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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, August 28, 2015

दिल की गरीबी-हिन्दी कविताऐं(Dil ki garibi-hindi poem's)

दुनियां की चीजों में
दिल लगाने का यही नतीजा है
कहीं कातिल बेटा कहीं दामाद
कहीं भाई कहीं भतीजा है।

कहें दीपक बापू इंसानी जज़्बात
भरोसे के काबिल नहीं रहे
इस धरती पर हर कोई
दिल की गरीबी से खीजा है।
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कत्ल कौन करेगा मालुम नहीं
यह तय है पीठ में खंजर
वही घौंपेगा जिस पर
जिंदगी का दाव लगाने तक
तुमने भरोसा किया होगा।
.............

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Saturday, August 22, 2015

स्वार्थ की सुगंध-हिन्दी कविता(swarth ki sugandh-hindi poem)


गुड़ जैसी बात करते
भले ही कभी नहीं
गुड़ लाते।

सामने चेहरा देखकर
शब्दों का चारा डालते
तत्कल कान फेरकर मुड़ जाते।

कहें दीपक बापू जिंदगी के सफर में
कुछ लोग प्रतिदिन
कुछ रोज मिलते
पलों के लिये मन खिलते
आदत है इंसानों की
जहां स्वार्थ की सुगंध है
वहीं जुड़ जाते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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मशहूर होते मजबूर-हिन्दी कविता(mashahur hote mazboor-hindi poem)


जश्न का बहाना चाहिये
मय की महफिल
सज ही जाती हैं।

गम का बहाना चाहिये
आंखों में आंसूओं की धारा
सज ही जाती है।

कहें दीपक मशहूर होकर
मजबूर भी हो जाते लोग
रोना हंसना हो जाता पराया
कीमत के हिसाब से
चेहरे पर भावनायें
सज ही जाती हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, August 11, 2015

तरक्की का वास्ता देकर-हिन्दी कविता(tarakki ka vasta dekar-hindi poem)


गरीब लोगों के भले का
दावा करते सेवक
पसीना नहीं बहाते।

खबर में बनने की
चाहत इतनी कि
उंगली पर स्याही लगाकर
जख्म में नहाते।

कहें दीपक बापू भगवान भरोसे
चल रहा यह संसार
देवताओं की कृपा से
उगता जीवन हर बार
वरना बदनीयत लोग हमेशा
भ्रम के प्रचार से
विश्वास को बेरहमी से ढहाते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, August 8, 2015

रंग पर नज़र-हिन्दी कविता(rang par nazar-hindi poem)


लोहे रबड़ कांच और
प्लास्टिक से युक्त ढांचे पर
रंग लग जाये
वहां कार खड़ी हो जाती है।

उतर जाये बेकार शब्द की
शिकार हो जाती है।

कहें दीपक बापू तस्वीरों के सामने
देखकर मन प्रसन्न हो जाता है
पीछे के खालीपन से
होते जब रुबरु
नज़र धिक्कार में खो जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Sunday, August 2, 2015

किराये पर मधुरता-हिन्दी कविता(kiraye par madhurta-hindi poem)


किराये के संगीत पर
कौवे की कांव कांव भी
मधुर हो जाती है।

किराये के मुखौटे से
सपाट चेहरे की पहचान भी
मधुर हो जाती है।

कहें दीपक बापू पर्दे के दृश्य से
कभी दिल न लगाना
किराये के अभिनय से
ख्वाबों की सोच जिंदगी के सच से
कुछ पल के लिये ही
मधुर हो पाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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