समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, February 26, 2012

नेकी कर दरिया में डाल-हिन्दी कविता (neki kar dariya mein daal-hindi kavita or poem)

वादे कर मुकरने से
तुम क्यों घबड़ाते हो।
जमाने को लग गया है यह रोग
तुम क्यों अपने को बचाते हो।
कहें दीपक बापू
नेकी कर दरिया में डाल
करना किसी का भला हो तो
मत ठोको ताल,
छल, कपट और चालाकी फंसे लोग
नित नए प्रपंच रचेंगे,
मतलब की खातिर
एक से उतरकर दूसरे मंच पर नचेंगे,
अपनी बनाए नेक राह पर
चलते रहना बुरा नहीं है
मगर गद्दारों को सबक सिखाने से
भला तुम क्यों परेशान हो जाते हो।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Wednesday, February 15, 2012

इंसानियत के तीमारदार-हिन्दी कविता (insaniyat ke teemardar-hindi kavita or poem)

बहादुरी के दावेदार
जंग के लिये हमेशा तैयार हैं,
बमों के जखीरों पर बैठकर
जहान को दिखा रहे हैं आंखें
दावा यह कि अमन के यार हैं।
कहें दीपक बापू
जब भी खेली जायेगी बारूद की होली
आम इंसानों का खून बहेगा,
सौदागरों के भौंपू सुनायेंगे
खूनखराबे के हाल
आम इंसान का दर्द कौन कहेगा,
बंदूक बना देती है
भले इंसान को भी हैवान,
खंजर जिसकी कमर में बंधा है
बन जाता है शैतान,
कोई खुशी से माने या भय से
उनका यह दावा कि
उनके काले कारनामों में भी
होता इंसानियत का दीदार है।
--------------



संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Monday, February 6, 2012

विजेता बनो-हिन्दी हाइकु (vijeta bano-hindi haiku, or poen or kavita)

हर पड़ाव
हमारे सामने है
नए रूप में,

आँखों में भ्रम
पहचान नहीं है
बदलाव की,

जड़ बुद्धि में
एक जगह खड़ा
घमंडी सोच,

नए रूप में
अपने मिटने का
उसे भय है,

बड़ा खतरा
दुश्मन से नहीं
अपने से है,

निरंकुश है
इंसान का दिमाग
बिखरता है,

थोड़े भय में
काँपते हाथ पैर
हारा आदमी,

हाथ उठाता
आकाश की तरफ
रक्षा के लिए,

मुश्किल है
लोगों को समझाना
ज़िंदा दिल हो,

अपनी सोच
काबू में रखा करो
कटार जैसे,

नहीं तो कटो
बेआसरा होकर
जैसे घास हो।

अपनी शक्ति
अपने अंदर है
ढूंढो तो सही

अपने हाथ
याचक न बनाओ
यूं न फैलाओ

अपनी सोच
अपने हाथ लाओ
विजेता बनो।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर