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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, July 24, 2011

ग्रेटर नोएडा मामलाः किसान और मध्यमवर्ग के हितों का आपसी संघर्ष-हिन्दी लेख (greater noeda -controvarsry in formar and middle class-hindi article)-

          ग्रेटर नोएडा मसले पर टीवी चैनलों पर जमकर बहस हो रही है। मामला देखें तो न्यायपालिका के उस निर्णय का है जो ज़मीन अधिगृहीत करने वाली संस्था तथा भूस्वामियों के बीच दिया गया है। यह ज़मीन अधिगृहीत कर भवन निर्माताओं को दी गयी थी जिन्होंने मकान बनाने का सपना दिखाकर मध्यमवर्गीय लोगों से पैसा ले लिया। अब न्यायालय के निर्णय के बाद किसान जमीन वापस मांग रहे हैं और मकान का सपना देख रहे मध्यम वर्गीय लोग आर्तनाद करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
          कभी कभी तो इस तरह प्रचारित किया जा रहा है कि मध्यम वर्गीय समाज और किसानों के बीच यह जंग है। स्पष्टतः यह प्रचार और बहस विज्ञापनों के बीच सामग्री जुटाने का प्रयास भर है। मध्यम वर्गीय समाज और किसान बड़ी संख्या में है पर प्रत्यक्ष इस विवाद में उनके आपसी चर्चा योग्य कोई तत्व कहीं स्थापित नहीं हो सकते पर उनको लक्ष्य करके ही बहस और प्रचार हो रहा है जबकि मुख्य समस्या भवन निर्माताओं और भूमि अधिगृहीत करने वाली संस्था के बीच है। न किसानों से सीधे जमीन मध्यम वर्गीय लोगों को दी न ही उन्होंने ली। अलबत्ता पैसा मकान देने वालों का ही फंसा है।
        हम जैसे लोगों के लिये समाज को किसान तथा मध्यमवर्ग में बांटना कठिन है क्योंकि यह तो केवल अंग्रेजों की राजनीति रही है कि फूट डालो राज करो जो अब भी जारी है।
      मामला अभी चल रहा है पर एक बात तय रही है कि किसानों का जमीन बहुत जल्दी आसानी से मिल जायेगी यह लगता नहीं है अलबत्ता मध्यम वर्गीय लोगों के मकान लेने का सपना जरूरी महंगा हो जायेगा। संभव है कई लोगों का पूरा भी न हो। इस बहस में व्यवस्था की नाकामी कोई नहीं देख पा रहा है। किसान और मध्यम वर्गीय समाज आंदोलनों पर उतारू हैं जबकि दोनों ने कुछ गंवाया ही है। ऐसे में सवाल यह है कि इसमें कमा कौन रहा है?
सच बात तो यह है कि देश में उदारीकरण के बाद ऐसी अदृश्य शक्तियां कार्यरत हो गयी हैं जिनके हाथों की लंबाई का अंदाज नहीं लगता। आर्थिक शिखर पुरुष यह तो चाहते हैं कि देश का कानून उनके लिये उदार हो पर उस सीमा तक जहां से उनका काम शुरु होता है। बाकी जनता का नियंत्रण तो वह अपने व्यवसायिक कौशल से कर लेंगे। इसके अलावा जब पूंजीपतियों और उत्पादकों के हित की बात आती है तो हमारे देश के आर्थिक रणनीतिकार, विश्लेषक और चिंतकों की बुद्धि तीव्र गति पकड़ लेती हैं पर जब आम आदमी या उपभोक्ता की बात आती है तो सभी की सोच समाप्त होती दिखती है। हम पहले भी लिख चुके हैं कि देश में लाइसैंसीकरण प्रणाली पर भारतीय आर्थिक शिखर पुरुष लंबे समय हमेशा नाराजगी जताते रहे है पर उनके काम नहीं रुकते इसलिये अब कहना भी बंद कर दिया है।
हम ग्रेटर नोएडा के मामले में देखें तो आधिकारिक सस्थाओं ने ज़मीन अधिगृहीत कर बड़े भवन निर्माताओं को सौंप दी। संभवतः छोटे भवन निर्माता दिल्ली के पास की जमीन इसलिये नहीं खरीद सकते होंगे क्योंकि ऐसे तमाम कानून हैं जिससे कृषि योग्य जमीन को आवासीय स्थल में परिवर्तित होने से रोकते हैं। एक सामान्य आदमी के लिये यह संभव नहीं है कि वह कहीं जमीन खरीद का भवन बना सके। जबकि बड़े बड़े पूंजीपतियों ने देश के अनेक भाग चिन्हित कर कृषि भूमि योग्य जमीन को खरीदा क्योंकि उनके साथ ऐसी संस्थायें खड़ी थी जिनके ऐसे कानून बाधक नहीं होते और जो इसके लिये अधिकृत हैं कि देश की आवास समस्या का हल करें।
          बड़े धनपति अब देश के कानून में बदलाव की मांग नहीं करते क्योंकि उनके लिये हर काम आसान हो गया है। इस तरह देश शक्तिशाली और कमजोर दो भागों में बंट गया है। मध्यम वर्ग भी तक शक्तिशाली वर्ग के सहारे चलकर कमजोर पर भारी रहता था पर लगता है कि अब वह अप्रासांगिक होता जा रहा है। शक्तिशाली वर्ग का बस नहीं चलता वरना वह विदेश में सीधे जाकर यहां का काम चलाये। उनको अमेरिका, इंग्लैंड,फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों में अपना पैसा रखना पसंद है। उसकी तिजोरियां वहीं है और तय बात है कि उनकी आत्मा भी वहीं बसती है। इसलिये अनेक आर्थिक, सामाजिक तथा कला क्षेत्र के शिखर पुरुष कभी कभी ऐसे बयान देते हैं जैसे कि वह विदेशी हों। अब उदारीकरण के बाद तो ऐसे हो गया है कि किसान, निम्न और मजदूर वर्ग को मध्यम वर्ग से लड़ाकर शक्तिशाली वर्ग इस देश में अपना राज चलाता दिखता है। ऐसा लगता है कि वह इन विवादों से निजी संबंध नहीं रखता जबकि वह उसी के पैदा किये हुए हैं। एक तरफ किसान है जिन्होंने मजबूरी में जमीन दी तो दूसरी तरफ मध्यम वर्गीय लोग हैं जिनके सपनों पर ही अनेक शक्तिशाली लोग धनवान हो गये जिनके हाथ में गया धन फिर कभी लौटकर समाज के पास वापस नहीं आता।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com


Saturday, July 16, 2011

खामोशी वह चाबी है-हिन्दी शायरी (khamoshi vah chabi hai-hindi shayari

 आओ
कुछ लोगों को
दूसरे के  क़सूरों पर चिल्लाते देखें,
अपने दोनों हाथ मदद के लिए
लुटेरों के सामने उठाते देखें।
किसी के गम से हमदर्दी नहीं है जिनको
धंधे के आँसू वही बहाते हैं,
इसी तरह हमदर्द कहलाते हैं,
अपने कदमों को बढ़ाते वह  तेजी  से तब
आकाओं से इशारा मिलता जब,
आओ
अपनी आँखों से देखो
अपने नजरिये से सोचो
हंसी का खज़ाना मिलने लगेगा
खामोशी वह चाभी  है
उससे दिल-ओ-दिमाग को खोलकर देखें।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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Wednesday, July 6, 2011

गरीब की झुग्गी, अमीर का आशियाना-हिन्दी शायरी (garib ki jhuggi aur amir ka ashiyana-hindi shayri)

पहले अपनी फिक्र और
फिर अपनों की चिंता में
बड़े लोग महान बनते जा रहे हैंे,
कहीं पूरी बस्ती
कहीं पूरे शहर
खास पहचान लिये
इमारतों से तनते जा रहे हैं।
वहां बेबस और लाचार
आम इंसान का प्रवेश बंद है,
हर आंख पसरी है उनके लिये
जिनके पास सोने के सिक्के चंद हैं,
दब रही है गरीब की झुग्गी
अमीरी के आशियाने उफनते आ रहे हैं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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