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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 30, 2014

शब्दों से सिंहासन हिल जाते हैं-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(shabodn se sinhasan hil jate hain-hindi vyangya kavita)



किसको बढ़ती महंगाई की फिक्र है,
सभी की जुबान पर अपनी कामयाबी का जिक्र है,
जहान की परेशानियों से कुछ लोग बहुत  हैरान है।
कहें दीपक बापू दर्द झेलने वाले
कहीं अपने इलाज की भीख मंागने नहीं जाते
 फिर भी हमदर्दी के सौदागर बेचते अपनी चिंता
 जेब में रखते इनाम
चेहरा ऐसा दिखाते जैसे जहान के गम से वह परेशान है।
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न पेड़ लगते न पत्ते लहराते
फिर भी कागजों पर ढेर सारे गुलाब खिल जाते हैं,
यहां कोई फरिश्ता नहीं दिखता
फिर भी नारे लगाने वाले बहादुरों के पीछे
बहुत सारे लोगों के दिल जाते हैं।
कहें दीपक बापू यहां जुबानी जंग लड़ने के
अच्छे दाम लेकर अक्लमंद संभालते मैदान
 कोई मसला नहीं सुलझता यहां
चर्चा यह कि शब्दों से सिंहासन हिल जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Thursday, March 27, 2014

भर्तृहरि नीति शतक-दुष्ट तथा लालचियों को सरंक्षण देने वालों से सुख की अपेक्षा नही(bharitrihari neeti shatak-dusht tathaa lalchiyon ko sanrkashan dene walon se sukh ki apeksha nahin)



      हमारे देश में वर्ष 2014 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं।  इन चुनावों में दागी लोगों के चुनाव लड़ने पर देश में लंबे समय से बहस चल रही है पर जैसा कि आधुनिक लोकतंत्र का सिद्धांत बन गया है कि बहसें चलती रहें भले ही उनका निष्कर्ष निकले या नहीं, यही अब भी हो रहा है।  प्रचार माध्यमों में बहुत समय से भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक वातावरण बना पर ऐसा लग नहीं रहा कि उसका कोई सकारात्मक प्रभाव हुआ है।  अपराधिक तथा भ्रष्ट छवि वाले लोगों को अब भी चुनाव में शामिल होने का अवसर धड़ल्ले से मिल रहा है।
      हैरानी की बात यह है कि देश में लंबे समय तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन से प्रचार माध्यमों में अपनी महान छवि बनाने वाले लोगों ने अपना एक समूह बनाया और वह भी भ्रष्ट तथा अपराधिक छवि वाले लोगों को टिकट देकर यह साबित कर रहे हैं कि उनका काम भी मैली छवि वालों के बिना नहीं चल सकता।  हमें इन चुनावों में शामिल होने पर ऐसे लोगों पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में यह सभी को अधिकार प्राप्त है कि जब तक किसी पर अपराध सिद्ध न हो जाये उसे चुनाव लड़ने से कोई रोक नहीं सकता।

भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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उद्भासिताऽखिलखलस्य विश्रृङखलस्यप्रारज्ञातविस्तृतनिजाधमकर्मवृत्तेः।
दैवादवाप्तविभवस्य गुणद्विषोऽस्य नीचस्य गोचरगतैः सुखमाप्यते कैः?।।
      हिन्दी में भावार्थ-नीच कर्म से अपने वर्ग के समस्त दुष्टों को प्रकाश में लाने, इच्छानुसार व्यवहार, पहले किये कुकर्मों में प्रवृत्ति रखने, यकायक संपत्ति पाने, धार्मिक वृत्ति से दूर रहने, तथा गुणवानों से द्वेष रखने वाले नीच जीवों के साथ रहकर कोई सुख नहीं पा सकता।

      चुनाव में सक्रिय समूह संविधान के अनुसार चल रहे हैं इसलिये उन पर कोई टिप्पणी करना भी ठीक नहीं है पर बात नैतिकता की है। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार दुष्ट लोगों को प्रकाशमान बनाना भी एक तरह अनैतिक हैं।  जिन आम लोगों को यह अपेक्षा रहती है कि उनके जनप्रतिनिधि उनके हित का काम करे उन्हें यह भी देखना चाहिये कि उसकी छवि किस तरह की है?  जिन लोगों ने येनकेन प्रकरेण धन प्राप्त कर लिया है उनमें  आधुनिक लोकतंत्र में श्रेष्ठ राजसी पुरुष की उपाधि धारण करने की प्रवृत्ति जोर मारती है।  ऐसे में धन के बल पर उनके पास पेशेवर बुद्धिमान, लालची बाहुबली तथा मर मिटने वाले अनुचरों का होना स्वाभाविक है।  जनमानस में अपना प्रचार करने के पूरे साधन होने से अंततः उन्हें सफलता मिल ही जाती है। सच बात तो यह है कि विश्व में आधुनिक लोकतंत्र में धनपतियों को अप्रत्यक्ष रूप से राजा बनने की सुविधा प्राप्त हुई है जिसका लाभ वह उठा ही लेते हैं। यही कारण है कि हम अपने देश में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में ऐसी व्यवस्था प्रचलित देख रहे हैं जिसमें सामान्य आदमी एक भोक्ता से अधिक हैसियत वाला नहीं है। वह निर्णायक दिखता है पर होता नहीं है।  विकास बहुत हुआ है पर लोगों का मानसिक सुख कम हो गया है। हमारे आध्यात्मिक दर्शन के अनुसार जिस तरह भ्रष्ट, अपराध तथा धनलोलुप लोगेां को शीर्षस्थ स्तर पर स्थान मिल रहा है उसमें समाज हित की ज्यादा अपेक्षा करना भी नहीं चाहिये।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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Saturday, March 22, 2014

शैतानी चेहरे-हिन्दी व्यंग्य कविता(shaitani chehre-hindi vyagnya kavita)



जब दौलतमंदों की हुकुमत चलती है तब लोग गरीब हो जाते हैं,

जब किस्मत लिखती मेहनत के कम भाव  तब फूटे नसीब हो जाते है।

जब राजा चंगुल में प्रजा अंगुल में तब ताकतवर हो जाते हैं अमीर,

उनको कौड़ियों के भाव बेचने निकलते हैं कमजोर लोग अपना ज़मीर,

सौदागर बेचते लोगों को घरों में चमक लाने के लिये चांद का सौदा,

बहस है बेईमानी कम करने का नहीं ईमानदारी चर्चा का मसौदा,

सोने और चांदी की  चाहत ने इंसानों की अक्ल छीन ली है,

खुशी की जगह इंसान ने गम की शयें ज़मीन से  बीन ली है,

कहें दीपक बापू अरसा हो गया इस धरती पर फरिश्ते लापता हुए

अब तो शैतानी चेहरे मुखौटा लगाकर धोखा देने आ जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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Saturday, March 15, 2014

रहीम दर्शन पर आधारित लेख-सस्ते खूंटे में बंधा घोड़ा भी आकर्षक दिख्ता है(rahim darshan par adharti chinttan lekh-saste khoonte mein bandha ghoda bhi akarshak lagta hai)



      उस दिन एक टीवी चैनल पर देश की हालातों पर एक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया जिसमें कृषि पर 20 तथा अन्य कार्यों में 19 प्रतिशत श्रमिकों की निर्भरता का जिक्र इस तरह किया जा रहा था जैसे कि श्रम का कार्य करना  समाज के लिये अभिशाप हैं। हमने देखा है कि पाश्चात्य सभ्यता तथा शिक्षा में रचा बसा बौद्धिक समूह मजदूरों और श्रमिकों के हित की बात इस तरह करता है जैसे कि वह गये गुजरे लोग हों। हमारे देश के कुछ बुद्धिमान लोग समाज में श्रम आधारित लोगों के प्रति इस तरह चर्चा करते हैं गोया कि वह भिखारी हों जिनको कहीं से बिना श्रम किये  धन की आवश्यकता हो। सच बात तो यह है कि श्रमिक वर्ग के सदस्य ऐसे बौद्धिक लोगों से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं जो अपनी देह के खून से पसीना बहाकर अन्य मनुष्यों का जीवन सहज बनाते हैं।  हम जैसे ज्ञान तथा योग साधक तो यह मानते हैं कि हर व्यक्ति को अपना जीवन श्रमशील बनाना चाहिये तो जिनके पास अधिक धन हैं वह अपने पास आने वालों श्रमिकों को न केवल पर्याप्त धन दें वरन् उनसे सम्मानजनक व्यवहार भी करें।

कविवर रहीम कहते हैं कि
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कविवर सों सोहिं बड़े कहि रहीम यह लेख।
सहसत को हथ बांधियत, लै दमरी की मेख।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-इस संसार में छोटा हो या बड़ा आदमी सभी समान हैं यह बात मन में हमेशा रखना चाहिये। बाज़ार में घोड़े को  सस्ते खूंटे में बांधकर बेचने के लिये प्रस्तुत किया जाता है पर फिर भी वह सभी को  आकर्षित करता है।

      ऐसी कथित बहसों में अनेक विद्वान गरीबों और आदिवासियों में अशिक्षा व्याप्त होने की बात करते हैं वह गलत है। गरीब और आदिवासी अगर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का अनुकरण नहीं करते तो इसका यह आशय कदापि नही है कि वह अशिक्षित है।  इधर जिस तरह हमने यह भी देखा है कि जिसने वर्तमान शिक्षा पद्धति की संगत की वह फिर परिश्रम का कार्य करना हेय समझने लगता है। सरकारी या निजी क्षेत्र में इतनी नौकरियां होती नहीं है इसलिये अनेक शिक्षित बेरोजगार घूम रहे हैं। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण है कि दो भाई या मित्रों के बीच शिक्षित तो बेकार घूम रहा है और कथित रूप से अशिक्षित या अल्पशिक्षित मेहनत से व्यवसाय कर ज्यादा कमा रहा है।  अशिक्षित से अधिक शिक्षित बेरोजगारों की संख्या अधिक है। जिन शिक्षितों के पास रोजगार नहीं है वह परिश्रम करने को तैयार नहीं है और सफेदपोश नौकरियां उनको मिलती नहीं है। इधर हम यह भी देख रहे हैं कि अपराध में लिप्त संख्या  अब अशिक्षितों के बनिस्पत शिक्षितों की अधिक पाई जा रही है।  इसका कारण यह है कि श्रम कार्य को हेय मानने की प्रवृत्ति बढ़ी है। वातानुकूलित कमरों में सांस लेने और कारों में चलने वाले जब देश की हालातों पर चर्चा करते हैं तो गंभीर की बजाय हास्य का भाव आता है।  इनमें से तो कई ऐसे है जिनके शरीर में से बरसों से पसीने की बूंद भी नहीं टपकी होगी।
      कहने का अभिप्राय यह है कि श्रम करना बुरा नहीं है और न ही कोई श्रमिक छोटा होता है। अगर सच बात कहें तो श्रमिक के धनिक  पर्याप्त धन दे तो वह अधिक अच्छे ढंग से काम करता है और उसे सम्मान दें तो उसका मनोबल इतना ऊंचा हो जाता है कि वह अपने काम को पूजा की तरह करता है। हम समाज में जो धनी और श्रमिक के बीच द्वंद्व देख रहे हैं वह केवल दृष्टिकोण की भिन्नता के कारण है और उसे समझदारी से कम किया जा सकता है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Sunday, March 9, 2014

प्यासे के हमदर्द-हिन्दी व्यंग्य कविता(pyase ke hamdard-hindi vyangya kavita)



जिनके महल रौशन है वह क्या अंधेरे घरों का दर्द जानेंगे,
रोटियों को ढेर जिनके सामने है वह भूख का क्या दर्द मानेंगे।
कांपते है जिनके हाथ व्यवस्था में बदलाव के नाम से
वह क्रांति का दावा बेबस लोगों के सामने करते हैं,
घूमते हैं कार में रिक्शा चालकों की चिंता का दंभ भरते हैं,
आदर्शवादी बाते कहना आसान है अमल में लाना जरूरी नहीं,
पर्दे पर चमक जाओ बयानों पर चलने की फिर मजबूरी नहंी,
पानी की प्यास पर देते हैं बहुत सारे बयान
घर में पीने के लिये उनके यहां समंदर भरे हैं,
प्यासों के दर्द पर जताते सहानुभूति वही
खुद प्यासे मरने के भय से जो डरे हैं,
कहें दीपक बापू नहीं मांगना रोटी और पानी
कभी भलाई के धंधेबाज दलालों से नहीं मांगना
तुम्हें भीड़ में भेड़ की तरह लगाकर अपना सीना तानेंगे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
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Monday, March 3, 2014

चाणक्य नीति दर्शन-अपने अंदर आक्रमण का प्रतिकार करने की शक्ति अर्जित करें(chankya neeti darshan-apne andar akraman ka pratikar karne ki shakti artji karen)



            आजकल हम देख रहे हैं कि समाज में लोगों के आपसी विवादों में एक दूसरे का कत्ल तक हो जाता है।  खासतौर से महिलाओं पर आक्रमण इतने अधिक हो गये हैं कि उनकी सुरक्षा को लेकर तमाम तरह की चर्चायें और बहसे होती दिखती हैं पर उनका निष्कर्ष निकलता नहीं दिखता। एक बात सीधी कहें कि पुरुष हो या स्त्री  उसकी सुरक्षा अपने ही हाथ में ही है।  हमने देखा है कि अनेक जगह युवतियों पर उनसे प्रणय निवेदन अस्वीकार होने पर अनेक निम्न प्रवृत्ति के युवक हमला कर बैठते हैं। देखा जाये तो यह हमला अचानक नहीं होता पर जब किसी का किसी लड़की ने प्रणय निवेदन अस्वीकार कर ही दिया है तो उसे फिर लड़के से सतर्क ही रहना चाहिये। सभी लड़के आक्रामक नहीं होते पर यह इश्क मुश्क का चक्कर ऐसा है कि किसी पर यकीन करना भी कठिन है।  यही स्थिति सभ्य युवकों की भी है। आचार, विचार तथा व्यवहार में असंतुष्ट होने पर उनके लिये मित्रों से ही खतरा बढ़ जाता है।
            जब यह अनुमान हो जाये कि कोई मनुष्य हमारे लिये खलपात्र बन सकता है तो उसका उपचार यह है कि पहले ही उसे दंडित करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दें अथवा राह में सतर्क होकर चलें कि वह कभी भी हमला कर सकता है।

चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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खलानां कण्टकानां द्विविधैव प्रतिक्रिया।
उपानंमुखभङ्गो  वा दूरतो या विसर्जनम्।।
            हिन्दी में भावार्थ-दृष्ट तथा कांटों से निपटने की दो ही क्रियायें है एक तो  उनके मुख पर आक्रमण कर उसे कुचल दें अथवा उनसे दूर होकर निकलें।

            वर्तमान समय में लोगों के अंदर सहिष्णुता का भाव कम हो गया है।  संवेदनशीलता शून्य के स्तर पर पहुंच गयी है।  ऐसे में दिल से नहीं दिमाग से काम लेते हुए सतर्कता बरतना ही चाहिये। कहते हैं कि जो डरता है वह क्रूरता दिखाता है। पीछे से हमला करने वाला कभ बहादुर नहीं होता। न ही अपराधिक रूप से दूसरे को सताने वाला वीर होता है। हम यह मानकर चले कि हमारे समाज में वीरता की कमी आ गयी है और कायरों से कभी दया की आशा करना ही नहीं चाहिये। पीठ पीछे असावधान अवस्था में हमला करने वालों से किसी भी धर्म भावना दिखाने की आशा करना व्यर्थ ही है।  किसी से शत्रता हो या नहीं पर सतर्कता हमेशा ही रखना चाहिये।
            देह में हमेशा ही किसी दूसरे के आक्रमण का सामना करने की शक्ति का संग्रह करना ही आवश्यक है। इसके लिये प्रतिदिन योग साधना और ध्यान करने की साथ ही ओम का जाप करें।  अध्यात्मिक रूप से संपन्न स्त्री पुरुष के विरुद्ध किसी भी षड्यंत्रकारी को सहजता से सफलता नहीं मिलती।  योग साधना करने से जो अध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है उसका अभ्यास करने पर ही अनुभव हो सकता है। हम बहसों और चर्चाओं में कथित पाश्चत्य संस्कृति समर्थक विद्वानों से समाज में विचार बदलाव का संदेश सुनते हैं। यह व्यर्थ है इसलिये जहां तक हो सके भारतीय योग पद्धति का अनुसरण कर स्वयं को शक्तिशाली बनायें। दूसरे बदलें या नहीं हमें अपने अंदर बदलाव लाकर आक्रमण का प्रतिकार करने की शक्ति अर्जित करना चाहिये।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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