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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, February 24, 2014

सेवा का स्वांग-हिन्दी व्यंग्य कविता(sewa ka swang-hindi vyangya kavita)



सेवा के स्वांग स्वामी बनने के लिये किये जाते हैं,
दूसरे लोग बदनाम अपनी इज्जत बढ़ाने के लिये किये जाते हैं।
हर इंसान जी रहा स्वार्थ के लिये पर परमार्थ का करता दावा,
पुजने के लिये सभी तैयार आता रहे रोज उनके पास चढ़ावा।
दूसरे को नसीहतें देते हुए ढेर सारे उस्ताद मिल जायेंगे,
दाम खर्च करो तो बड़े बड़े ईमानदार हिलते नज़र आयेंगे,
शिक्षा कहीं नहीं मिलती ज़माने से वफादारी दिखाने की,
गद्दारी करते सभी जल्दी कामयाबी अपने नाम लिखाने की,
कहें दीपक बोते सभी अपने घर में बबूल हमेशा
आम उगने की उम्मीद सर्वशक्तिमान से किये जाते हैं।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Sunday, February 16, 2014

विदुर नीति-जिसका कार्य मंत्र गुप्त रहे वही सफल(vidur neeti-jiska karya mantra gupt rahe vahi safal)



      हमारे अध्यात्मिक दर्शन में अनेक सिद्धांत पढ़ने में रुचिकर नहीं लगते पर जब वर्तमान प्रसंगों से जोड़कर उनका अध्ययन किया जाये तो मन में हलचल मच ही जाती है।  इस समय देश में जो चुनावी राजनीतिक घटनाक्रम में चल रहा है उसमें कुछ नये उभरे हुए व्यक्तित्वों का चरित्र कभी विलक्षण तो कभी विचित्र लगता है।  कुछ वर्ष पूर्व सामाजिक नेता अन्ना हजारे ने देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाया था। उनकी टीम के कुछ सदस्यों ने प्रचार माध्यमों में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली और फिर अपना एक राजनीतिक दल बना लिया।  अन्ना स्वयं कभी इस दल में शामिल नहीं हुए पर उनकी छाया इस दल पर हमेशा रही।  अब चूंकि उनकी कुछ अनुयायियों ने अपनी छवि प्रचार माध्यमों में बना ली तो इस दल को दिल्ली के विधानसभा चुनावों में अच्छी खासी सफलता भी मिली।  उन्होंने अल्पमत में रहते सरकार बनायी और 49 दिन बार उसे त्याग भी दिया।
      हम यहां उनकी सरकार के कामकाज का विश्लेक्षण नहीं कर रहे पर आगामी लोकसभा चुनावों में पूरे देश में छा जाने की उनकी महात्वाकांक्षा देखकर आश्चर्य होता है। सबसे बड़ी बात यह कि आंदोलन के चलते जिस तरह उन्होंने अपनी गतिविधियों से जनमानस में जो छवि बनायी वह अत्यंत रुचिकर है। खास बात यह कि पुराने परंपरागत राजनीतिक दलों में उन्होंने जो हलचल मचायी वह आश्चर्य चकित करती है।

विदुर नीति में कहा गया है कि
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प्राप्यापदं न व्यथते कदाचिदु द्योगमन्विच्छति चपमतः।
दुःख च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिताः संपन्नाः।।
     हिन्दू में भावार्थ-जो मनुष्य विपत्ति आने पर भी दुःखी नहीं होता बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय पर दुःख सहता है वह जीवन में विजयी होता हैं।
चिकीर्पितं विप्रकृतं च वस्य नान्ये जनाः कर्म जानन्ति किंचित्।
मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्योऽप्यस्य च्पवते कश्चिदर्थः।।
     हिन्दी में भावार्थ-जिसके अपनी इच्छा के अनुकूल और दूसरे के प्रतिकूल कार्य करने की योजना के बारे में जान भी नहीं पाते। अपना मंत्र गुप्त रखने और इच्छित कार्य को अच्छी तरह संपन्न होने के कारण काम कभी बिगड़ता नहीं है।
      अन्ना भक्तों की राजनीतिक चालों को कोई पूर्वानुमान नहीं कर पाता। सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली में अपनी सरकार त्याग देने अपने प्रतिकूल जो वातावरण बना उसका प्रतिकार जिस तरह यह लोग कर रहे हैं वह जनमानस में चर्चा का विषय तो बन ही रहा है और ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं वह भविष्य में भारतीय चुनावी राजनीतिक परिदृश्य में उनकी उल्लेखनीय भूमिका बन ही जायेगी। यह सच है कि राजनीतिक, पत्रकारिता और वकालत के क्षेत्र में कोई सदैव अपने स्थापित रहने का दावा नहीं कर सकता पर लोकतंत्र में जिस व्यक्ति को प्रसिद्ध मिलती है उसे चुनाव के दौरान विजय प्राप्त करने के अवसर भी मिल ही जाता है।  अन्ना भक्तों का यह दल  चुनावों में कितना सफल होगा यह अलग विषय है पर भारत में चुनावी राजनीतिक क्षेत्र में सामान्य लोगों के सक्रिय होने के संकोच  करते थे अब वह नहीं रहा। कम से कम उन्होंने भारतीय जनमानस में सुप्तावस्था में पड़ी राजनीतिक चेतना का संचार करने का श्रेय तो इनको जाता ही है।
      उन्हें जिस तरह उन्होंनें समाज  जड़ हो चुकी चुनावी राजनीतिक संवेदना को एक बार फिर संचारित वह पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।  हम जैसे अध्यात्मिक लेखकों की आमतौर से राजनीतिक विषयों पर कोई भूमिका नहीं होती पर जब किसी विषय का आचरण या विचार से होता है कुछ देर उसके रुझान जरूर पैदा होता है।  दूसरी बात यह कि अध्यात्मिक रूप से संपन्न व्यक्ति ही अन्य कार्य भी कर सकता है इसलिये राजनीतिक विषयों में सक्रिय व्यक्तियों के जब कुछ विशेष प्रयास होता है तो उन पर इस देश का नागरिक होने के कारण ध्यान जाता ही है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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Sunday, February 9, 2014

भर्तृहरि नीति शतक-किसी का स्वार्थ पूरा किये बिना सम्मान पाने की इच्छा व्यर्थ(bhartihari neeti shatak-kise ka swarth poora kiye bina samman pane ki ichchha vyarth)



      इस संसार में भौतिक विकास की चाह हर मनुष्य को होती है। सभी को भारी धन संपदा या वैभव नहीं मिल पाता-ऐसे में कहा जा सकता है कि यह भाग्य की महिमा तो यह भी माना जा सकता है कि जिन मनुष्यों पर माया की कृपा अधिक नहीं है या अल्प है वह उनके कर्म का ही परिणाम है।  भौतिक आधार पर मनुष्य के तीन वर्ग माने गये हैं-उच्च, मध्यम और निम्न। यही आधार उसके आचरण और व्यवहार से भी तय होता है। निम्न कोटि का व्यक्ति धन संपदा अधिक होने पर अत्यंत अहंकार पूर्ण व्यवहार करने लगता है जबकि मध्यम वर्ग का व्यक्ति अपने आप में डूबकर सामान्य लोगों से कट जाता है।  उच्च वर्ग का व्यक्ति अपने धन का उचित प्रयोग करने के साथ ही जहां नम्र होता है वहीं समय समय पर वह समाज के लिये दान या सहायता के रूप में व्यय भी करता है।  जहां तक धन संपदा होने पर समाज में सम्मान का प्रश्न है तो लोग दिखावटी रूप से सभी का करते हैं मगर हार्दिक प्रेम उनका केवल उन्हीं धनपतियों को देते हैं जो वास्तव में समाज के लिये हितकर होते हैं।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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किं तेन हेमगिरिणा रजतद्रिणा वा यत्राश्रिताश्च तरवस्तरवस्त एव।
मन्यामहं मलयमेव यदाश्रयेण कङ्कोलनिन्वकुटजा अपि चन्दनाः स्युः।।
     हिन्दी में भावार्थ-सुमेरु  पर्वत सोने से भरा है  है मगर उस पर स्थित पेड़ पौ़द्यों को कोई लाभ नहीं क्योंकि उनका मूल रूप नहीं बदलता।  उससे अच्छा तो मलय पर्वत है जहां के सारे पेड़ पौद्ये उसके सानिध्य में चंदनमय हो जाते हैं।
      आमतौर से देखा गया है कि अध्यात्मिक दृष्टि से निम्म कोटि के व्यक्ति धन आने पर इतने आत्ममुग्ध हो जाते हैं कि जहां तहां अपनी प्रशंसा स्वयं करते हैं। कई तो ऐसे भी होते हैं कि अपने दान तथा त्याग का झूठा प्रचार करते हैं। इन लोगों से परिवार के अलावा अन्य कोई लाभान्वित नहीं होता इसलिये हार्दिक प्रेम का उन्हें अनुभव नहीं होता इसलिये न वह किसी से करते हैं न कोई उनको देता है-वह तो अपने अंदर ही यह भ्रम पाल लेते हैं कि हमारे पास धन है तो समाज वैसे ही सम्मान करता है। यही स्थिति मध्यम वर्ग की भी होती है।  इसके विपरीत उच्च कोटि वाला धनिक यह जानता है कि जब तक वह किसी के लिये लाभदायक अवसर पैदा नहीं करेगा तब तक समाज से सम्मान पाने की  ही नहीं वरन् धन की सार्थकता देखने की भी उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती।  व्यक्ति वही महान या बड़ा कहलाता है जो अपने तथा परिवार से प्रथक जब बाह्य रूप में स्थित होकर परोपकार का काम करे। 
     कहने का अभिप्राय यह है कि इस भौतिक संसार में जब तक हम किसी को प्रत्यक्ष लाभ नहीं दे सकते तब तक किसी प्रकार का प्रेम या सम्मान पाने की आशा करना व्यर्थ है। दूसरे शब्दों में यह कहें कि हम जब किसी व्यक्ति से सम्मान या प्रेम की आशा करें तो यह भी विचार करना चाहिये कि हम उसके लिये काम के हैं या नहीं।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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Sunday, February 2, 2014

समाचार और बहस की फिल्म में वांछित तीसरा पात्र-विशिष्ट रविवारीय लेख(samachar aur bahas ki film mein vaanchhit teesra paatra-vishshth ravivariya lekh)



             2014 में लोकसभा के आम चुनाव होने तय हैं। हमारे देश में सामान्यतः राष्ट्रीय, प्रांतीय तथा नगरीय प्रतिनिधि सभाओं को चुनाव पांच वर्ष में एक बार अवश्य होते हैं।  प्रचार माध्यमों के लिये राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हमेशा ही आकर्षक प्रचार तथा बहस की सामग्री प्रदान करने वाले होते हैं जिनसे उनको अपने विज्ञापन के बीच प्रसारित कर अपने सामाजिक दायित्व निभाते दिखने की सुविधा मिलती है। टीवी चैनलों और अखबारों का वर्तमान लोकतंत्र में इतना जबरदस्त प्रभाव है कि चुनावी राजनीति में सक्रिय हर राजनेता अपनी छवि धवल बनाये रखने के लिये इनके प्रसारणों तथा प्रकाशनों पर ध्यान रखता है।  इनके प्रकाशन राजनीतिक संगठनों पर इस कदर प्रभाव डालते हैं कि उनमें अनेक प्रवक्ता इसलिये रखे जाते हैं ताकि समय समय पर अनेक चैनलों पर एक साथ चल रही बहस में उनकी हिस्सेदारी रहे।  जब सामाजिक मसले पर बहस हो रही हो तो अनेक बार ऐसा भी होता है कि एक समाज सेवक एक चैनल पर चल रही बहस खत्म कर दूसरे पर अवतरित होता है क्योंकि उनके पास ऐसा अनेक प्रवक्ताओं वाला कोई संगठन नहीं होता।
            भारतीय राजनीति पर इन प्रचार संगठनों का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। प्रत्यक्ष तो प्रकट है पर अप्रत्यक्ष का अनुमान ही किया जा सकता है।  अनेक बार ऐसी गतिविधियां और बयान सामने आते हैं कि लगता है कि उनका प्रायोजित निर्माण हुआ हो ताकि प्रचार माध्यमों को उन पर सनसनी भरे समाचार तथा संवेदनशील बहस का अवसर मिल सके।  खासतौर से सामाजिक विषयों पर अक्सर कहा जाता है कि अमुक आदमी ने मीडिया में नाम पाने के लिये उलूलजुलूल बयान दिया है। उस समय शंकायें उठती हैं कि कहीं वह प्रायोजित सामाजिक घटना यह बयान तो नहीं है। जिस तरह हमारे देश में समाज को  महिला, बालक, वृद्ध, बीमार तथा भूखों के वर्ग में बांटकर टुकड़ा टुकड़ा अभियान चलाकर प्रचार पाने की रीति चली है उसी तरह ही प्रचार माध्यम भी प्रतिदिन विषय बदलकर बहसों का रूप बदलते हैं।  जब कुछ भी न हो तो महिला विषयों पर चर्चा हो जाती है। राजनीति से ज्यादा समाज के विषय पर कही गयी सनसनीपूर्ण बात ज्यादा इन प्रचार माध्यमों को आकर्षक लगती है। ऐसे में महिलाओं को  लेकर कोई फालतु बयान उनके लिये चिंता का विषय दिखाने के लिये होता है जबकि वह विज्ञापनों के बीच समाचार तथा बहस के प्रसारण में रुचिकर हो जाता है।
            महिलाओं पर कई विवादास्पद बयान आते हैं पर अगर किसी प्रतिष्ठत व्यक्ति का हो तो उस पर सार्वजनिक चर्चा होना ही है।  ऐसे में यह समझ में नही आता कि उस व्यक्ति ने अपना बयान प्रचार पाने के लिये दिया या प्रचार माध्यमों के प्रबंधकों ने अपने प्रयास से दिलवाया।  अभी हाल ही में एक नये दल के उदय हुआ जिसके कर्णधार तक यह मानते हैं कि प्रचार माध्यमों ने उनको इतनी ऊंचाई तक पहुंचाया है।  स्वयं प्रचार माध्यमों ने अपने सर्वेक्षण में इस बात को पाया कि 42 फीसदी लोग उस दल के उदय में समाचारों और बहसों का केंद्र बिन्दू में अधिक समय तक रहना मानते हैं।  ऐसा लगता है कि नियमित राजनीतिक परिदृश्य से उकताये प्रचार प्रबंधकों को लग रहा था कि फिल्मी कहानी की तरह प्रसारित उनके समाचार तथा बहसों में कोई तीसरा पात्र भी होना चािहये। जिस तरह कभी भारतीय सिने जगत में बहुनायक वाद था उसी शैली में प्रचार प्रबंधक यह चाहते रहेे होंगे कि उनके प्रतिदिन फिल्म या धारावाहिक की तरह प्रसारित होने वाले समाचार और बहसों में कभी कभी ऐसे पात्र उभरने चाहिये जो कभी कॉमेडी तो कभी अतिगंभीर वातावरण बनाने मंें सहायक हों।  यह स्थिति वैसे ही जैसे कि फिल्म में मनोरंजन के साथ ही कभी हास्य तो कभी अतिगंभीर संदेशवाहक दृश्य संयोजित किया जाता है।  जिस तरह वह दल प्रचार माध्यमों ने उभारा तो एक समय ऐसा लगा कि वह उसे देशव्यापी विेजेता बना देंगे मगर अंततः उन्हें अपना अर्थशास्त्र भी देखना ही था इसलिये धीरे धीरे अब वह उसी दल के प्रति नकारात्मक प्रचार भी करने लगते हैं।  उसका अस्तित्व बना रहे ताकि भविष्य में काम इसलिये उसका सकारात्मक पक्ष भी रख रहे हैं। जिस तरह यह दल पहले चल रहा था उससे लगा कि यह पूरे देश में छा जायेगा पर अब इसकी संभावना नगण्य रह गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रचार माध्यमों ने एक बहुत बड़ी  शक्ति हासिल कर ली है।
            हम इस शक्ति से ईर्ष्या नहीं करते वरन् चाहते हैं कि इसका वह भारतीय समाज के निर्माण में अपनी  लगायें। यह कार्य केवल अध्यात्मिक टीवी चैनलों या लोगों के भरोसे करने की बजाय वह आम आदमी की आवाज को अपने पर्दे पर स्थान देकर ही किया जा सकता है।  अभी प्रचार माध्यमों ने कुछ प्रतिभाशाली बालकों का प्रदर्शन दिखाया जो काफी प्रशंसनीय था।  आम नागरिक में सामूहिक आत्मविश्वास भरने के लिये यह आवश्यक है कि उसकी आवाज और शब्दों को प्रचार माध्यम स्थान दें।  हमने देखा है कि प्रतिष्ठित लोगों के ट्विटर, फेसबुक और ब्लॉग की सामान्य बातों को भी यह लोग प्रचारित करते हैं। एक तरह से यह वातावरण बनाया गया है कि सामाजिक अंतर्जालीय जनसंपर्क पर केवल बड़े ही लोग प्रभावशाली ढंग से सक्रिय हैं। सामान्य जनों की सक्रियता का कोई अर्थ नहीं है। हमारा मानना है कि टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में अगर सामान्य जनों की आवाज को उनका नाम देकर प्रकाशित किया जाये तो समाज का आत्मविश्वास बढ़ेगा।  एक बात याद रखें लिखने या बोलने की कला प्रतिष्ठित लोगों में नहीं होती वरन् सामान्य जन भी माहिर होते हैं पर चूंकि उन्हें कोई स्थान नहीं देता इसलिये समाज में प्रचार माध्यमों को लेकर भी निराशा व्याप्त है।
            बहरहाल आने वाले लोकसभा चुनावों के निकट आते आते अनेक गंभीर तो अनेक हास्य जनक समाचार सामने आयेंगे।  जहां राजनीतिक संगठन आने वाले चुनावों की तैयारी में व्यस्त हैं तो प्रचार प्रबंधक भी इस तरह की योजना बन रहे होंगे कि इस महाकुंभ में की अर्थनदी में स्वयं भी नहा लें। हम जैसे आम इंसान और फोकटिया लेखक की भूमिका एक दर्शक की तरह होती है। यह अलग बात है कि हिन्दी भाषा तथा टंकण का ज्ञान होने के साथ ही कंप्यूटर चलाने का अभ्यास हमें अपनी अभिव्यक्ति को अंतराष्ट्रीय रूप देने का अवसर मिल जाता है। इस अंतर्राष्ट्रीय रूप को लेकर हम खुशफहमी नहीं पालते और गलतफहमी नहीं पालें-यह तक हमने इसलिये दिया क्योंकि हमारे ब्लॉग बताते हैं कि उन्हें अनेक देशों में पढ़ा जाता है हालांकि पाठ तथा पाठकों की संख्या कोई अधिक नहीं होती।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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