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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, December 27, 2010

इंसानी दुनियां का दस्तूर-हिन्दी शायरी (insani duniya ka dastur-hindi shayari)

गरीबों और मज़दूरों की
दर्दनाक हालत पर रोते हुए
वह बड़े ख्यालात के इंसान होने की
पदवी जुटाते हैं,
वही करते हैं उन बादशाहों की खिदमत
इसलिये इनामों से नवाजे जाते हैं।
इंसानी दुनियां का दस्तूर यही है
लफ्जों के जादूगर बहुत हुए
उनके अल्फाजों की चर्चा
चाहे कितनी भी हो जाये
ज़माने के हालात कभी नहीं बदल पाते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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Friday, December 10, 2010

तालियां और गालियां-हिन्दी व्यंग्य कविता (taaliyan aur galiyan-hindi vyangya kavita)

भीड़ में जाकर अपने भ्रष्टाचार को
शिष्टाचार समझ जो लोग पी जाते हैं,
मंचों पर वही नैतिकता का पाठ
सुनाकर तालियां बजवाते हैं।
अपने किस्से जब होते हैं आम
तब सफाई में दिखाते खानदान का ईमान,
जब दूसरे पर लगे इल्ज़ाम
उसके लिये तख्ती पर गालियां लगवाते हैं।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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Monday, December 6, 2010

विकीलीक्स के खुलासे में अभी तक मज़ा नहीं आया-हिन्दी व्यंग्य (vikileeks secreat is not for enterntainment-hindi vyangya

विकिलीक्स के खुलासों में मज़ा नहीं आ रहा है। जो खबरें आ रही हैं वह पहले भी आ चुकी हैं। आतंकवादी यह कर रहे हैं वह कर रहे हैं। पाकिस्तान यह योजना बना रहा है और वह छोड़ रहा है। भारत में यह खतरा या वह भय! यह सब पहले भी पढ़ चुके हैं। भारतीय प्रचार माध्यम कई बार ऐसी चीजें देकर अपने विज्ञापन चलाते हैं। कुछ अनोखा नहीं दिखाई या सुनाई नहीं पड़ रहा है।
उधर अमेरिकी सरकार उसके संस्थापक के पीछे पड़ी है। अगर यही खुलासे हैं तो समझ में नहीं आता कि अमेरिकी रणनीतिकार उससे इतने भयभीत क्यों हैं? अमेरिका की विदेश मंत्राणी का कहना है कि यह खुलासे केवल आपसी संवाद हैं और इनका उनके देश की नीति से कोई संबंध नहीं हैं। फिर इतना होहल्ला क्यों?
दरअसल अमेरिका की अर्थव्यवस्था एशियाई देशों पर आधारित है और इन खुलासों में कुछ ऐसा होने की संभावना है जो उन्हीं देशों से संबंधित है जहां के रणनीतिकारों के नाराज होने पर उसे इसके परिणाम भोगने पड़ते हैं।
संगठित प्रचार माध्यम केवल वहीं खबरे दें रहे हैं जिनका कोई महत्व नहीं है। ऐसे में भारत के हिन्दी या अंग्रेजी ब्लाग लेखकों से ही यह आसरा है जो कुछ असाधारण खोज करें। ढाई लाख दस्तावजों को देखना कोई आसान नहीं है। मतलब जो ब्लाग लेखक इधर से उधर भाग रही विकीलीक्स की वेबसाईट पर जायेंगे उनको अपने देश के लिये सामग्री ढूंढना आसान नहीं है। अगर ऐसी ही चलताऊ सामग्री ढूंढेंगे तो उसका कोई मतलब नहंी रह जायेगा। हिन्दी ब्लाग लेखकों के लिंक से वह वेबसाईट देखी थी और लगा कि अगर भारत से संबंधित कुछ ढूंढना है तो बहुत मेहनत करनी होगी। फिर उसमें भी कुछ ऐसा जिसमें भय, खतरा तथा सामान्य समाचार समाचार जैसा न हो। उसमें ऐसा क्या हो सकता है? केवल भारत के शिखर पुरुषों और उनके मातहतों के अमेरिका तथा अन्य देशों से संबंधित व्यवहार या संवाद की ऐसी जानकारी जो अभी तक छिपाई गयी हो। अब तो यह तय हो गया है कि राज्य में बैठे अनेक बड़े अधिकारी वह काम कर रहे हैं जो दुश्मन देश का जासूस भी नहीं कर सकता। ऐसे अनेक अधिकारी जेल मैं हैं और यह कहना ठीक नहीं होगा कि बाकी सब ठीक ठाक हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि देश में इस समय जो घोटालों पर माहौल बना है वह इसी विकीलीक्स में किसी रहस्य को उजागर होने से बचाने के लिये हैं। विकीलीक्स को शायद इधर उधर दौड़ाया भी इसलिये जा रहा है कि किसी भी एशियाई देश की जानकारी अब लोग न देख पायें।
हिन्दी ब्लाग लेखकों में कुछ गज़ब के हैं। इनमें से अनेक न केवल अंग्रेजी और हिन्दी में एक जैसा महारथ रखते हैं। इनमें कुछ का तो वेद और कुरान पर एक जैसा विशद अध्ययन है! इनमें से अनेक वेबसाईटें खंगालते रहते हैं। जब कुछ अपन भाषा वालों के लिये अच्छा लगता है उसका अनुवाद कर प्रस्तुत भी करते हैं। यह कुशल समूह विकीलीक्स पर नज़र नहीं रखता हो यह संभव नहीं है। संभव है यह पूरा दिन वहां कुछ न कुछ ढूढते हों क्योंकि इधर उनकी सक्रियता कम दिख रही है।
ऐसे में उनको करना यह चाहिए कि उन्हें अपनी सरसरी दृष्टि से काम करना चाहिए। अगर वेबसाईट उनके सामने हो तो तुरंत अपने देश से संबंधित सामग्री न होने पर आगे बढ़ जाना चाहिए। इसके अलावा जहां खतरा, भय या योजनाओं की बात हो जो वह पहले से जानते हों उसे छोड़ दें। उनको ढूंढना चाहिए ऐसे व्यवहार, संवाद तथा विचार की जिससे यहां तहलका मच जाये। अब पाकिस्तानी के प्रधानमंत्री हों या राष्ट्रपति उनकी सोच से हमें क्या लेना देना? यह तो बुत भर हैं जो अमेरिका तथा विदेशी पूंजीपतियों द्वारा बिठाये गये हैं। सेना का हाल सभी को मालुम है। भारत के प्रति रवैया क्या है, यह जानने की जरूरत नहीं है। मुख्य बात है कि दोनों के बीच संपकों को लेकर अंदर क्या काला पीली होता है उसे जानना है। याद रखें कि कमरे के अंदर और बाहर की राजनीति अलग अलग होती है, वैश्विक उदारीकरण के इस इस दौर में दोस्ती और दुश्मनी भी क्रिकेट मैच की तरह फिक्स होती है। ऐसे हिन्दी ब्लाग लेखकों के ब्लाग पढ़ने में मजा भी आता है जो खोज परक जानकारी अपने ब्लाग पर देते हैं। वैसे अगर इनमें से कोई महारथी विकीलीक्स का भारतीय संस्करण बना डाले तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। भारत के आम पाठक इस बात का अनुमान नहीं कर सकते कि साफ्टवेयर में भारत का पूरे विश्व में लोहा माना जाता है और इसमें कुशल अनेक लोग ब्लाग भी लिखते हैं। उनके बारे में तभी अनुमान किया जा सकता है जब हिन्दी ब्लाग लेखन पर सक्रिय रहा जाये भले ही लेखक के रूप में नहीं एक पाठक के रूप में ही सही।
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Friday, December 3, 2010

सपना जगा है-हिन्दी कवितायें (sapna jaga hai-hindi kavitaen)

ईमानदारी की बात करते हुए
अब डर लगने लगा है,
अपना चाल चलन भी
अब शक के घेरे लगता है,
सुला दिया है इसलिए सोच को
आंखें खुली हैं मगर सपना जगा है।
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आओ, कुछ किताबों में लिखे
कल्पित नायकों को
दूनियां के सच की तरह रच लें,
लोग उनको ढूंढते रहें,
हम दोस्त बनकर
उनके घर की दौलत लूटते रहें,
इस तरह पहरेदारों से बच लें।
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बेईमान और ईमानदारी के फर्क को
अब कोई इंसान नहीं जानता है,
उच्च चरित्र की बातें किताबों में
पढ़ते हैं सभी
मगर जिंदगी में हर कोई
चादर के बाहर पांव तानता है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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