैदा होती है। यह लेखक कोई ब्रह्मज्ञानी नहीं है पर योग फिनोमिना की वजह से ही यह लिखने को विवश हुआ है इसमें संदेह नहीं है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior, madhyapradesh
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Sunday, October 17, 2010

दशहराःरावण के नये रूपों से लड़ने की जरूरत-हिन्दी लेख (dashahara:ravan ke naye roop se ladne ke jaroorata-hindi lekh)

आज पूरे देश में त्रेतायुग में श्री राम की रावण पर युद्ध के समय हुई विजय के रूप में मनाये जाने वाले दशहरा पर्व की धूम मची हुई है। एक दिन के लिये खुशी से मनाये जाने वाले इस पर्व के मायने बहुत हैं यह अलग बात है कि लोग इसे समझना नहीं चाहते। दरअसल भगवान श्री राम और रावण दो ऐसे व्यक्तित्व थे जो अपने समय में सर्वाधिक शक्तिशाली और पराक्रमी माने जाते थे पर इसके बावजूद भगवान श्रीराम को अच्छाई तथा रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। रावण के बारे तो कहा जाता है कि उसमें विद्वता कूट कूट कर भरी हुई थी। जहां तक उसकी धार्मिक प्रवृत्ति का सवाल है तो उसने भगवान शिव की तपस्या कर ही अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था। इसका मतलब यह है कि कम से कम वह भगवान शिव का महान भक्त था और वह उसके आराध्य देव थे जिनको आज भी भारतीय समाज बहुत मानता है। आखिर रावण में क्या दुर्गुण थे इस पर अवश्य विचार करना चाहिये क्योंकि कहीं न कहीं हम उनकी समाज में उपस्थिति देखते हैं और तब अनेक लोग रावण तुल्य लगते हैं।
अमरत्व के वरदान ने रावण के मन में अहंकार का भाव स्थापित कर दिया था। वह अपने अलावा अन्य सभी पूजा पद्धतियों का विरोधी था। उसे लगता था कि केवल तपस्या के अलावा अन्य सब पूजा पद्धतियां व्यर्थ है और वह यज्ञ और हवन का विरोधी था। दूसरा वह यह भी कि वह नहीं चाहता था कोई दूसरा तप या स्वाध्याय कर उस जैसा शक्तिशाली हो जाये। इसलिये ही उसने वनों में रहने वाले ऋषियों, मुनियों तथा तपस्वियों के साथ उस समय के अनेक समृद्ध राजाओं को भी सताया था। देवराज इंद्र तक उससे आतंकित थे। वह यज्ञ और हवन करने वाले स्थानों पर उत्पात मचाने के लिये अपने अनुचर नियुक्त करता था जिनमें सुबाहु और मारीचि के साथ भगवान श्रीराम की मुठभेड़ ऋषि विश्वमित्र के आश्रम पर हुई थी। दरअसल यहीं से ही भगवान श्रीराम की शक्ति का परिचय तत्कालीन रावण विरोधी रणनीतिकारों को मिला जिससे वह भगवान श्री राम का रावण से युद्ध कराने के लिये जुट गये तो साथ ही रावण को भी यह संदेश गया कि अब उसका पतन सन्निकट है। जो लोग सीताहरण को ही भगवान श्रीराम और रावण का कारण मानते हैं वह अन्य घटनाओं पर विचार नहंीं करते। रावण ने श्रीसीता का हरण केवल भगवान श्रीराम को अपने राज्य में लाकर उनको मारने के लिये किया था। सूपर्णखा का नाक कान कटना भी भगवान श्रीराम के द्वारा रावण को चुनौती भेजने जैसा ही था।
एक भारतीय उपन्यासकार कैकयी को खलनायिका मानने की बजाय तत्कालीन कुशल रणनीतिकारों में एक मानते हैं। इसका कारण यह है कि वह स्वयं एक युद्ध विशारद होने के साथ ही कुशल सारथी थी। उसे एक युद्ध में राजा दशरथ के घायल होने पर उनका रथ स्वयं दूर ले जाकर उनको बचाया था जिसके एवज में तीन वरदान देने का वादा पति से प्राप्त किया जो अंततः भगवान श्रीराम के वनवास तथा भरत का राज्य मांगने के रूप में प्रकट हुए। रावण के समय में देवराज इंद्र उसके पतन के लिये बहुत उत्सुक थे। कैकयी को राम के वनवास के लिये उकसाने वाली मंथरा भी शायद इसलिये अयोध्या आयी थी। संभवत उसे देवताओं ने ही कैकयी को भड़काने या संदेश देने के लिये भेजा था जबकि प्रकटतः बताया जाता है कि सरस्वती देवी ने मंथरा की बुद्धि हर ली थी। कहा जाता है कि श्रीराम कके वनवास के बाद मंथरा फिर अयोध्या में नहीं दिखी जो इस बात का प्रमाण है कि वह केवल इसी काम के लिये आयी थी और कहीं न कहीं उस समय के धार्मिक रणनीतिकारों के दूत या गुप्तचर के रूप में उसने काम किया था। कैकयी स्वयं एक युद्ध और रणनीतिकविशारद थी इसलिये जानती थी कि ऋषि विश्वमित्र के आश्रम पर सुबाहु के वध और मारीचि के भाग जाने के परिणाम से रावण नाखुश होगा और वह भगवान श्रीराम से कभी न कभी लड़ेगा। ऐसे में अयोध्या में संकट न आये और भगवान श्रीराम सामर्थ्यवान होने के कारण राजधानी से दूर जाकर उसका वध करें इसी प्रयोजन से उसने भगवान श्रीराम को वन भेजने का वर मांगा होगा। रावण के विद्वान और आदर्शवादी होने की बात कैकयी जानती होंगी पर उनको यह अंदाज बिल्कुल नहीं रहा होगा कि वह श्रीसीता का हरण जैसा जघन्य कार्य करेगा। जब कैकयी भगवान श्री राम को वनवास का संदेश दे रही थीं तब वह मुस्करा रहे थे। इससे ऐसा लगता है वह सारी बातें समझ गये थे। इतना ही नहीं भगवान श्रीराम ने हमेशा ही अपने भाईयों को कैकयी का सम्मान करने का आदेश दिया जो इस बात को समझते थे कि वह अयोध्या के हितार्थ एक रणनीति के तहत स्वयं काम रही हैं या उनको प्रेरित किया जा रहा है। जब कैकयी ने भगवान श्रीराम और श्री लक्ष्मण के साथ श्रीसीता को भी वल्कल वस्त्र पहनने को लिये दिये तब वहां उपस्थिति पूरा जनसमुदाय हाहाकार कर उठा। दशरथ गुस्से में आ गये पर कैकयी का दिल नहीं पसीजा। इस घटना से पूर्व तक कैकयी को एक सहृदय महिला माना जाता था। उसकी क्रूरता का एक भी उदाहरण नहीं मिलता। तब यकायक क्या हो गया? कैकयी क समर्थन करने वाले यह भी सवाल उठाते हैं कि उसने 14 वर्ष की बजाय जीवन भर का वनवास क्यों नहीं मांगा क्योंकि भगवान श्रीराम 14 वर्ष बाद तो और अधिक बलशाली होने वाले थे। वनवास जाते समय तो नवयुवक थे और बाद में भी उनके बाहुबल और पराक्रम के साथ ही अनुभव में वृद्धि की संभावना थी। ऐसे में कैकयी जैसी बुद्धिमान महिला यह सोच भी नहीं सकती थी कि 14 वर्ष बाद राम अयोध्या का राज्य पुनः प्राप्त करने लायक नहीं रहेंगें।
कैकयी जानती थी कि देवता, ऋषि गण, तथा मुनि लोग भगवान श्रीराम और रावण के बीच युद्ध की संभावनाऐं ढूंढ रहे हैं। उन सभी के रणनीतिकार रावण के पतन के लिये भगवान श्रीराम की तरफ आंख लगाये बैठे हैं। ऐसे में भगवान श्रीराम अगर अयोध्या में राज सिंहासन पर बैठेंगे तो चैन से नहीं रह पायेंगे और इससे प्रजा पर भी कष्ट आयेगा। फिर रावण वध उस समय के सभी राजाओं की सबसे बड़ी प्राथमिकता थी और प्रमुख होने के कारण अयोध्या पर ही इसका दारोमदार था।
जब वनवास में भगवान श्री राम अपने भ्राता लक्ष्मण और सीता के साथ अगस्त्य ऋषि के आश्रम पर आये तो देवराज इंद्र उनको देखकर चले गये जो संभावित राम रावण युद्ध पर ही विचार करने वहां आये थे। वहीं अगस्त्य ऋषि ने उनको अलौकिक धनुष दिया जिससे रावण का वध हुआ।
अपने यज्ञ की रक्षा करने के लिये जब ऋषि विश्वमित्र भगवान श्रीराम का हाथ मांगने दशरथ की दरबार में पहुंचे तो उनका पिता हृदय सौंपने को तैयार नहीं हुआ। तब गुरु वशिष्ठ ने उनको समझाया तब कहीं दशरथ ने भगवान श्रीराम को ऋषि विश्व मित्र के साथ भेजा। यहां यह भी याद रखना चाहिए कि गुरु वशिष्ट ने विश्वमित्र ने अपनी पुरानी शत्रुता को इसलिये भुला दिया था क्योंकि उस समय समाज में रावण का संकट विद्यमान था जिसका निवारण आवश्यक था। इस तरह भगवान शिव की तपस्या से अवध्य हो चुके रावण की भूमिका तैयार हुई थी।
इससे एक संदेश मिलता है कि राज्य और समाज के उत्थान और रक्षा के लिये दूरगामी अभियान बनाने पड़ते हैं जिनके परिणाम में बरसो लग जाते हैं। केवल नारों और धर्म की रक्षा के लिये हिंसक संघर्ष का भाव रखने से काम नहीं चलता। दूसरी बात यह भी कि ऋषि विश्वमित्र, अगस्त्य, वशिष्ठ, भारद्वाज मुनि तथा अन्य अपने तपबल से रावण का अस्त्र शस्त्रों के साथ ही शाप देकर भी संहार करने में समर्थ थे पर तपस्या के कारण अहिंसक प्रवृत्ति के चलते उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनको रावण वध या पतन से मिलने वाली प्रतिष्ठा का लोभ नहीं था और उन्होंने उस समय के महान धनुर्धर भगवान श्रीराम को इस कार्य के लिये चुनकर समाज के लिये एक आदर्श के रूप में प्रतिष्ठत करने का रावण वध के साथ ही दूसरा अभियान प्रारंभ कर उसे पूरा किया जिसमें उस समय के देवराज इंद्र जैसे समृद्ध और पराक्रमी पुरुषों का भी सहयोग मिला। सीधी बात यह है कि ऐसे अभियानों के लिये नेता के रूप में एक शीर्षक मिल जाता है पर आवश्यक यह है कि उसके लिये सामूहिक प्रयास हों।
दशहरे पर रावण का पुतला जलाना अब कोई खुशी की बात नहीं रही। भ्रष्टाचार, बेईमानी, मिलावट, तथा महंगाई के रूप में यह रावण अब अनेक सिर लेकर विचर रहा है। इनसे लड़ने के लिये हर भारतीय में विवेक, संतोष, तथा सहकारिता के भाव का होना जरूरी है। अब बुद्धि को धनुष, विचार को तीर तथा संकल्प को गदा की तरह साथ रखना होगा तभी अब अदृश्य रूप से विचर रहे रावण के रूपों का संहार किया जा सकता है।
इस दशहरे के अवसर इसी पाठ के साथ इस ब्लाग लेखक के मित्र ब्लाग लेखकों तथा पाठकों इस पर्व की ढेर सारी बधाई। उनका भविष्य मंगलमय हो यही हमारी कामना है।
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लेखक संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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Tuesday, October 5, 2010

वादा पूरा न होने की शिकायत-हिन्दी व्यंग्य कविता (vada pura n hone ki shikayat-hindi satire poem)

वादों पर वादे कर
लोग सीढ़ियां चढ़कर
सिंहासन तक पहुंच जाते हैं,
मगर वादे कभी पूरे नहीं होते
हैरानी इस बात की है कि
बाज़ार के सौदागरों के
वादे फिर भी रोज़ बिक जाते हैं।
-------------
वादा कर भी वह हमेशा मुकर गये
हमने शिकायत की तो
जवाब दिया
‘मौका पड़ने हम ढेर सारे
वादे ज़माने से कर आते हैं
कि हमें भी याद नहीं रहते,
अगर हमें याद हो
और उसे पूरा न करें
तब तुम शिकायत में कुछ कहते।’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Thursday, September 30, 2010

अयोध्या में राम मंदिर पर न्यायालय का निर्णय-हिन्दी लेख (court vardict on ram mandir or ram janma bhoomi in ayodhya

अंततः अयोध्या में राम जन्मभूमि पर चल रहे मुकदमे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला बहुप्रतीक्षित फैसला आ ही गया। तीन जजों की खण्डपीठ ने जो फैसला दिया वह आठ हज़ार पृष्ठों का है। इसका मतलब यह है कि इस फैसले में लिये हर तरह के पहलू पर विचार करने के साथ ही हर साक्ष्य का परीक्षण भी किया गया होगा। तीनों माननीय न्यायाधीशों ने निर्णय लिखने में बहुत परिश्रम करने के साथ ही अपने विवेक का पूरा उपयोग किया इस बात में कोई संदेह नहीं है। फैसले से प्रभावित संबंधित पक्ष अपने अपने हिसाब से इसके अच्छे और बुरे होने पर विचार कर आगे की कार्यवाही करेंगे क्योंकि अभी सवौच्च न्यायालय का भी दरवाजा बाकी है। यह अलग बात है कि सभी अगर इस फैसले से संतुष्ट हो गये तो उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार ही काम करेंगे।
इस फैसले से पहले जिस तरह देश में शांति की अपीलें हुईं और बाद में भी उनका दौर जारी है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि धार्मिक संवेदशीलता के मामले में हमारा देश शायद पूरे विश्व में एक उदाहरण है। सुनने में तो यह भी आया है कि इस ज़मीन पर विवाद चार सौ वर्ष से अधिक पुराना है। साठ साल से अब अदालत में यह मामला चल रहा था। पता नहंी इस दौरान कितने जज़ बदले तो कई रिटायर हो चुके होंगे। प्रकृति का नियम कहें या सर्वशक्तिमान की लीला जिसके हाथ से जो काम होना नियत है उसी के हाथ से होता है।
टीवी चैनलों के अनुसार तीनों जजों ने एक स्वर में कहा-‘रामलला की मूर्तियां यथा स्थान पर ही रहेंगी।’
अलबत्ता विवादित जमीन को संबंधित पक्षों  में तीन भागों में बांटने का निर्णय दिया गया है। इस निर्णय के साथ ही कुछ अन्य विषयों पर भी माननीय न्यायाधीशों के निर्णय बहुमत से हुए हैं पर मूर्तियां न हटाने का फैसला सर्वसम्मत होना अत्यंत महत्वपूर्ण तो है ही, इस विवाद को पटाक्षेप करने में भी सहायक होगा।
चूंकि यह फैसला सर्वसम्मत है इसलिये अगर सवौच्च न्यायालय में यह मामला जाता है तो वहां भी यकीनन न्यायाधीश इस पर गौर जरूर फरमायेंगे.ऐसा पिछले मामलों में देखा गया है यह बात कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं। वैसे ऐसे मामलों पर कानूनी विशेषज्ञ ही अधिक बता सकते हैं पर इतना तय है कि अब अगर दोनों पक्ष न्यायालयों का इशारा समझ कर आपस में समझ से एकमत होकर देशहित में कोई निर्णय लें तो बहुत अच्छा होगा।
निर्मोही अखाड़ा एक निजी धार्मिक संस्था है और उसका इस मामले में शामिल होना इस बात का प्रमाण है कि अंततः यह विवाद निजी व्यक्तियों और संस्थाओं के बीच था जिसे भगवान श्रीराम के नाम पर संवदेनशील बनाकर पूरे देश में प्रचारित किया गया। बरसों से कुछ लोग दावा करते हैं कि भगवान श्री राम के बारे में कहा जा रहा है कि वह हम भारतीयों के लिये आस्था का विषय है। ऐसा लगता है कि जैसे भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र को मंदिरों के इर्दगिर्द समेटा जा रहा है। सच बात तो यह है कि भगवान श्रीराम हमारे न केवल आराध्य देव हैं बल्कि अध्यात्मिक पुरुष भी हैं जिनका चरित्र मर्यादा के साथ जीवन जीना सिखाता है। यह कला बिना अध्यात्मिक ज्ञान के नहीं आती। इसके लिये दो मार्ग हैं-एक तो यह कि योग्य गुरु मिल जाये या फिर ऐसे इष्ट का स्मरण किया जाये जिसमें योग्य गुरु जैसे गुण हों। उनके स्मरण से भी अपने अंदर वह गुण आने लगते हैं। एकलव्य ने गुरु द्रोण की प्रतिमा को ही गुरु मान लिया और धनुर्विद्या में महारथ हासिल की। इसलिये भगवान श्री राम का हृदय से स्मरण कर उन जैसे सभी नहीं तो आंशिक रूप से कुछ गुण अपने अंदर लाये जा सकते हैं। बाहरी रूप से नाम लेकर या दिखाने की पूजा करने से आस्था एक ढोंग बनकर रह जाती है। हम जब धर्म की बात करते हैं तो याद रखना चाहिये कि उसका आधार कर्मकांड नहीं  बल्कि अध्यात्मिक ज्ञान है और भगवान श्री राम उसके एक आधार स्तंभ है। हम जब उनमें आस्था का दावा करते हुए वैचारिक रूप संकुचित होते हैं तब वास्तव में हम कहीं न कहीं अपने हृदय को ही धोखा देते हैं।
मंदिरों में जाना कुछ लोगों को फालतू बात लगती है पर वहां जाकर अगर अपने अंदर शांति का अनुभव किया जाये तब इस बात का लगता है कि
मन की मलिनता को निकालना भी आवश्यक है। दरअसल इससे ध्यान के लाभ होता है। अगर कोई व्यक्ति घर में ही ध्यान लगाने लगे तो उससे बहुत लाभ होता है पर निरंकार के प्रति अपना भाव एकदम लगाना आसान नहीं होता इसलिये ही मूर्तियों के माध्यम से यह काम किया जा सकता है। यही ध्यान अध्यात्मिक ज्ञान सुनने और समझने में सहायक होता है और तब जीवन के प्रति नज़रिया ही बदल जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि मंदिर और मूर्तियों का महत्व भी तब है जब उनसे अध्यात्मिक शांति मिले। बहरहाल इस फैसले से देश में राहत अनुभव की गयी यह खुशी की बात है।
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Sunday, September 26, 2010

चाटुकारिता-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (chatukarita-hindi vyangya kavitaen)

महंगाई ने इंसान की नीयत को
सस्ता बना दिया है,
पांच सौ और हजार के नोट
छापने के फायदे हैं
इसलिये एक बड़े नोट के साये ने
बदनीयत लोगों को खरीदकर
थोकबंद जमा कर दिया है।
--------
जिंदगी में सफलता के लिये
अब पापड़ नहीं बेलने पड़ते,
चाटुकारिता से ही बन जाती है चाट
बस, बड़े लोगों की दरबार में हाज़िर होकर
उनकी तारीफ में चंद शब्द कहीं ठेलने पड़ते।
-------
अपने हाथों से ही सजा देना अपनी छबि
इंसान खो चुके हैं पहचान अच्छे बुरे की।
अपने आप बन रहे सभी मियां मिट्ठू
तारीफों में परोसते बात ऐसी, जो लगे छुरे की।
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Sunday, September 19, 2010

एकता की अपील-व्यंग्य कविता (ekta kee apeel-hindi vyangya kavita

फिर हुआ है शहर में विस्फोट
इसलिये
आओ एकता की अपील के लिये
कुछ नये शब्द चुनें
जिनसे नयापन लगे
तभी लोगों को समझा पायेंगे।
एक जैसे शब्द लिखते हुए
बीत गये बहुत सारे वर्ष
इसलिये उनका प्रभाव नहीं दिखता
हम होंगे कामयाब तभी
जब नयापन लायेंगे।
हादसे रोकना हमारे बस में नहीं है
पर एकता की अपीलों में
हम अपना पूरा दम दिखायेंगे।
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Sunday, September 12, 2010

कैमरा जब पिंजरा बन जाता है-हिन्दी व्यंग्य (sting operation by camra-hindi hasya vyngya)

कैमरे के सामने फोटो खिंचवाने का सभी को शौक होता है। जिन लोगों की रोजी रोटी ही कैमरे के सामने होने से चलती है उनके लिये तो अपनी अदाऐं दिखाना ही धंधा हो जाता है। यह धंधा करने वाले इसके इतने आदी हो जाते हैं कि उसे छोड़ना तो दूर उसका सोचना भी उनको डरा देता है। कैमरर उनके लिये एक महल की तरह होता है जिसमें एक बार आने पर हर कोई रहना चाहताहै पर कुछ लोगों के लिये यह पिंजरा भी बन जाता है। एक तो पिंजरा उनके लिये होता है जो मज़बूरी की वजह से इसके सामने टिके रहना चाहते हैं क्योंकि यहीं से उनकी रोजी रोटी चलती है पर मन उनका नहीं होता। दूसरे वह लोग हैं जिनको जबरन तस्वीर बनाकर इसमें लाया जाता है।
आजकल यही कैमरा टीवी चैनल तथा खोजी पत्रकारों के लिये पिंजरा (sting operation) बन गया है और वह इसे लेकर पकड़ अभियान-स्टिंग ऑपरेशन  (sting operation) चलाते हैं। कभी अभिनेता, कभी नेता, कभी अधिकारी तो कभी संत इस कैमरे में ऐसे कैद होते हैं जैसे कि पिंजरे में चूहा।
बड़ा दिलचस्प दृश्य टीवी पर चलता है जब इसमें कैदी की तरह फंसे खास शख्सियतों का असली रूप सामने आता है। उस समय हंसते हुए पेट में बल पड़ जाते हैं क्योंकि यह देखकर मजा आता है कि ‘देखो, कैसे धंधे पानी की बात कर यह आदमी जाल में फंस रहा है।’ जैसे मछली कांटे में फंसती है और जैसा चूहा पिंजर में फंसकर छटपटाता है।
शिक्षण संस्था में प्रबंधक पद पर व्यक्ति आसीन लोग बड़े आदर्श की बातें करते हैं पर जब कैमरे में कैद होते हैं तो क्या कहते हैं कि ‘इतनी रकम दो तो मैं तुम्हें कॉलिज में प्रवेश दिला दूंगा। इस विषय में इतने तो उस विषय में इतने पैसे दो। इसकी रसीद नहीं मिलेगी।’
बिचारा धंधा कर रहा है पर उसे पता नहीं कि वह चूहे की तरह फंसने जा रहा है। बड़े विद्वान बनते हैं पर लालच उनकी अक्ल को चूहे जैसा बना देती है। हा...हा...
फिल्मी लाईन वाले कहते हैं कि उनके यहां लड़कियों का शोषण नहीं होता पर उनका एक अभिनेता-खलपात्र का अभिनय करने वाला-एक लड़की से कह रहा था कि ‘यहां इस तरह ही काम चलता है। आ जाओ! तुम मेरे पास आ जाओ।’
कुछ जनकल्याण का धंधा करने वाले भी फंसे गये जो केवल सवाल उठाने के लिये पैसे मांग रहे थे।
ऐसे में हंसी आती है। यह देखकर हैरानी होती है कि कैमरा किस तरह पिंजरा बन जाता है। यह फंसने वाले कोई छोटे या आम आदमी नहीं होतें बल्कि यह कहीं न कहीं आदर्श की बातें कर चुके वह लोग दिखाई देते हैं जिनका समाज में प्रभाव है।
सबसे अधिक मजा आता है संतों का चूहा बनना। अधिकारी, नेता और अभिनेता तो चलो बनते ही लोग पैसा कमाने के लिये हैं पर संतों का पेशा ऐसा है जिसमें आदर्श चरित्र की अपेक्षा की जाती है। यह संत भारतीय अध्यात्म में वर्णित संदेशों को नारों की तरह सुनाते हैं
‘काम, क्रोध, लोभ और मोह में नहीं फंसना चाहिये।’
‘यह जगत मिथ्या है।’
‘सभी पर दया करो।’
‘किसी भी प्रकार की हिंसा मत करो।
‘अपनी मेहनत से कमा कर खाओ।’
आदि आदि।
जब यह बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि कितने मासूम और भोले हैं। इनमें सांसरिक चालाकी नहीं है तभी तो ऐसे उल्टी बातें-जी हां, अगर आम आदमी ऐसा कहे तो उसे पागल समझा जाता है-कर रहे हैं शायद संत हैं इसलिये।
मगर कैमरे में यह बड़े संत चूहे की तरह फंसते नज़र आते हैं तब क्या कहते हैं कि
‘चिंता मत करो। तुम्हारा काम हो जायेगा। अरे यहां कोई तुम्हारा बाल बांका भी नहीं कर सकता। यहां तो बड़े बड़े ताकतवर लोग मत्था टेकने आते हैं।’’
‘तुम कहंीं से भी धन लाओ हम उसका सलीके से उपयोग करना सिखा देंगे।’
‘हम तुम्हें ठेका दिला देंगे, हमारा कमीशन दस प्रतिशत रहेगा। हमें कार और पिस्तौल दिलवा देना।’
ऐसी ऐसी विकट बातें सुनकर कानों में यकीन नहीं होता। सोचते हैं कि-अरे, यार इसे तो रोज टीवी पर देखते हैं, कहां इसे संत और विद्वान समझते हैं यह तो बिल्कुल एक मामूली दुकानदार की तरह बात करने के साथ ही मोलभाव भी कर रहा है।’
पिंजरे में फंसे संत कहते हैं कि ‘चिंता मत करो, हमारे यहां तो तुमसे भी बड़े खतरनाक लोग आसरा पाते हैं’।
तब हम सोचते हैं कि यह रावण और कंस के विरुद्ध प्रतिदिन प्रवचन करने वाले उनसे भी खतरनाक लोगों को पनाह देते हैं। यहां यह बता दें कि कंस और रावण खतरनाक तत्व थे पर फिर भी कहीं न कहीं के राजा थे और उनके कुछ सिद्धांत भी थे पर आज के यह खतरनाक तत्व ऐसे हैं कि पुराने खलनायक हल्क नज़र आते हैं।
यह संत लोग कैमरे में फंसे पिंजरे में कहते हैं कि ‘कितना भी काला धन लाओ कमीशन देकर उसे सफेद पाओ।’
ऐसे प्रसंगों में एक संत की यह बात सबसे अज़ीब लगी कि ‘अमेरिका में कोई भी काम हो एक मिनट में हो जायेगा।’
मतलब वहां भी ताकतवर इंसानों की खरीद फरोख्त कर लेते हैं-वाकई धर्म की आड़ में अधर्म कितना ताकतवर हो जाता है। अभी तक अमेरिका और ब्रिटेन के बारे में यह धारणा हमारे यहां रही है कि वहां के लोग देशभक्त होते हैं और इस तरह नहीं बिकते पर एक मिनट में काम होने वाली बात से तो यही लगता है कि बाज़ार के वैश्वीकरण के साथ ही अपराध और आतंक का भी वैश्वीकरण हो गया है। उसके साथ ही हो गया है उनको धर्म की आड़ देने का व्यापार।
किस्सा मज़ेदार है। पकड़ अभियान-स्टिंग ऑपरेशन  (sting operation) करने वालों ने संत को बताया कि उनके साथ जो महिला है वह अमेरिका से आर्थिक अपराध कर भागी है। उसे शरण चाहिये। वह संत अपने आश्रम में शरण देने को तैयार है और कहता है कि
‘यहां तुम किसी को कुछ मत बताना! कहना यह कि ध्यान और दर्शन के लिये आयी हूं।’
बेसाख्ता हमारे मन में बात आयी कि ‘जैसे यह ध्यान और दर्शन करा रहे हैं।’
क्या सीख है! दर्शन और ध्यान की आड़ में छिप जाओ। यही संत कैमरे के सामने जब बोलते हैं तो उनके भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं पर इन पकड़ कर्ताओं ने उनको अपने गुप्त कैमरे को पिंजरा बनाकर चूहे की तरह फंसा डाला।
फिल्म वालों ने एक अंधविश्वास फैला रखा है कि भूत केवल आदमी को दिखता है मगर कैमरे में नहीं फंसता। एक फिल्म आई थी नागिन! जिसमें एक नागिन रूप बदल कर अपने नाग के हत्यारों से बदला ले रही थी। उसमें वह हत्यारों को तो अपनी इंसानी प्रेमिका में दिखती थी और बाद में उनको डस कर बदला लेती थी। उसमें एक नायक उसे पहचान लेता है क्योंकि वह कांच में नागिन ही दिखाई देती है। कैमरे में ही यह दर्पण भी होता है। जिस तरह वह रूपवती स्त्री कांच में नागिन दिखाई देती थी वही कैमरे की भी असलियत होती है। यह धर्म भी शायद एक भूत है जो पिंजरा बन जाने पर कैमरे में अधर्म जैसा दिखाई देता है। रहा धर्म का असली रूप में दिखने का सवाल तो उसके लिये चिंतन का होना जरूरी है क्योंकि वह एक अनुभूति है जो बाहर हमारे आचरण के रूप में अभिव्यक्त होती है और उसके बारे में निर्णय दूसरे लोग करते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि सच्चे धर्म वाले कभी किसी पिंजरे में नहीं फंसते।
आखिरी बात यह कि यह व्यंग्य का विषय नहीं बल्कि गंभीर बात है कि श्रीमद्भागवत गीता एक कैमरे का रूप है जिसका अध्ययन कर उसकी बात समझें तो अपना चित्र स्वयं ही खीचकर देख सकते हैं और साथ ही माया के पिंजरे में फंसे लोगों की अदायें देखने का लुत्फ् भी उठा सकते हैं। गीता सिद्ध जानते हैं कि धर्म क्या है और उसकी रक्षा कैसे होती है। उनके लिये कैमरा कभी पिंजरा नहीं बन पता क्योंकि वह उसके सहज अभ्यासी होते हैं और कथनी करनी में अंतर न होने की वजह से कभी चूहे नहीं बनते।
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Thursday, August 26, 2010

कसूरवारों की शख्सियत-हिन्दी शायरी (kasurvaron ki shakhsiyat-hindi shayari)

कौन कहता है
अखबार की खबर बासी हो जाती है,
बस!
हादसों, हत्याओं और हमलों की घटनाओं में
इलाकों के नाम और चरित्र बदल जाते हैं
इसलिये कहानियां ताजी हो जाती हैं।
----------
लूट और व्यापार में
अब अंतर नज़र नहीं आता है,
झूठ भी सच की तरह
बाज़ार में सज जाता है,
कातिलों के भी इंसानी हकों की
मांग उठती है चारों तरफ
कसूरवारों के कसूर की बजाय
जाति, धर्म और भाषा के आधार पर भी
उनकी शख्सियत की पहचान कर
सजा देने या बहाल करने का
फैसला अब सरेआम किया जाता है।
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Sunday, August 22, 2010

मतलब का सरफरोश-हिन्दी शायरी (matlab ka sarfarosh-hindi shayari)

लुट रहे हैं शहर, मगर हर आदमी खामोश है,
खुलेआम खंजर चलते, जैसे कि ज़माना बेहोश है।
सरेराह खज़ाना लुट गया, किसी ने देखा नहीं,
पहरेदारों के हिस्सा मिल जाने पर बहुत जोश है।
हर शहरी डरा हुआ है हादसों के खौफ से,
मगर कातिलों की नज़र न पड़े, इसलिये खामोश है।
दीपक बापू ढूंढ रहे जिंदा दिल को सड़कों पर,
दौड़ती भीड़ में हर कोई, अपने मतलब का सरफरोश है।
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Saturday, August 14, 2010

भूत पर यकीन-हास्य कविता (bhoot par yakin-hasya kavita)

पोते ने दादा से पूछा
‘‘अमेरिका और ब्रिटेन में
कोई इतनी भूतों की चर्चा नहीं करता,
क्या वहां सारी मनोकामनाऐं पूरी कर
इंसान करके मरता है,
जो कोई भूत नहीं बनता है।
हमारे यहां तो कहते हैं कि
जो आदमी निराश मरते हैं,
वही भूत बनते हैं,
इसलिये जहां तहां ओझा भूत भगाते नज़र आते हैं।’’

दादा ने कहा-
‘‘वहां का हमें पता नहीं,
पर अपने देश की बात तुम्हें बताते हैं,
अपना देश कहलाता है ‘विश्व गुरु’
इसलिये भूत की बात में जरा दम पाते हैं,
यहां इंसान ही क्या
नये बनी सड़कें, कुऐं और हैंडपम्प
लापता हो जाते हैं,
कई पुल तो ऐसे बने हैं
जिनके अवशेष केवल काग़ज पर ही नज़र आते हैं,
यकीनन वह सब भूत बन जाते हैं।’’
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Thursday, August 12, 2010

एकता की मेलागिरी-हिन्दी हास्य कविता (ekta ki melagiri-hindi hasya kavita)

च्रेले ने कहा गुरु से
‘आप समाज में एकता की बात
हमेशा लोगों के सामने चलाते हो,
उनसे तालियां बजवाते हो,
पर एक बात समझ में नहीं आयी
आप ही जाति, भाषा और धर्म का नाम लेकर
लोगों के आपस में बंटे होने की तरफ
करते हैं इशारा,
जबकि क्या आम इंसान आपस में लड़ेगा
इन छोटी बातों को लेकर
वह तो काम से फुर्सत नहीं पाता बिचारा,
कभी कभी अपने समाज की
तरक्की का प्रश्न भी उठाते हो,
फिर भी एकता के मसीहा नाम से जाने जाते हो।’
सुनकर गुरुजी बोले,
कमबख्त!
इतने साल से करता रहा है चेलागिरी,
सीख नहीं पाया यह एकता की मेलागिरी,
आम इंसान को कहां फुरसत है
जाति, भाषा और धर्म के नाम लड़ने की
पर हमें जरूरत है उसके दिमाग में
एकता का भूत जड़ने की,
हर समाज में जाकर उसके उत्थान की
बात हम यूं ही करते हैं,
बंटे रहें लोग इसी तरह
अपने समाज की चिंता में वही मरते हैं,
एकता लाने के लिये
उनमें फूट डालना जरूरी है,
अपना घर भरने के लिये
आम इंसान की जेब की लूट जरूरी है,
नहीं दिखायेंगे टुकडे़ टुकड़े समाज के,
बज जायेंगी बाजे अपने राज के,
एकता का मसीहा
जंग के बिना संभव नहीं,
यह बात तुम क्यों नहीं समझ पाते हो।।
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Sunday, August 8, 2010

खेल प्रबंधन-हास्य कविता (sports manegment-hindi comic poem)

खेल के पीरियड में
बहुत से छात्र नहीं आये,
यह सुनकर विद्यालय के
प्राचार्य तिलमिलाये
और अनुपस्थित छात्रों को फटकारा
‘‘तुम लोगों को शर्म नहीं आती
खेल के समय गायब पाये जाते हो,
क्या करोगे जिंदगी में सभी लोग,
बिना फिटनेस के ऊंचाई पर जाने के
सपने यूं ही सजाते हो,
अरे, खेलने में भी आजकल है दम,
पैसा नहीं है इसमें कम,
कोई खेल पकड़ लो,
दौलत और शौहरत को अपने साथ जकड़ लो,
देश का भी नाम बढ़ेगा,
परिवार का भी स्तर चढ़ेगा,
यही समय है जब अपनी सेहत बना लो
वरना आगे कुछ हाथ नहीं आयेगा।’’

एक छात्र बोला
‘‘माननीय
आप जो कहते है वह सही है,
मगर हॉकी या बल्ला पकड़ने से
अधिक प्रबंध कौशल होना
सफलता की गारंटी रही है,
पैसा तो केवल क्रिकेट में ही है
बाकी खेलों में तो बिना खेले ही
बड़े बड़े बड़े खेल हो जाते हैं,
जिन्होंने सीख ली प्रबंध की कला
वह चढ़ जाते हैं शिखर पर
नहीं तो बड़े बडे खिलाड़ी
मैदान पर पहुंचने से पहले ही
सिफारिश न होने पर फेल हो जाते हैं,
अच्छा खिलाड़ी होने के लिये जरूरी नहीं
कोई खेले मैदान पर जाकर खेल,
बस,
निकालना आना चाहिये उसमें से कमीशन की तरह तेल,
आपके यहां प्रबंध का विषय भी हमें पढ़ाया जाता है,
पर उसमें नये ढंग का तरीका नहीं बताया जाता है,
हम रोज अखबारों में पढ़ते हैं
जब होता है विद्यालय में खेल का पीरियड
तब हम खेल के प्रबंध पर चर्चा करते हैं,
किस तरह खेलों में नाम कमायें,
तय किया है कि ‘कुशल प्रबंधक‘ बन जायें,
आप बेफिक्र रहें
किसी से कुछ न कहें,
कोई न कोई आपके यहां का छात्र
खेल जगत में नाम कमायेगा,
मैदान पर नहीं तो
खेल प्रबंधन में जाकर
अपने साथ विद्यालय की इज्ज़त बढ़ायेगा,
उसकी खिलाड़ी करेंगे चाकरी,
खिलाड़िनों को भी नचायेगा,
भले ही न पकड़ता हो हॉकी,
बॉल से अधिक पकड़े साकी,
पर खेल जगत में नाम कमायेगा।’’

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Monday, August 2, 2010

कबाड़ चैनल-हिन्दी हास्य व्यंग्य (kabad news chainal-hindi hasya vyangya)

एक कबाड़ी ने जब सुना कि अमुक चैनल अपना पूरा तामझाम बेचकर दूसरी जगह से चालू होने वाला है तो वह तत्काल अपने साथी दूसरे कबाड़ी के पास पहुंचा।
दूसरे कबाड़ी ने उसे देखते ही कहा-‘आ गये जासूसी करने!’
पहल कबाड़ी बोला-‘‘नहीं यार, आज तो मैं एक साझा काम करने का प्रस्ताव लाया हूं। हम दोनों अमुक टीवी चैनल को खरीद लेते हैं वह बिक रहा है और दूसरी जगह से शुरु होने वाला है। उसके प्रबंधक नाम के अलावा सबकुछ बेचने वाले हैं। वहां के एक चपरासी ने मुझे बताया जो कि वहां से अब निकाले जाने वाला है।’
दूसरे कबाड़ी ने कहा-‘‘ तो हम क्या करेंगे? इतना महंगा सामान होगा, हमारे किस काम का? उसे बेचेंगे कहां?’’
पहले कबाड़ी ने कहा-‘‘बेचना नहीं है। हमें वह चैनल कबाड़ी न्यूज चैनल के नाम से चलाना है। अरे, ठीक है हम कबाड़ी हैं पर हमारे पास पैसा कोई कम नहीं है। फिर अपने बच्चों के नाम से कबाड़ी नाम का संबोधन कितना बुरा लगता हैै।’’
दूसरे कबाड़ी ने कहा-‘मूर्ख कहीं के! कबाड़ी का काम है पुरानी चीजें खरीद कर बेचना न कि घर में रखना।’
पहले कबाड़ी ने कहा-‘‘लगता है कि अपने बच्चों के भविष्य से तुम्हें प्रेम नहीं है। फिर आगे चलकर हम भी नयी जगह पर वह चैनल चलायेंगे तब सारा सामान बेच देंगे।’
दोनों जब बातचीत कर रहे थे तब उनका ध्यान पास बैठे उस आदमी की तरफ नहीं गया जो चुपचाप एक बैंच पर बैठ कर बीड़ी पी रहा था। वह एकदम मैला कुचला सफेद पायजमा कुर्ता पहने हुए था। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और बालों से ऐसा लग रहा था कि जैसे बरसों से नहाया न हो। दरअसल वह तीसरा कबाड़ी था जो व्यवसाय से संबंधित गोपनीय सूचनायें एकत्रित करने दूसरे कबाड़ी के पास आकर बैठता था।
दूसरे कबाड़ी ने कहा-‘पर चैनल चलाने का अपने पास तो अनुभव ही नहीं है। हां, यह बात सही है कि मैं समाचारों का शौकीन हूं और अमुक चैनल पहले बहुत देखता था पर अब वह तो बेकार हो गया है।’
पहले ने कहा-‘यार, कैसे कबाड़ी हो, तुम्हें पता है यहां अनुभव वगैरह तो केवल दिखाने के लिये हैं। वरना सच तो यह है कि अधिकतर लोग धूप में बाल सफेद करते हैं। समाचार चैनल चलाना कौन सा मुश्किल काम है।’
दूसरे ने कहा-‘जरा अपनी योजना बताओ तो सही।
पहला कबाड़ी-‘सुनो! समाचार चैनलों में एक घंटे के दौरान केवल दो मिनट के समाचार होते हैं बाकी तो इधर उधर की कबाड़ में मिलने वाली कटिंग से ही काम चलायेंगे। अपना घीसू कबाड़ी है न............’
दूसरे ने कहा-‘वही न! जो फिल्म लाईन में चला गया है।’
पहले ने कहा-‘काहे की फिल्म लाईन! पुरानी फिल्में कबाड़ में लाकर बेचता है। उससे कहेंगे कि अब वह थोड़ा कम पुरानी फिल्में खरीद कर हमारे अमुक चैनल पर दे। वैसे भी आजकल की फिल्में तीन दिन में ही कबाड़ हो जाती हैं। फिर क्रिकेट के खिलाड़ियों का रैम्प में नाचना, किसी फिल्म अभिनेता द्वारा लोगों से मारपीट की सच्ची घटना तथा लाफ्टर शो जैसे कार्यक्रम दूसरे चैनल आज दिखाते हैं हम तीन दिन बाद कबाड़ में खरीद कर उसे चलायेंगे। वैसे इस देश में गिनती के तीन चार लोग ऐसे भी हैं जो अपने छिछोरेपन की वजह से हमेशा ही न्यूज में बने रहते हैं। उनका भी सभी कुछ मसाला कबाड़ में मिल जायेगा। घीसू कबाड़ी के रिश्ते दूर दूर तक हैं। कोई ना करे यह संभव नहीं है। प्रबंध निदेशक उस चपरासी को बनायेंगे जिसने यह समाचार दिया है। हां, बस दो मिनट के लिये कोई समाचार वाचक रखना पड़ेगा और संपादक भी। ’
दूसरे ने कहा-‘तुम चिंता मत करो। समाचार संपादक तो मैं ही बन जाऊंगा क्योंकि आजकल समाचार न सुन पाने की भड़ास निकालने के लिये मौका मुझे चाहिए। वाचक की चिंता मत करो मेरा भतीजा निकम्मा घूम रहा है। वह इस काम के लिये कई जगह आवेदन भेज चुका है उसको काम पर रख लेंगे। मैंने भाई से कर्जा लेकर यह काम शुरु किया था तो उसका भी बदला चुक जायेगा। हां, एक तो महिला या लड़की भी तो रखनी पड़ेगी।’
पहले ने कहा-‘उसकी चिंता नहीं है। मेरी साली इसके लिये योग्य है।’
दूसरे ने कहा-‘यार, पर मुझे डर लग रहा है। इतना बड़ा काम है!
पहले ने कहा-‘तुमने अगर कबाड़ का काम किया है इसलिये कोई भी काम कर लोगे। इसलिये तो चैनल का ही नाम मैंने कबाड़ी सुझाया है।’
दूसरे ने कहा-फिर देर किस बात की।’
पहले ने कहा-‘ठीक है, तो मेरी मोटर साइकिल पर बैठो और चलो।’
दोनों मोटर साइकिल पर चल पड़े। थोड़ी दूर जाकर वह बंद हो गयी तो दूसरा कबाड़ी बोला-‘यार, कैसी मोटर साइकिल लाये हो।’
पहला कबाड़ी-‘कल ही कबाड़ में खरीदी है कोई पुरानी नहीं लाया।’
थोड़ी देर तक दोनों पैदल ही मोटर साइकिल घसीटते रहे तब कहंी जाकर उसको बनाने वाली दुकान मिली। वहां एक घंटा लग गया। मैकनिक से बहुत चिकचिक होती रही। दोनों बैठकर फिर अपनी राह चले। थोड़ी दूर चले तो पिछला पहिये से हवा निकल गयी। फिर दोनों घसीटते हुए पंचर बनवाने की दुकान पर आये।
पंचर बनाने वाले ने पहिये में से ट्यूब निकाला और उसे बनाने लगा। उसके यहां छोटे टीवी पर अमुक चैनल आ रहा था। दूसरा कबाड़ी उसे देखने लगा तो वहां ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी। दूसरा कबाड़ी एकदम चिल्ला पड़ा-‘अरे यार देख, अमुक चैनल बिक गया है और दूसरी जगह से शुरु होगा। किसी चालू कबाड़ी ने खरीदा है।’
पहले कबाड़ी का मुंह खुला का खुला रह गया-‘बहुत बुरा हुआ। अब समझ में आया। अरे, यही चालू कबाड़ी वही था जो हमारी बातें सुन रहा था। मैं उसे जानता हूं पर वहां वेश बदले बैठा था इसलिये समझ नहीं पाया। वह तुम्हारे यहां तुम्हारी जासूसी करने अक्सर ऐसे ही आता है मुझे उसके एक नौकर ने बताया था।’’
दूसरा कबाड़ी बोला-‘‘उसने चैनल का नाम भी रख दिया है, ‘‘कबाड़ न्यूज चैनल’’, हमारी पूरी योजना चोरी कर गया। चल उससे रॉयल्टी मांगते हैं।’’
पहला बोला-‘‘कोई फायदा नहीं। उसने अपने चैनल का नाम ‘कबाड़ी’ नहीं बल्कि ‘कबाड़’ चैनल रखा है।’
दूसरा कबाड़ी बोला-‘‘तेरे को धंधे  का उसूल नहीं मालुम। अरे, हम पुराने सामान खरीदने और बेचने वाले हैं न कि उनके इस्तेमाल करने वाले। तुझे यह कबाड़ में खरीदी मोटर साइकिल नहीं लानी थी। इस चालू कबाड़ी को देख नयी कार चलाता है और कितनी जल्दी फुर्र से उड़कर वहां पहुंच गया।’
पहले ने कहा-‘‘चिंता मत करो, खरीदा तो है पर चला नहीं पायेगा।’
दूसरे ने कहा-‘‘पर तुमने तो कहा था कि कबाड़ी कुछ भी कर सकता है।’’
पहले ने कहा-‘‘यह मैंने अपने और तुम्हारे लिये कहा था। उसके लिये नहीं। देखना वह जल्दी इसे बेच देगा। तब हम उससे सस्ते में खरीदेंगे।’
दूसरे ने कहा-‘नहीं, कबाड़ी से कोई सामान नहीं खरीदना यह मेरा उसूल है। वह भले ही न्यूज चैनल वाला हो गया है पर मेरी नज़र में रहेगा तो कबाड़ी ही न!’
पहले वाले ने कहा-‘नहीं पर उसकी असलियत बदल गयी है। मैंने तुम्हें बताया था न!’
दूसरे ने कहा-‘अब तुम्हारी नहीं सुनना। मेरी नज़र में उसकी असलियत नहीं बदलेगी।’
पहले ने कहा-‘ठीक है, कोई बात नहीं। यह चालू कबाड़ी तो ऐसा है कि सब जगह कबाड़ कर देता है। इस धंधे  का भी यही करेगा, तब दूसरे चैनल कबाड़ में खरीद कर चलायेंगे।’
दोनों खुश होकर वहां से चले गये। उधर चालू कबाड़ी घीसू कबाड़ी को फोन कर रहा था।
नोट-यह हास्य व्यंग्य किसी घटना या व्यक्ति पर आधारित नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वहीं इसके लिये जिम्मेदार होगा। इसे पाठकों के मनोरंजन के लिये लिखा गया है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Saturday, July 24, 2010

आशिक, माशुका और इश्क गुरु-हास्य कविता (ashiq, mushuka aur ishq guru-hasya kavita)

आशिक ने माशुका से कहा
‘कल गुरूपूर्णिमा है
इसलिये तुमसे नहीं मिल पाऊंगा,
जिसकी कृपा से हुआ तुमसे मिलन
उस गुरु से मिलने
उनके गुप्त अड्डे पर जाऊंगा,
क्योंकि उन पर एक प्रेम प्रसंग को लेकर
कसा है कानून का शिकंजा
पड़ सकता है कभी भी उन पर धाराओं का पंजा
इसलिये इधर उधर फिर रहे हैं,
फिर भी चारों तरफ से घिर रहे हैं,
उन्होंने ही मुझे तुमसे प्रेम करने का रास्ता बताया,
इसलिये तुम्हें बड़ी मुश्किल से पटाया,
वही प्रेम पत्र लिखवाते थे,
बोलने का अंदाज भी सिखाते थे,
जितनी भी लिखी तुम्हें मैंने शायरियां,
अपने असफल प्रेम में उनसे ही भरी थी
मेरे गुरूजी ने अपनी डायरियां,
इसलिये कल मेरी इश्क से छुट्टी होगी।’

सुनकर भड़की माशुका
और लगभग तलाक की भाषा में बोली
‘अच्छा हुआ जो गुरुजी की महिमा का बखान,
धन्य है जो पूर्णिमा आई
हुआ मुझे सच का भान,
कमबख्त, इश्क गुरु से अच्छा किसी
अध्यात्मिक गुरु से लिया होता ज्ञान,
ताकि समय और असमय का होता भान,
मैं तो तुम्हें समझी थी भक्त,
तुम तो निकले एकदम आसक्त,
मंदिर में आकर तुमने मुझे अपने
धार्मिक होने का अहसास दिलाया,
मगर वह छल था, अब यह दिखाया,
कविता की बजाय शायरियां लिखते थे,
बड़े विद्वान दिखते थे,
अपनी और गुरुजी की असलियत बता दी,
इश्क की फर्जी वल्दियत जता दी,
इसलिये अब कभी मेरे सामने मत आना
कल से तुम्हारे इश्क से मेरी कुट्टी,
मैं तुमसे और तुम मुझसे पाओ छुट्टी।।
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Thursday, July 22, 2010

बरसात की पहली फुहार और भ्रष्टाचार का नकाब-हास्य कवितायें (barsat lo pahli fuhar-hasya kavitaen)

किस प्रदेश का नाम लिखें,
किस शहर को याद रखें,
जहां बरसों तक विकास का रथ सड़क और पुलों पर चला,
बिजली के खंभों पर चढ़ा,
और सुंदर इमारतों को अपना निवास बनाया।
मगर कमबख्त हर बरस की तरह
इस बार भी बरसात की पहली फुहार ने ही
विकास के चेहरे से
भ्रष्टाचार का नकाब हटाया।
----------
बरसात की पहली फुहार ने
मन में ढेर सारी उमंग जगायी।
मगर पल भर का सुख ही रहा
क्योंकि नाला आ गया सड़क पर
नाली घर में घुस गयी
बिजली ने कर ली अंधेरे से सगाई।
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Monday, July 19, 2010

कागज़ की ताकत-हिन्दी हास्य कवितायें (kagaz ki takat-hindi hasya kavitaen)

शहर में हर जगह कागज़    पर सड़क बन गयी,
सभी गांवों मे तालाब खुद गया,
और हर कालोनी में हराभरा पार्क खिलाखिलाता
नज़र आया।
शायद आम आदमी आंखों से देख नहीं पाते
वरना तो हर अखबार की
छपी रिपोर्टों में सुखद समाचारों का
झुंड हर रोज आया।
------------
कागज़ की ताकत
आम आदमी की जुबान से बढ़ी है,
वह चाहे कुछ भी बोले
सच है वही कारनामा
जिसकी कलम से लिखापढ़ी है।
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Thursday, July 15, 2010

शराब और रूह-व्यंग्य कवितायें (sharab aur rooh-hindi vyangya kavitaen)

कहीं बनते हैं
कहीं उजड़ जाते हैं आशियाने,
छत के नीचे खड़े हैं
इस भरोसे कि सदा सिर पर रहेगी
मगर कहीं कुदरत उजाड़ देती है
कहीं बुलडोजर चला आता है
तो कहीं इंसानी बुत चले आते लतियाने।
----------
भरोसा कर हमेशा धोखा खाया,
मगर मजबूर हुए, तब फिर जताया,
धोखा करने से डरे हैं हम हमेशा,
हैरानी है तब भी किसी का भरोसा न पाया।
-----------
शराब गम भुलाती है,
मगर यह बात केवल लुभाती है,
सच यह है कि
इंसान ज़ाम दर ज़ाम पीते हुए
हो जाता है गुलाम
मर जाती है रूह उसकी
जो नशे में कभी उसे नहीं बुलाती है।
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Sunday, July 11, 2010

फैशन की धारा संस्कारों का समंदर-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (fashan ki dhara aur sanskar-hindi vyangya kavitaen)

अपने देश के लोग
हर नई चीज को दहेज के
लेन देने में जोड़ जाते हैं,
हर पश्चिमी फैशन की धारा को
अपने संस्कारों के समंदर की तरफ मोड़ जाते हैं।
बुद्धिमान कर रहे धर्म और संस्कारों को लेकर
लंबी चौड़ी बहसें
दुनियां में अपनी संस्कृति का
झंडा फहराने की व्यर्थ होड़ लगाते हैं।
--------------
टूट जाता है मन
रोज झूठ सुनते सुनते
हर कदम पर फरेब और बेईमानी की बोली
लोग बोलने लग जाते हैं,
कसम उठती है
पर खामोशी एक हथियार की तरह
अपने पास रख ली है हमने
हल्का कर लेते हैं अपना दिमाग
जब पाते है लोगों को हल्का
उनके शब्दों के सच को तोलने लग जाते हैं।
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Thursday, July 8, 2010

विकास पुरुष-हिन्दी हास्य कविता (vikas purush-hindi hasya kavita)

चमचे ने कहा
‘विकास पुरुष जी
आप भी कमाल का कर रहे विकास,
इधर हो रहा है विनाश,
कारों के उत्पादन को
विकास का प्रतीक बता रहे हैं,
उत्पादन में ही हित जता रहे हैं,
मगर घटिया सड़कें बनवा देते हैं,
जिसके प्राण दो मिनट की बरसात के छींटे ही ले लेते हैं,
हो जाता है जिससे रास्ता जाम,
जहां सुबह पहुंचना हो
हो जाती है वहां शाम,
कारों के नये नये माडल बनवाने से अच्छा है
पहले सड़कें बनवायें
सच में विकास पुरुष की छबि बनायें।’

सुनकर भड़के विकास पुरुष
‘अरे ओए थकेले चमचे
अब तेरा दिमाग फिर गया है,
इसलिये जनता के कल्याण की
गंदी सोच में घिर गया है,
अगर हम तेरी तरह सोचते,
तो चमचे होकर किसी के अपने ही बाल नौंचते,
कारों के नये नये कारखानों से
हमें चंदा मिलता है,
पेट्रोल की बिक्री से भी
कमीशन का धंधा खिलता है,
सड़कों पर जाम लगने से भी हमें फायदा है,
क्योंकि अपने लाभ लेने की कायदा है,
जाम से पेट्रोल ज्यादा बिकता है
धूल और झटकों से कार होती जल्दी पुरानी
नया माडल जल्दी बाजार में दिखता है,
फिर दुनियां के प्रचार माध्यमों में
जाम में फंसी रंग बिरंगी कारों के झुंड
के फोटो छपने से
अपने विकास का मंजर प्रचार पाता है
पहियों तले दबी फटेहाल सड़कों का
हाल कौन देख पाता है,
सड़के चमचमाती बन जायेंगी,
तो हर साल कमीशन भी नहीं दिलवायेंगी,
अभी तो विकास के नाम पर
वहां से भी अच्छा पैसा आता है,
विकास तो वही श्रेष्ठ होता हमारे लिये
जो कभी लक्ष्य नहीं पाता है,
यह बात तुम्हें कितनी बार समझायें।’’
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Tuesday, July 6, 2010

खुलकर हंसना भी एक बहुत बड़ा फन है-हिन्दी शायरी (khulkar hansna ek fun hai-hindi shayari)

मेरी नाकामी पर ताने न मारो
क्योंकि तुम्हारी कामयाबी
किसी को क्या खुशी देगी
जब तुम्हें ही न दे सकी
क्योंकि उसके नीचे कई लोगों की
सिसकी दफन है
तुम्हारे घर बिछे कालीन के नीचे
मरे हुए इंसानों का चुराया कफन है।
बोझिल होकर मुस्कराते हो,
हवा के एक झौंके से डर जाते हो,
मुझसे हमदर्दी जताने वाले, तुम नहीं जानते
ढेर सारे दर्द के साथ जीते हुए
खुलकर हंसना भी एक बहुत बड़ा फन है।
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Wednesday, June 23, 2010

बगुला भगत-हास्य कविताएँ (bagula bhagat-hindi hasya kavitaen)

सच्चे भक्त हैं जो लोग
भला वह कहां अपनी ताकत
दिखाने चौराहे पर आते हैं,
जो आकर भीड़ जुटायें
इंसानों को भेड़ बनाकर
वही बगुला भगत कहलाते हैं।
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वह भगत था पर बगुला न बना
इसलिये बगुला ही भगत बन गया,
करता रहा जो रोज भक्ति का शिकार,
हर शहर में उसका आशियाना तन गया।
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Monday, June 21, 2010

दुनियां का सच-हिन्दी क्षणिका (duniyan sa sach-hindi short poem)

मुखौटों से रिश्ते रखते हुए
अब हम ऊबने लगे हैं,
वादों की नाव कभी चलती नहीं
इसलिये ख्वाबों में ही डूबने लगे हैं,
इंसानों के मर गये जज़्बात,
गद्दारी और वफादारी की नहीं जानते जात,
देखा हमने, क्योंकि रोज दुनियां के सच के साथ जगे हैं।
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Thursday, June 3, 2010

जगहंसाई-हिन्दी शायरी (jaghasai-hindi shayari)

किसी की दौलत और शौहरत देखकर
क्यों अपना दिल जला रहे हो,
अपने चिराग खुद जलाओ
दूसरों की रौशनी देखकर
अपनी आंखें क्यों गला रहे हो।

कह दिये किसी ने अपशब्द
भूल जाने में ही भलाई है,
रोकर सभी को दर्द बयान करने
व्यर्थ में ही जंगहंसाई है,
बोलने वाले को जलने दो
अपनी आग में
तुम क्यों याद कर
अपनी सोच को कांटों पर चला रहे हो।
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Saturday, May 29, 2010

फरिश्ता और हैवान-हिन्दी शायरी (farishta aur haivan-hindi shayari)

इंसानों में फरिश्ता दिखने की चाहत
उसे हैवान बना देती है,
बात करते हैं जो लोग सभी के भले की
मशहूरी पाने की उनकी चाहत
बंदूकें हाथ में थमा देती है।
मज़दूरों और गरीब की
इबादत करने का दिखावा है उनका
उनके बिछाये बम की धमक
बेबसों को भी लाश बना देती है।
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Monday, May 24, 2010

ज़िंदगी का सबसे बड़ा अर्थ-हिन्दी शायरी (zindagi ka arth-hindi shayari)

जो चले हैं स्वयं कालिख की राह,
उनसे स्वच्छ चरित्र के लिये
प्रमाण पाने की चाह,
एकदम व्यर्थ है,
काला अक्षर भैंस बराबर मानते जो लोग
उनके लिये गाय के गुण में भी अनर्थ है।

हर इंसान ढूंढता है
अपने ही जैसे साथी
अच्छा यह बुरा होना नहीं कोई शर्त है।

दागदार है जिनके चरित्र
रंगीन कहलाते हैं खुद को
साफ चेहरे उनको कबाड़ नज़र आते हैं,
रंगे हैं हाथ जिनके खून से
आत्मीय उनके बन जाते हैं,
बदनाम न हो इसलिये
लगाते हैं पैबंद इनामों का,
मुश्किल हो जाये तो उनके लिये
झूंड चल पड़ता लड़ने बेईमानों का
उनसे दरियादिली की आशा करना बेकार है
अपना साम्राज्य हर कीमत पर बचाने में ही
उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा अर्थ है।
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Sunday, May 16, 2010

खौफ के साये में जीने के आदी लोग-हिन्दी शायरी (kauf sa saaye men log-hindi shayari)

तारीफों के पुल अब उनके लिये बांधे जाते हैं,
जिन्होंने दौलत का ताज़ पहन लिया है।
नहीं देखता कोई उनकी तरफ
जिन्होंने ज़माने को संवारने के लिये
करते हुए मेहनत दर्द सहन किया है।
--------
खौफ के साये में जीने के आदी हो गये लोग,
खतरनाक इंसानों से दोस्ती कर
अपनी हिफाजत करते हैं,
यह अलग बात उन्हीं के हमलों से मरते हैं।
बावजूद इसके
सीधी राह नहीं चलते लोग,
टेढ़ी उंगली से ही घी निकलेगा
इसी सोच पर यकीन करते हैं।
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Monday, May 10, 2010

गुलाम मानसिकता-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (gulam mansikata-hindi satire poem)

अब नहीं आती उनकी बेदर्दी पर
हमें भी शर्म,
क्योंकि बिके हुए हैं सभी बाज़ार में
चलेंगे वही रास्ता
जिस पर चलने की कीमत उन्होंने पाई।
आजादी के लिये जूझने का
हमेशा स्वांग करते रहेंगे,
विदेशी ख्यालों को लेकर
देश के बदलाव लाने के नारे गढ़ते रहेंगे
क्योंकि गुलाम मानसिकता से मुक्ति
कभी उन्होंने नहीं पाई।
-------------
देश के पहरेदारों को
अपने ही घर में गोलियां लगने का
जश्न उन्होंने मनाया,
इस तरह गरीब के हाथों गरीब के कत्ल कों
पूंजीवाद के खिलाफ जंग बताया।
बिकती है कलम अब पूंजीपतियों के हाथ
बड़ी बेशर्मी से,
धार्मिक इंसान को धर्मांध लिखें,
तरक्की के रास्ते का पता लिखवाते अधर्मी से,
गरीबों और मज़दूरों के भले का नारा लगाते
पहुंचे प्रसिद्धि के शिखर पर ऐसे बुद्धिमान
जिन्होंने कभी पसीने की खुशब को समझ नहीं पाया,
भले ही दौलतमंदों के कौड़ियों में
उनकी कलम खरीदकर
समाज कल्याण के नारे लगाते हुए
अपनी तिजोरी का नाप बढ़ाया।
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Thursday, May 6, 2010

अकेले में कब तक मस्ती मनाओगे-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (masti ki basti-hindi vyangya kavitaen)

ज़माने से अलग कब तक
अपनी बस्ती मनाओगे,
मुश्किल यह है कि
सभी इंसानों के जीने का एक ही सलीका है,
तन्हाईयों में हमेशा रहना कठिन है
दर्द और खुशियां
भीड़ में आने का यही तरीका है,
अकेले में कब तक मस्ती मनाओगे।
-----------
समझौतों से जिंदगी में
ऊब आ जाती है,
बगावत करने पर
जिन्दगी तन्हाई के खतरे में घिर जाती है।
हालत बदलने का ख्याल अच्छा है
पर इंसानी फितरत बदलने में
बहुत मुश्किल आती है।
-----------
समय बदलता है ज़माने को
पर कुछ इंसान उसके लिये
जद्दोजेहद कर रहे हैं,
फुरसत में समय बिताने के लिये
यह अच्छा काम है,
खाली वक्त में खाली जगह पर
बदलाव के नारे भर रहे हैं।
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Saturday, May 1, 2010

कौन जगायेगा अलख-हिन्दी शायरी (kaun jagayega alakh-hindi shayri)

विकास दर इतनी ऊंची हो गयी है
कि नैतिकता कहीं भीड़ में खो गयी है।
आदर्श की बात करना मजाक लगता है
राहजनी की वारदात का इल्जाम
रहबरों के सिर पर डलता है,
माली से उज़ाड़ दिया बाग
शिकायत करना बेकार है,
शैतानियत बन गयी है फैशन
शैतानों के बाहर खड़ा पहरेदार है,
ज़माना काबू है उन लोगों के हाथ में
जिनकी ईमानदारी खो गयी है,
कौन जगायेगा अलख
भेड़ों की भीड़ जो सो गयी है।
--------
सब कुछ वैसा नहीं रहेगा,
जैसा तुम चाहते हो,
नहीं बैठ पाओगे शौहरत और दौलत के पहाडों़ पर
जो तमाम कोशिशों से बनाते हो।
अपने हाथ कर रहे हो अपनी रूह का कत्ल
उसकी कब्र पर ही अपना महल बनाते हो।
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Monday, April 26, 2010

बेचते है जंग सौदे की तरह-हिन्दी शायरी (sale of war-hindi satire poem)

जिनके महल हैं ऊंचे,
कदम नहीं पड़ते धरती पर उनके
देशभक्ति का पाठ वही पढ़ाते हैं,
कभी खुद जंग में न लड़ें,
एक दिन के लिये आंसु बहायें
जब गरीब शहीद होकर मरें,
कभी खून न बहा जिनका
वह क्रांति का रास्ता दिखाते हैं।
बचाकर रखना खुद को गरीब इंसान
यहां बेचते हैं जंग सौदे की तरह,
लोगों के भले की बात यूं ही बताते हैं।
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Friday, April 23, 2010

विकास दर और मजदूर-हिन्दी शायरी (vikas dar aur mazdoor-hindi shayari)

चार मजदूर
रास्ते में ठेले पर सरिया लादे
गरमी की दोपहर
तेज धूप में चले जा रहे थे,
पसीने से नहा रहे थे।
ठेले पर नहीं थी पानी से भरी
कोई बोतल
याद आये मुझे अपने पुराने दिन
पर तब इतनी गर्मी नहीं हुआ करती थी
मेरी देह भी इसी तरह
धूप में जलती थी
पर फिर ख्याल आया
देश की बढ़ती विकास दर का
जिसकी खबर अखबार में पढ़ी थी,
जो शायद प्रचार के लिये जड़ी थी,
और अपने पसीने की बूंदों से नहाए
वह मजदूर अपने पैदों तले रौंदे जा रहे थे

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Friday, April 16, 2010

बेईमानी और ज़मीर-हिन्दी शायरी (beimani aur zamir-hindi shayri)

कोयले की दलाली में
हाथ भी काले हो जाते हैं,
पर सोने के सौदे में
हाथ सोने के कहां हो पाते हैं,
मगर समाज सेवा वह धंधा है
जिसमें आदमी ही सोने के हो जाते हैं।
----------
किसी ने सच कहा है कि
बेईमानी किये बिना
कोई अमीर नहीं बन सकता,
पर आजकल हर जगह चमक रहे अमीर
उनकी बेईमानी का जिक्र भी
कोई नहीं करता,
किसे दें दोष
झूठी अमीरी की तारीफें
गा रहा है पूरा ज़माना
बेईमानी से
इसलिये अब किसी का जमीर नहीं डरता।
-------------

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Sunday, April 11, 2010

अपने अरमानों का आसमान-हिन्दी शायरी (apne araman ka asman-hindi shayri)

उन पर क्या एतबार करें
जो यकीन की बाज़ार कीमत
लगाये जाते हैं,
वफादारी की कसमें खाते हैं रोज
पर किसी से निभाई हो
इसका सबूत नहीं देते
क्या वह रिश्ता निभायेंगे
प्यार और दोस्ती का
जो पहले अपनी जरूरत पूरी करने का
शोर मचाये जाते हैं।
----------
इस दुनियां में रिश्तों का
मतलब इतना ही रह गया है कि
खुद निभा सको तो निभाओ,
वरना अपने हों या गैर
सारे रिश्ते समय के साथ भूल जाओ।
अपने ऊपर बेवफाई का आरोप न आने देना
रिश्तों का नाम भी रहते लेना
मगर अरमानों का अपना आसमान
उनसे बहुत दूर लगाओ।
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Wednesday, April 7, 2010

मूल प्रश्न यह है कि हथियार आते कहां से हैं-हिन्दी लेख

दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ में सुरक्षा कर्मियों की हत्या परे भारत के लोगों को जितना क्षोभ हुआ है उसका अंदाजा देश के बुद्धिजीवी और संगठित प्रचार माध्यम नहीं लगा पा रहे। कभी कभी तो इस लेखक को लगता है कि अपना दिमाग ही चल गया है या फिर देश के कथित बुद्धिजीवियों और संगठित प्रचार माध्यमों में सक्रिय प्रसिद्ध विशेषज्ञों के पास अक्ल नाम की चीज नहीं है। यह सच है कि समाचार और उनके विश्लेषणों पर विचार करते हुए निष्पक्षता होना चाहिये पर समाज से अपनी प्रतिबद्धताओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। व्यवस्था से असंतोष हो सकता है पर उसके लिये देश पर आए संकट पर निरपेक्ष होकर बैठा नहीं जा सकता-खासतौर से जब आप स्वयं दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करते हैं जिसमें किसी भी प्रकार के व्यवस्था के निर्माण या उसकी पुर्नसंरचना में आपकी भूमिका हर हाल में होती है।
हमारे देश के कथित बुद्धिजीवी हमेशा ही बीबीसी और सीएनएन जैसे प्रचार संगठनों की निष्पक्षता का बयान करते हुए नहंी अघाते पर क्या कभी उनको अपने राष्ट्र की प्रतिबद्धताओं से मुंह मोड़ते देखा गया है। जब भी अमेरिका या ब्रिटेन पर कोई आतंकवादी हमला होता है तब यह दोनों चैनल और उनके रेडियो कथित निष्पक्षता छोड़कर अपने देश का मनोबल बनाने में लग जाते हैं।

दंतेवाड़ा में अस्सी से अधिक सुरक्षाकर्मियों की हत्या के मामले पर देश के बुद्धिजीवियों और प्रचार माध्यमों का रवैया चौंकाने वाला है। इतनी बड़ी संख्या में तो चीन, पाकिस्तान और अमेरिका जैसे राष्ट्र मिलकर भारत से लड़ें तो भी मैदानी लड़ाई में इतने सैनिक नहीं मार सकते। जिन्हें भ्रष्टाचार या सामाजिक वैमनस्य के कारण भारत के कमजोर होने का शक है उन्हें यह भी समझ लेना चाहिये कि आज कोई भी देश इन समस्याओं से न मुक्त न होने के कारण इतना सक्षम नहीं है कि भारत को हरा सके इसलिये चूहों की तरह यहां कुतरने के लिये वह अपने गुर्गे भेजते हैं । देशों की सामरिक क्षमता की बड़ी बड़ी बातें करने से यहां कोई लाभ नहीं है। ऐसे में नक्सलीवादियों ने यह कारनामा किया तो उसे सिवाय छद्म युद्ध के अलावा दूसरा क्या माना जा सकता है? इतने सारे सुरक्षा कर्मी मरे वह इस देश के ही थे और उनके परिवारों का क्या होगा? इस पर बताने की आवश्यकता नहीं है।
भारत की एक कथित सामाजिक कार्यकर्ता तथा एक विदेशह पुरस्कार विजेता महिला लेखिका आए दिन इन नक्सलियों के समर्थन में बोलती रहती हैं। इसमें एक कथित सामाजिक कार्यकर्ता का बयान तो बेहद चिढ़ाने वाला था। अब यह लगने लगा है कि भारत के बाहर पुरस्कार प्राप्त करने वाले कलाकार, चित्रकार, लेखक तथा सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कृत इसलिये ही किये जाते हैं ताकि वहां रहकर भारत विरोधी बयान देते रहे हैं। इस पर तुर्रा यह कि यह पुरस्कार विजेता भी यहां अपने आपको विदेशी समझते हुए ऐसा बयान देते हैं जैसे कि उनके लिये यहां विदेश हैं। उस कथित सामाजिक कार्यकर्ता/नेत्री का बयान यह आया कि वह इस नक्सली हमले की वह निंदा करती हैं पर इसके लिये सरकार ग्रीन हंट अभियान जिम्मेदार है।’
इससे ज्यादा क्या शर्मनाक बात हो सकती है कि अपने ही देश के सुरक्षाकर्मियों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने को आप वर्जित बताने लगते हैं। एक दूसरी मुश्किल यह है कि भारत के पं्रसिद्ध प्रचार माध्यम-टीवी, समाचार पत्र पत्रिकाऐं तथा रेडियो-वाले देश के मध्य केंद्र में बैठकर काम करते हैं वह उन क्षेत्रों में नहीं जाते जहां नक्सलवाद फैला है इसलिये उस क्षेत्र में काम करने वाले यह कथित कार्यकर्ता बयान देते हैं उसे ही छाप देते हैं। इन्हीं अखबार वालों पर यकीन करें तो देश के चालीस फीसदी इलाकों में नक्सलवाद का दबदबा है पर संगठित प्रचार माध्यमों को तो बाकी साठ प्रतिशत सुरक्षित इलाके में ही इतनी कमाई हो जाती है कि वह उस जगह जाकर सत्य का उद्घाटन नहीं करते-कभी कभी करते भी हैं तो नक्सलवादियों सूरमाओं को प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में विदेशी पुरस्कार विजेता कथित लेखक, चित्रकार, कलाकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता वहां के दौरे कर जो भी कहें वही समाचार पत्रों और टीवी चैनलों की सुर्खियां बन जाता है।
समस्या यह है कि नक्सलवाद के विरोधी भी तो कोई सवाल ढंग का नहीं उठाते। रामायण, में शंबुक वध, सीता की अग्नि परीक्षा, तुलसीदास का एक दोहा तथा वेदों के दो चार श्लोकों में भारतीय संस्कृति में खोट देखने वालों को समर्थक बस सफाई देते रह जाते हैं। नक्सलप्रभावित क्षेत्रों की जातिगत स्थिति का वैसा हाल नहीं हो सकता जैसे कि माओवादियों के समर्थक करते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि वहां भुखमरी, बेरोजगारी और बेबसी का बयान तो सभी नक्सल समर्थक करते हैं पर विरोधी कभी यह नहीं पूछ पाते कि उनके उद्धारकर्ता योद्धाओं के पास लड़ाई का इतना महंगा सामान वहां आता कैसे है? एकदम ढाई सौ सुरक्षाकर्मियों पर हमला करने में जो हथियार इस्तेमाल हुए होंगे वह कोई जंगल में नहीं उगे होंगे। भुखमरी, बेरोजगारी और बेबसी से परेशान लोगों को रोटी नसीब नहीं पर वह हथियार उगा लेते हैं। चलिये वह नहीं करते पर उनके समर्थक कथित वीर भी इतना सारा महंगा असला लाकर गोलियां चलाते हैं पर उनके लिये रोटी का इंतजाम नहंी कर सकते।
संगठित प्रचार माध्यमों में छोटी छोटी खबरों पर यकीन करें तो यह नक्सली हफ्ता वसूली, अपहरण, लूटपाट तथा तस्करी जैसे अपराधों से पैसा बनाते हैं और अपना कार्यक्रम जारी रखने के लिये इस तरह की हिंसा करते हैं। ग्रीन हंट अभियान में सुरक्षा कर्मियां के आने से उनका धंधा बंद हो जायेगाा। इस संबंध में जो निर्दोष आदिवासियों के मरने की बात करते हैं वह सिवाय बकवास के कुछ अन्य नहीं करते हैं। नक्सलियों का ही नहीं पूरे विश्व में आतंकवाद एक व्यापार है भले ही उसके साथ कोई वाद जुड़ा हो। यह वाद जोड़ा इसलिये जाता है कि बुद्धिमान लोगों को बहस में लगाकर मनोरंजन पैदा किया जाये ताकि अपराधियों के कुकर्मों पर किसी की नज़र न जाये।

ऐसे में जो नक्सलवादियों की समस्याओं और अपने कथित समाज को बचाने का समर्थन कर रहे हैं उनकी बकवास पर अधिक समय देना अपनी ऊर्जा बेकार नष्ट करना है। जो राष्ट्रवाद चिंतक, निष्पक्ष प्रेक्षक तथा हम जैसे लेखक विचारधाराओं के आधार पर अगर उनका जवाब देंगे तो उसका कोई लाभ नहीं है। उनसे तो बस यही सवाल करना चाहिये कि ‘यह खतरनाक हथियार, महंगी गाड़ियां और अन्य महंगा सामान उनके कथित योद्धाओं के पास से आया कैसे।
दूसरी बात यह है कि देश के संगठित प्रचार माध्यम यह विचार कर लें कि इस समय ऐसे कथित लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के यह किन्तु परंतु वाले बयान न छापें। हमसे न तो अपने अग्रज बीबीसी और सीएनएन से सीखें जो बिना किसी लाग लपेटे के अपने देश के प्रति समर्पित हो जाते हैं। याद रखें कि वह स्वयं इस देश में रहते हैं और उनकी पीढ़ियां भी यहां रहेंगी। सभी को अमेरिका, ब्रिटेन या कनाडा में रहने के लिये जगह नहीं मिलेगी। अब वह समय आ गया है जब नक्सलसमर्थकों की इन संगठित प्रचार माध्यमों को उपेक्षा शुरु कर देना चाहिये। अगर वह ऐसा नहंीं करते तो उनकी नीयत पर संदेह बढ़ता जायेगा। अपने काम के प्रति ऐसी निष्पक्षता दिखाने से कोई लाभ नहीं है जिसमें देशभक्ति के प्रति निरपेक्षता का भाव झलकता हो।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Saturday, April 3, 2010

दौलत का किला-हिन्दी शायरी (daulat ka kila_hindi shayri)

कैसे यकीन करें
उनके वादों पर
खड़े कर लिये अपने रहने के लिये महल,
करते हैं गरीबों के लिये झुग्गियों की पहल,
लोहे के चलते किलें में करते हैं सफर,
टूटी सड़कों बनाने का वादा करते मगर,
हर बार चमकते हैं आंखों के सामने
जब वादों का मौसम आता है।
उनकी ईमानदारी की कसमों पर यकीन
कैसे करें
क्योंकि दौलत का किला तो
बेईमानी और छलकपट से ही तो बन पाता है।
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Wednesday, March 31, 2010

खूनखराबे का खेल-हिन्दी शायरी (khoonkharabe ka khel-hindi shayri)

उनकी जिंदगी की गाड़ी
केवल वादे पर ही चलती है,
नारों तक ही उनकी सोच की बती जलती है।
रोज यकीन कर खाते हो धोखा
तरस तुम्हारी अक्ल पर आता है
उसमें उनकी क्या गलती है।
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तोहफे अब प्यार के जज़्बात में
बहकर नहीं दिये जाते हैं,
सौदागरों देते हैं पहले अग्रिम की तरह
फिर जिस्म नौचते हैं
या फिर दिल से खिलवाड़ कर जाते हैं।
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ताकतवर हैं वह
इसलिये उनके गुनाहों पर पर्दा पड़ जाता है,
जमाने भर के कसूर करे जो
उसका कद भी लोगों की नज़र में बढ़ जाता है।
उनको क्या दोष दें
लोगों की नज़रें ढूंढ रही हैं
खूनखराबे का खेल
अपना दिल बहलाने के लिये
इसलिये जिनको आदत है कत्ल करने की
उनको भी उसका नशा चढ़ जाता है।
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