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Wednesday, September 26, 2012

2 अक्टुबर महात्मा गांधी जयंती पर विशेष हिन्दी लेख-उनकी छवि राजनीतिक संत के रूप में रही (special hindi article 2 october mahatam gadhi barth's day)


          2 अक्टोबर को महात्मा गांधी की जयंती है।  आधुनिक भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी को पितृपुरुष के रूप में दर्ज किया गया है।  हम जब  भारत की बात करते हैं तो एक बात भूल जाते हैं कि प्राचीन  समम में इसे भारतवर्ष कहा जाता था।  इतना ही नहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान, भूटान, श्रीलंका, माले तथा वर्मा मिलकर हमारी पहचान रही है।  अब यह सिकुड़ गयी है।  भारतवर्ष से प्रथक होकर बने देश अब भारत शब्द से ही इतना चिढ़ते हैं कि वह नहीं चाहते  शेष विश्व उनको भारतीय उपमहाद्वीप माने।  इस तरह भारतवर्ष सिकुड़कर भारत रह गया है।  उसमें भी अब इंिडया की प्रधानता है।  इंडिया हमारे देश की पहचान वाला वह शब्द है जिसे पूरा विश्व जानता है। भारत वह है जिसे हम मानते हैं।  यह वही भारत है जिसका आधुनिक इतिहास है 15 अगस्त से शुरु होता है।  यह अलग बात है कि कुछ राष्ट्रवादी अखंड भारत का स्वप्न देख रहे हैं। 
     बहरहाल विघटित भारतवर्ष के शीर्ष पुरुषों में महात्मा गाधंी का नाम पूज्यनीय है।  उन्होंने भारत की राजनीतिक आजादी की लड़ाई लड़ी।  इसका अर्थ केवल इतना था कि भारत का व्यवस्था प्रबंधन यहीं के लोग संभालें।  संभव है कुछ लोग इस तर्क को  संकीर्ण मानसिकता का परिचायक माने पर तब उन्हें यह जवाब देना होगा देश की आजादी के बाद भी अंग्रेजों के बनाये ढेर सारे कानून अब तक क्यों चल रहे हैं?  देश के कानून ही व्यवस्था के मार्गदर्शक होते हैं और तय बात है कि हमारी वर्तमान आधुनिक व्यवस्था का आधार अंग्रेजों की ही देन है। 
       महात्मा गांधी ने अपना सार्वजनिक जीवन दक्षिण अफ्रीका   में प्रारंभ हुआ था। वहां गोरों के भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष में जो उन्होंने जीत दर्ज की उसका लाभ यहां के तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनकारियों ने उठाने के लिये उनको आमंत्रित किया।  तय बात है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरों को सार्वजनिक रूप से प्रतिष्ठत कर जनता को संचालित करने का सिलसिला यहीं से शुरु हुआ जो आजतक चल रहा है।  अगर महात्मा गांधी इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई प्रारंभ कर भारत लौटते तो यकीनन उस समय स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालीन शिखर पुरुष उनको अपने अभियान में सम्म्लिित होने का आंमत्रण नहीं भेजते।
             महात्मा  गाँधी  का जीवनकाल  हम जैसे लोगों के जन्म से बहुत पहले का है।  उन पर जितना भी पढ़ा और जाना उससे लेकर उत्सुकता रहती है। फिर जब चिंत्तन का कीड़ा कुलबुलाता है तो कोई नयी बात नहीं निकलती। इसलिये आजकल के राजनीतिक और सामाजिक हालात देखकर अनुमान करना पड़ता है क्योंकि व्यक्ति बदलते हैं पर प्रकृति नहीं मिलती।  यह अवसर अन्ना हजारे साहब ने प्रदान किया।  वैसे तो अन्ना हजारे स्वयं ही महात्मा गांधी के अनुयायी होने की बात करते हैं पर उन्होंने ही सबसे पहले भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के दौरान यह कहकर आश्चर्यचकित किया कि अब वह दूसरा स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘हमें तो अधूरी आजादी मिली थी‘।  ऐसे में हमारे जैसे लोगों किंकर्तव्यमूढ़ रह जाते हैं।  प्रश्न उठता है कि फिर महात्मा गांधी ने किस तरह की आजादी की जंग जीती थी।  अगर अन्ना हजारे के तर्क माने जायें तो फिर यह कहना पड़ेगा कि उन्हें इतिहास एक ऐसे युद्ध के विजेता नायक के रूप में प्रस्तुत करता है जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ है।  अनेक लोग अन्ना हजारे की गांधी से तुलना पर आपत्ति कर सकते हैं पर सच यही है कि उनका चरित्र भी विशाल रूप ले चुका है।  उन्होंने भी महात्मा गांधी की तरह राजनीतिक पदों के प्रति अपनी अरुचि दिखाई है।  सादगी, सरलता और स्पष्टतवादिता में वह अनुकरणीण उदाहरण पेश कर चुके हैं। हम जैसे निष्पक्ष और स्वतंत्र लेखक उनकी गतिविधियों में इतिहास को प्राकृतिक रूप से दोहराता हुआ देख रहे हैं। इसलिये भारतीय दृश्य पटल पर स्थापित बुद्धिजीवियों, लेखकों और प्रयोजित विद्वानों का कोई तर्क स्वीकार भी नहीं करने वाले।
               महात्मा गांधी को कुछ विद्वानों ने राजनीतिक संत कहा।  उनके अनुयायी इसे एक श्रद्धापूर्वक दी गयी उपाधि मानते हैं पर इसमें छिपी सच्चाई कोई नहीं समझ पाया।  महात्मा गांधी भले ही धर्मभीरु थे पर भारतीय धर्म ग्रंथों के विषय में उनका ज्ञान सामान्य से अधिक नहीं था।  अहिंसा का मंत्र उन्होंने भारतीय अध्यात्म से ही लिया पर उसका उपयोग  एक राजनीति अभियान में उपयोग करने में सफलता से किया। मगर यह नहीं भूलना चाहिए  पूरे विश्व के लिये वह अनुकरणीय हैं। यह अलग बात है कि जहां अहिंसा का मंत्र सीमित रूप से प्रभावी हुआ तो वहीं राजनीति प्रत्येक जीवन का एक भाग है सब कुछ नहीं।  अध्यात्म की दृष्टि से तो राजनीति एक सीमित अर्थ वाला शब्द है।  यही कारण है कि अध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण कार्य न करने पर महात्मा गांधी का परिचय एक राजनीतक संत के रूप में सीमित हो जाता है।  अध्यात्मिक दृष्टि से महात्मा गांधी कभी श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में नहीं जाने गये।  जिस अहिंसा मंत्र के लिये शेष विश्व उनको प्रणाम करता है उसी के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर जैसे परम पुरुष इस धरती पर आज भी उनसे अधिक श्रद्धेय हैं।  कई बार ऐसे लगता है कि महात्मा गांधी वैश्विक छवि और राष्ट्रीय छवि में भारी अंतर है। वह अकेले ऐसे महान पुरुष हैं जिनको पूरा विश्व मानता है पर भारत में भगवान राम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध तथा  महावीर जैसे परमपुरुष आज भी जनमानस की आत्मा का भाग हैं।  इतना ही नहीं गुरुनानक देव, संत कबीर, तुलसीदास, रहीम, और मीरा जैसे संतों की  भी भारतीय जनमानस में ऊंची छवि है। धार्मिक और सामाजिक रूप से स्थापित परम पुरुषों के  क्रम में कहीं महात्मा गांधी का नाम जोड़ा नहीं जाता।  एक तरह से कहें कि कहीं न कहीं महात्मा गांधी वैश्विक छवि की वजह से अपनी छवि यहां बना पाये।
                महात्मा गांधी जब एक रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे तब एक गोरे अधिकारी ने उनको उस बोगी से उतार दिया क्योंकि वह गोरे नहीं थे।  उसके बाद उन्होंने जो अपना जीवन जिया वह एक ऐसी वास्तविक कहानी है जिसकी कल्पना  उस समय बड़े से बड़ा फिल्मी पटकथा लेखक भी नहीं कर सकता था।  उनकी पृष्ठभूमि पर ही शायद बाद में जीरो से हीरो बनने की कहानियां फिल्मों पर आयी होंगी।  उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक स्वाभिमानी व्यक्ति बना जा सकता है।  हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि भोगी नहीं त्यागी बड़ा होता है। महात्मा गांधी ने सभ्रांत जीवन की बजाय सादा जीवन बिताया। यह उस महान त्याग था क्योंकि उस समय अंग्रेजी जीवन के लिये पूरा समाज लालायित हो रहा था।  उन्होंने सरल, सादा सभ्य जीवन गुजारने की प्रेरणा दी। ऐस महापुरुष को भला कौन सलाम ठोकना नहीं चाहेगा।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior madhyapradess
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Wednesday, September 12, 2012

१४ सितम्बर हिन्दी दिवस पर लेख-हिन्दी अध्यात्म की भाषा है इसलिये जुड़े रहें (hindi adhyatma ki bhasha hai-hindi diwas or hindi divas par lekh and article

         अंतर्जाल पर हिन्दी दिवस को लेकर जमकर खोज हो रही है।  इस लेखक के ब्लॉगों जिन पाठों में हिन्दी दिवस के विषय पर लिखा गया है उन पर पाठकों की संख्या पहले से इन दिनों  छह गुना अधिक है।  इसका मतलब यह है कि पूरे वर्ष में    कम से कम एक दिन तो ऐसा है जब बौद्धिक प्रवृत्ति के लोगों को हिन्दी की याद आती है। कौन लोग हैं जो सर्च इंजिनों में हिन्दी दिवस से से जुड़े शब्द डालकर इससे संबंधित पाठ खोज रहे होंगे?
     एक बात तय है कि अभी इंटरनेट पर हिन्दी जनसामान्य में लोकप्रिय नहीं है। नयी पीढ़ी के लोग तथा कंप्यूटर के जानकार बौद्धिक व्यक्ति ही यह खोज कर रहे होंगें।  नयी पीढ़ी में वह लोग हैं जिनको शायद हिन्दी दिवस पर अपनी शैक्षणिक संस्थानों के अलावा हिन्दी में अनुदान प्राप्त संघों के यहां  होने वाली निबंध,कहानी, कविता अथवा वाद विवाद प्रतियोगिताओं मे भाग लेना हो। इसलिये  यहां से कुछ प्रेरणा प्राप्त करना चाहते हो।  इसके अलावा कुछ बौद्धिक लोगों को समाचार पत्रपत्रिकाओं के लिये लेख लिखने अथवा राजकीय धन से आयोजित परिचर्चा या भाषण देने के लिये कोई नयी सामग्री की तलाश हो।  वह भी शायद इंटरनेट पर कुछ खोज रहे हों।  इसी कारण इस लेखक को अपने पाठ पढ़ने का दोबारा अवसर मिल रहा है।
         उन लेखों से कोई प्रेरणादायी सामग्री मिल सकती है यह भ्रम लेखक नहीं पालता।  दरअसल हिन्दी के महत्व पर लिखे गये एक लेख पर अनेक टिप्पणीकार यह लिख चुके हैं कि आपने उसमें असली बात नहीं लिखी।  विस्तार से हिन्दी का महत्व बतायें।  इस बात पर हैरानी होती है कि हिन्दी का महत्व अभी भी समझाना बाकी है।  इस लेखक का विश्वास है कि हिन्दी दिवस पर लिखे गये पाठों वाले ब्लॉग इस समय किसी भी हिन्दी वेबसाइट या ब्लॉग  से अधिक पाठक जुटा रहे हैं।  शिनी स्टेटस में साहित्य वर्ग में एक ब्लॉग अंग्रेजी ब्लॉगों को पार करता हुआ तीन नंबर के स्थान में पहुंच गया है। कल इसके एक नंबर पर पहुँचने की संभावना है।  इस वर्ग के पंद्रह ब्लॉग में तीन  इस लेखक के हैं। मनोरंजन के अन्य वर्ग में एक ब्लॉग पंद्रहवें नंबर पर है। 14 सितंबर को हिन्दी दिवस है और 13 सितंबर वह दिन है जब इस लेखक के अनेक ब्लॉग अपनी पिछली संख्या का कीर्तिमान पार करेंगे। यह संख्या एक दिन में ढाई से तीन हजार होगी।
    हिन्दी का महत्व क्या बतायें? यह रोटी देने वाली भाषा नहीं है।  अगर प्रबंध कौशल में दक्ष नही है तो इसमें लिखकर कहीं सम्मान वगैरह की आशा करना भी व्यर्थ है।  फिर सवाल पूछा जायेगा कि इसका महत्व क्या है?

     इसका हम संक्षिप्त जवाब भी देते हैं।  अनेक भाषाओ का ज्ञान रखना अच्छी बात है पर जिस भाषा में सोचते हैं अभिव्यक्ति के लिये वही भाषा श्रेयस्कर है।  फेसबुक पर नयी पीढ़ी के लोगों को देखकर तरस आता है।  वह हिन्दी में सोचते हैं-यह प्रमाण रोमनलिपि में उनकी हिन्दी देखकर लगता है- मगर प्रस्तुति के  समय वह हकला जाते हैं।  हिन्दी लिखने के ढेर सारे टूल उनके पास है वह इसका उपयोग नहीं जानते। जानते हैं तो कट पेस्ट में समय खराब करना उनको अच्छा नहीं लगता।  उनका लिखा हमें हकलाते हुए पढ़ना पढ़ता है।  तय बात है कि वह लिखते हुए समय बचाते हैं पर जब दूसरे का लिखा  पढ़ने का समय आता है तो उनका दिमाग भी लिखे गये विषय को हकलाते हुए पकड़ता है।  कुछ लोग अंग्रेजी में लिखते हैं पर पढ़ते समय साफ लगता है कि उनके मन का विचार हिन्दी में है। हिन्दी भाषा अध्यात्म की भाषा है यह इस लेखक की मान्यता है।  जब हिन्दी में सोचकर अंग्रेजी भाषा या रोमन लिपि में लिखते हैं तो हकलाहट का आभास होता है।  भाषा का संबंध भूमि, भावना और भात यानि रोटी से है।  भारत में रोमन लिपि और अंग्रेजी भाषा की गेयता कभी पूरी तरह से निर्मित नहीं हो सकती।  इस सच्चाई को मानकर जो हिन्दी को अपने बोलचाल के साथ ही अपने जीवन में अध्यात्मिक रूप से उपयोग करेगा उसके व्यक्त्तिव में दृढ़ता, वाणी में शुद्धता और विचारों में पवित्रता का वास होगा।  यह तीनों चीजें अध्यात्मिक तथा भौतिक विकास दोनों में सहायक होती हैं।  अध्यात्मिक विकास की लोग सोचते नहीं है पर भौतिक विकास के पीछे सभी हैं।  कुछ लोग भौतिक संपन्नता प्राप्त भी करते हैं तो उसका सुख नहीं ले पाते।  सीधी मतलब यह है कि अध्यात्मिक शक्तियां ही भौतिक सुख दिलाने में सहायक हैं और इसी कारण हर भारतवासी को हिन्दी के साथ जुड़े रहना होगा। 
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior madhyapradesh


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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