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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, July 30, 2008

दानव का अवतार अब नहीं होता-हिंदी शायरी

बम के धमाके से कांप गये शहर
इमारते कांपने लगी
वाहन उड़ गये हवा में
बिछ गयी लाशें सड़कों पर
पसर गया चारों और खून
दानव अट्टहास करते हुए बोला
‘’अब देवता धरती पर नहीं आते
मेरे अवतार होने के भय से वह भी घबड़ाते
पर मुझे भी वहां जाने की क्या जरूरत
इंसानों ने ही धर लिया है मेरा भेष
मुझसे काम अधिक तो वही कर आते
मैं तो देवताओं के चाहने वालों पर ही
करता था हमला
वह तो चाहे जिसे मारकर चले जाते
आम इंसानों के दिल में
बहुत समय तक दहशत फैलाकर
मेरे को ठंडक पहुंचाते
इंसान के मरने से अधिक
उसके तड़पने के अंदाज मुझे भाते
दानव का अब अवतार नहीं होता
धरती पर कुछ इंसान मेरे भेष में भी हैं
यह बात सब नहीं जान पाते’’
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पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Saturday, July 26, 2008

हमदर्दी बेचना अपना व्यापार मानते-हिंदी शायरी

जख्म जिनको होता है
दर्द ही होता है उनका अपना
हमदर्दी बस होती है दिखावा
बेघर होने का अहसास
जिनके घर उजड़ जाते वही जानते
बरसी है दौलत जिनके घर में
वह भला उजड़ने का दर्द क्या जानते
हमदर्दी में चंद शब्द कहने से
किसी का पेट नहीं भर जाता
उजड़ा घर बस नहीं जाता
जिन्होंने खोये हैं अपने हादसों में
दहशत के सौदागरों के हाथ
दिखाने के लिये कई लोग आगे बढ़ाते हाथ
जो हमदर्दी बेचना अपना व्यापार मानते
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जब तक बाजार में बिकेगी सनसनी-हिंदी शायरी

Friday, July 25, 2008

एक मंडी दहशत के नाम हो गयी-हिंदी शायरी

दहशत की भी सब जगह
चलती फिरती दुकान हो गयी
विज्ञापन का कोई झंझट नहीं
उनकी करतूतों की खबर सरेआम हो गयी

कहीं विचारधारा का बोर्ड लगा है
कहीं भाषा का नाम टंगा है
कहीं धर्म के नाम से रंगा है
जज्बातों का तो बस नाम है
सारी दुनियां मशहूरी उनके नाम हो गयी

बिना पैसे खिलौना नहीं आता
उनके हाथ में बम कैसे चला आता
फुलझड़ी में हाथ कांपता है गरीब बच्चे का
उनके हाथ बंदूक कैसे आती
गोलियां क्या सड़क पड़ उग आती
सवाल कोई नहीं पूछता
चर्चाएं सब जगह हो जाती
गंवाता है आम इंसान अपनी जान
कमाता कौन है, आता नहीं उसका नाम
दहशत कोई चीज नहीं जो बिके
पर फिर भी खरीदने वाले बहुत हैं
सपने भी भला जमीन पर होते कहां
पर वह भी तो हमेशा खूब बिके
हाथ में किसी के नहीं खरीददार उनके भी बहुत हैं
शायद मुश्किल हो गया है
सपनों में अब लोगों को बहलाना
इसलिये दहशत से चाहते हैं दहलाना
आदमी के दिल और दिमाग से खेलने के लिये
सौदागरों को कोई तो चाहिए बेचने के लिये खिलौना
इसलिये एक मंडी दहशत के नाम हो गयी
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कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Thursday, July 24, 2008

रास्ते दो ही हैं इस दुनियां में-व्यंग्य हिंदी शायरी

चेले ने पूछा गुरू से
‘भारी मानसिक युद्ध में फंसा हूं
कोई उपाय बताईये
जंग है विश्वास की
उससे मुझे पार लगाईये
एक का निभाता हूं
दूसरे का किसी हालत में तोड़ना होगा विश्वास
इधर जाऊं समझ में नही आता
रास्ता कोई आप ही बताईये
आपके उपदेश पर ही है विश्वास’

गुरू ने कहा
‘किस माया के चक्कर में पड़े हो
उसके हैं तीन रूप धन, शक्ति और प्रतिष्ठा
पहले उसका स्वरूप बताओ
विश्वास की कभी जंग नहीं होती
हमारी बुद्धि की गली ही तंग होती
तभी हालत ऐसी आती है
सत्य की कोई परीक्षा नहीं है
जिस पर विश्वास है वह निभाएगा भी
पर माया में ही ऐसा होता है
इसलिये जहां माया मोल तोल में भारी हो
वहीं पहुंच जाओ
चाहे जितना माया का ढेर उठा लाओ
नैतिकता का मानदंड कोई
किसी किताब में नहीं लिखा
आज के लोगों में हमें भी कहीं वह नहीं दिखा
हम तो ठहरे निष्काम
हमें समझ में नहीं आता माया का काम
जिधर ले जाए वहीं होता विश्वास
जिसे नहीं मिलती वही होता निराश
जमाने को लगी है हवा ऐसी
धन और प्रतिष्ठा में
आदमी की बुद्धि का हो गया निवास
सत्य की राह पर चलते हो तो
अधिक सोचना नहीं
पर माया के रास्ते जाओ तो
कर लेना पहले कम और अधिक का आभास
रास्ते दो ही है इस दुनियां में
एक है सत्य का
दूसरा माया का
इस नियम पर करना विश्वास
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यह कविता मूल रूप से इस ब्लाग दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका पर प्रकाशित है। इसे अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं दी गयी है
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Monday, July 21, 2008

किसी को भागीरथ बनने का ख्याल नहीं आता-हिंदी शायरी

कुछ पाने के लिये

दौड़ता है आदमी इधर से उधर

देने का ख्याल कभी उसके

अंदर नहीं आता

भरता है जमाने का सामान अपने घर में

पर दिल से खाली हो जाता

दूसरे के दिलों में ढूंढता प्यार

अपना तो खाली कर आता

कोई बताये कौन लायेगा

इस धरती पर हमदर्दी का दरिया

नहाने को सभी तैयार खड़े हैं

दिल से बहने वाली गंगा में

पर किसी को खुद भागीरथ
बनने का ख्याल नहीं आता
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दीपक भारतदीप

Sunday, July 20, 2008

हकीकत वैसी नहीं होती अमूनन-हिंदी शायरी

सपने सजाता है
उनको बिखरता देख
टूट जाता है मन
कहीं लगाने के लिये ढूंढो जगह
वहीं शोर बच जाता है
जैसे जल रहा हो चमन

भला आस्तीन में सांप कहां पलते हैं
इंसानों करते हैं धोखा
नाम लेकर का खुद ही जलते हैं
क्या दोष दें आग को
जब अपने चिराग से घर जलते हैं
वही सिर पर चढ़ आता है
जिसे करो पहले नमन
जब बोलने को मचलती है जुबान
अंदाज हालातों का नहीं करती
चंद प्यार भरे अल्फाज भी
नहीं दिला पाते वह कामयाबी
जो खामोशी दिला देती है
सपनों में जीना अच्छा लगता है
पर हकीकत वैसी नहीं होती अमूनन
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दीपक भारतदीप


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Wednesday, July 16, 2008

घड़ी की सुई जब तक तय न करे-हिंदी शायरी

जो दिल में बसते हैं
ऐसे लोगों की याद अकेले में
बहुत तरसाती है
उनसे मिलन की चाह सताती है
पर भला किसका बस चला है
इस समय पर
जो आदमी की जरूरतों को पास लाकर
अपनो से दूर कर देता है
जिंदगी भर के सपने गुजारने के सपने
एक पल में चूर कर देता है
इसलिये वादों पर क्या भरोसा करें
जो समय के पाबंद होते हैं
आदमी अपनी जुबाने से
चाहे कितने भी बात कर ले
घड़ी की सुई जब तक तय न करे
कोई ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाती है
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दीपक भारतदीप

Sunday, July 13, 2008

पहले नजर के प्यार की डील-हास्य कविता

लंबा तगड़ा और आकर्षक चेहरे वाला
वह लड़का शहर की फुटपाथ
पर चला जा रहा था
सामने एक सुंदर गौरवर्ण लडकी
चली आ रही थी
यह सड़क बायें थी वह दायें था
पास आते ही दोनों के कंधे टकराये
पहली नजर में दोनों एक दूसरे को भाये
दृश्य फिल्म का हो गया
दोनों को ही इसका इल्म हो गया
लड़की चल पड़ी उसके साथ
अब वह बायें से दायें चलने लगी

चलते चलते बरसात भारी हो गयी
सड़क अब नहर जैसी नजर आने लगी
लड़की ने कहा-
‘यह क्या हुआ
यह कैसी मेरी और तुम्हारी इश्क की डील हुई
जिस सड़क से निकली थी
वह डल झील हो गयी
पर मैं तो चल रही थी बायें ओर
दायें कैसे चलने लगी
तुम अब पलट कर मेरे साथ बायें चलो’
ऐसा कहकर वह पलटने लगी

लड़के ने कहा
‘मेरे घर में अंधेरा है
एक ही बल्ब था फुक गया है
खरीद कर जा रहा हूं
मां बीमार है उसके लिये
दवायें भी ले जानी है
यह तो पहली नजर का प्यार था
जो शिकार हो गया
वरना तो दुनियां भर की
मुसीबतें मेरे ही पीछे लगी
तुम जाओ बायें रास्ते
मैं तो दाएं ही जाऊंगा
अब नहीं करूंगा दिल्लगी’

लड़की ने कहा
‘तो तुम भी मेरी तरह फुक्कड़ हो
तुम्हारे कपड़े देखकर
मुझे गलतफहमी हो गयी थी
जो पहली नजर के प्यार का
सजाया था सपना
दूसरी नजर में तुम्हारी सामने आयी असलियत
वह न रहा अपना
इसलिये यह पहले नजर के प्यार की डील
करती हूं कैंसिल’
ऐसा कहकर वह फिर बायें चलने लगी।
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दीपक भारतदीप

Monday, July 7, 2008

फरिश्ते दिखने की कोशिश-हिंदी शायरी

अगर होता अमन इस जहां में
चैन होता हर इंसान में
तो ऐसे कई लोगों के घर में
सन्नाटा रह जाता
जो रहते हैं महलों में
जहां रौशनी बिखरी पड़ी है रात में
कभी इंसान तो कभी उसके जज्बात
उनके निशाने पर होते हैं
कभी करते सौदा
तो कभी कत्ल कर देते हैं उनका
दिल में शैतान उनके
पर फरिश्ते दिखने की कोशिश
करते हैं वह अपनी जुबां से हर बात में
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बरसात में गंदे नालों का पानी लेकर
उफनती हुई चलती हैं नदियां
मुरझाये फूल हैं पर
मेकअप बना देता ऐसे जैसेकलियां
अगर इतरायें नहीं तो
लोग भूल जायें उनकी गलियां
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दीपक भारतदीप

Sunday, July 6, 2008

रह जाते बस जख्मों के निशान-हिन्दी शायरी


मोहब्बत में साथ चलते हुए
सफर हो जाते आसान
नहीं होता पांव में पड़े
छालों के दर्द का भान
पर समय भी होता है बलवान
दिल के मचे तूफानों का
कौन पता लगा सकता है
जो वहां रखी हमदर्द की तस्वीर भी
उड़ा ले जाते हैं
खाली पड़ी जगह पर जवाब नहीं होते
जो सवालों को दिये जायें
वहां रह जाते हैं बस जख्मों के निशान
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जब तक प्यार नहीं था
उनसे हम अनजान थे
जो किया तो जाना
वह कई दर्द साथ लेकर आये
जो अब हमारी बने पहचान थे
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दीपक भारतदीप

Saturday, July 5, 2008

कुछ गूगल के हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद टूल से भी पूछ लो-व्यंग्य

जो कोई नहीं कर सका वह गूगल का हिंदी अंग्रेजी टूल करा लेगा। वह काम हैं हिंदी के लेखकों से शुद्ध हिंंदी लिखवाने का। दरअसल आजकल मैं अपने वर्डप्रेस के शीर्षक हिंदी में कराने के लिये उसके पास जाता हूं। कई बार अनेक कवितायें भी ले जाता हूं। उसकी वजह यह है कि हिंदी में तो लगातार फ्लाप रहने के बाद सोचता हूं कि शायद मेरे पाठ अंग्रेजों को पसंद आयें। इसके लिये यह जरूरी है कि उनका अंग्रेजी अनुवाद साफ सुथरा होना चाहिये। अब हिट होने के लिये कुछ तो करना ही है। अब देश के अखबार नोटिस नहीं ले रहे तो हो सकता है कि विदेशी अखबारों में चर्चा हो जाये तो फिर यहां हिट होने से कौन रोक सकता है? फिर तो अपने आप लोग आयेंगे। तमाम तरह के साक्षात्कार के लिये प्रयास करेंगे।

इसलिये उस टूल से अनुवाद के बाद उनको मैं पढ़ता हूं पर वह अनेक ऐसे शब्दों को नकार देता है जो दूसरी भाषाओं से लिये गये होते हैं या जबरन दो हिंदी शब्द मिलाकर एक कर लिखे जाते हैं। इसका अनुवाद सही नहीं है पर जितना है वह अंग्रेजी में पढ़ने योग्य हो ही जाता है। उसकी सबसे मांग शुद्ध हिंदी है। उस दिन चिट्ठा चर्चा में एक शब्द आया था जालोपलब्ध। मैंने इसका विरोध करते हुए सुझा दिया जाललब्ध। इस टूल पर प्रमाणीकरण के लिये गया पर उसने दोनों शब्दों को उठाकर फैंक दिया और मैं मासूमों की तरह उनको टूटे कांच की तरह देखता रहा। तब मैंने जाल पर उपलब्ध शब्द प्रयोग किया तब उसने सही शब्द दिया-जैसे शाबाशी दे रहा हो। मतलब वह इसके लिये तैयार नहीं है कि तीन शब्दों को मिलाकर उसक पास अनुवाद के लिये लाया जाये।

इधर बहुत सारे विवाद चल रहे हैं। कोई कहता है कि हिंदी में सरल शब्द ढूंढो और कोई कहता है कि हिंदी में उर्दू शब्दों का प्रयोग बेहिचक हो। कोई कहता हैं कि उर्दू शब्दों में नुक्ता हो। कोई कहता है कि जरूरत नहीं। इन बहसों में हमारे अंतर्जाल लेखक-जिनमें मैं स्वयं भी शामिल हूं-इस बात पर विचार नहीं करते कि कुछ गूगल के हिंदी अग्रेजी टूल से भी तो पूछें कि उसे यह सब स्वीकार है कि नहीं।
आप कहेंगे कि इससे हमें क्या लेना देना? भई, हिंदी में भी अंतर्जाल पर लिखकर हिट होने की बात तो अब भूल जाओ। भाई लोग, अब बाहर के लेखकों के लिये क्लर्क का काम भी करने लगे हैं। उनकी रचनायें यहां लिख कर ला रहे हैं और बताते हैं कि उन जैसा लिखो। अब इनमें कई लेखक ऐसे हैं जिनका नाम कोई नहीं जानता पर उनको ऐसे चेले चपाटे मिल गये हैं जो उनकी रचनाओें को अपने मौलिक लेखन क्षमता के अभाव में अपना नाम चलाने के लिये इस अंतर्जाल पर ला रहे हैं। सो ऐसे में एक ही चारा बचता है कि अंतर्जाल पर अंग्रेजी वाले भी हिंदी वालों को पढ़ने लगें और अगर वह प्रसिद्धि मिल जाये तो ही संभव है कि यहां भी हिट मिलने लगें।

मैं यह मजाक में नहीं कह रहा हूं। यह सच है कि भाषा की दीवारें ढह रहीं हैं और ऐसे में अपने लिखे के दम पर ही आगे जाने का मार्ग यही है कि हम इस तरह लिखें कि उसका अनुवाद बहुत अच्छी तरह हो सके। हालांकि मैंने प्रारंभ में कुछ पाठ वहां जाकर देखे पर फिर छोड़ दिया क्योंकि उस समय कुछ अधिक हिट आने लगे थे। अब फिर वेैसी कि वैसी ही हालत हो गयी है और अब सोच रहा हूं कि पुनः गूगल के हिंदी अंग्रजी टूल पर ही जाकर अपने पाठ देखेंे जायें वरना यहां तो पहले से ही अनजान लेखकों को यहां पढ़कर अपना माथा पीटना पड़ेगा। अखबार फिर उन लेखकों और उनको लिखने वाले ब्लाग लेखकों के नाम छापेंगे। अगर अपना नाम कहीं विदेश में चमक जायेगा तो यहां अपने आप हिट मिल जायेंगे। वैसे भी यहां हिंदी वाले अंग्रेजी की वेबसाईटें देखना चाहते है और उनके लिये हिंदी में पढ़ना एक तरह से समय खराब करना है ऐसे में हो सकता है कि जब यहां प्रचार हो जाये कि अंग्रेजी वाले भी हिंदी में लिखे पाठों को पढ़ रहे है तब हो सकता है कि उनमें रुचि जागे। यहां के लोग विदेशियों की प्रेरणा पर चलते हैं स्वयं का विवेक तो बहुत बाद में उपयोग करते हैं।

Friday, July 4, 2008

हादसे और जिंदगी-हिंदी शायरी

हादसों से बनती है जिंदगी भी
सोचा न था कभी
जब होते हैं तो डर जाता हूं
हारने का अहसास दिल में
तब होने लगता है
फिर अचानक रास्ता आगे
जाता नजर आता है
खड़ा हो जाता हूं तभी
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