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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, May 29, 2015

फीकी हंसी-हिन्दी कविता(fiki hansi-hindi poem)

बदहाली और तंगहाली
जहान में सभी जगह है
यही सोचकर हम
अपना दिल बहला  लेते हैं।

देश आजाद हैं
आम आदमी सभी जगह
बंधुआ मतदाता है
यह सोचकर हम
अपना दर्द सहला लेते हैं।

कहें दीपक बापू बुजदिलों पर
ठग भी राज कर लेते हैं
कायरों पर बेबस ताज धर देते हैं
यही सोचकर हम
मुश्किलों के नहले पर
 फीकी हंसी से दहला देते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, May 23, 2015

नकली वीर-हिन्दी कविता(nakali veer-hindi poem)

जंगली शेर की खाल
पहने शहर के सियार
कभी वीर नहीं बन पाते।

लोमड़ी जैसी चाल वाले
सर्वशक्तिमान की दरबार में
चाहे रोज लगायें हाजिरी
कभी पीर नहीं बन पाते।

कहें दीपक बापू नकली दूध से
 चरित्र नहलाने वालों के विचार
भलाई के व्यापार में
कभी खीर नहीं बन पाते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Sunday, May 17, 2015

ख्वाबों का शख्स-हिन्दी कविता(khawbon ka shakhsa-hindi poem)


हमदर्द बनकर
कोई हमें सहलाये
यह उम्मीद नहीं करना
यहां तो लोग
सताने के लिये
दुखती हुई रग ढूंढते हैं।

कहें दीपक बापू सभी सीना फुलाते हैं
 कमजोर पर प्रहार कर,
झुक जाते उनके सिर
दबंगों के उपहार पर,
 टक्कर ले सके अनाचारों से
ऐसा शख्स अब केवल
ख्वाबों में ही ढूंढते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Saturday, May 9, 2015

आम इंसान और इज्जतदार-हिन्दी कविता(aam insan aur izzatdar-hindi poem)


आम इंसानों को
हुकुमत के कायदे पर ही
चलना चाहिये।

हुकुम का मुंह पकड़े
अपनी ताकत से
ऐश के लिये
इंसान या जानवर का
करते शिकार
उन इज्जतदारों से  कभी
नहीं जलना चाहिये।

कहें दीपक बापू औकात का पैमाना
दौलत और शोहरत से
तय होता है
जब अपनी जान लो शून्य
तब करोड़ों के कीमती बुत देख
नहीं मचलना चाहिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Sunday, May 3, 2015

इश्क का भूत-हिन्दी कविता(ishq ka bhoot-hindi kavita,devil of love-hindi poem)

ज़माने पर इश्क का भूत
अब जितना चढ़ा
नफरत के किस्से भी
उतने ही बढ़े हैं।

बेतार से बढ़ा संवाद
लोगों के बीच जितना
रिश्ते तार तार होने के खतरे
उतने ही बढ़े हैं।

कहें दीपक बापू ख्वाबों के साथ
जीने की आदत
जितनी बढ़ी है इंसानों में
दिल टूटने के खतरे
उतने ही बढ़े हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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