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Thursday, August 12, 2010

एकता की मेलागिरी-हिन्दी हास्य कविता (ekta ki melagiri-hindi hasya kavita)

च्रेले ने कहा गुरु से
‘आप समाज में एकता की बात
हमेशा लोगों के सामने चलाते हो,
उनसे तालियां बजवाते हो,
पर एक बात समझ में नहीं आयी
आप ही जाति, भाषा और धर्म का नाम लेकर
लोगों के आपस में बंटे होने की तरफ
करते हैं इशारा,
जबकि क्या आम इंसान आपस में लड़ेगा
इन छोटी बातों को लेकर
वह तो काम से फुर्सत नहीं पाता बिचारा,
कभी कभी अपने समाज की
तरक्की का प्रश्न भी उठाते हो,
फिर भी एकता के मसीहा नाम से जाने जाते हो।’
सुनकर गुरुजी बोले,
कमबख्त!
इतने साल से करता रहा है चेलागिरी,
सीख नहीं पाया यह एकता की मेलागिरी,
आम इंसान को कहां फुरसत है
जाति, भाषा और धर्म के नाम लड़ने की
पर हमें जरूरत है उसके दिमाग में
एकता का भूत जड़ने की,
हर समाज में जाकर उसके उत्थान की
बात हम यूं ही करते हैं,
बंटे रहें लोग इसी तरह
अपने समाज की चिंता में वही मरते हैं,
एकता लाने के लिये
उनमें फूट डालना जरूरी है,
अपना घर भरने के लिये
आम इंसान की जेब की लूट जरूरी है,
नहीं दिखायेंगे टुकडे़ टुकड़े समाज के,
बज जायेंगी बाजे अपने राज के,
एकता का मसीहा
जंग के बिना संभव नहीं,
यह बात तुम क्यों नहीं समझ पाते हो।।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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