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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, May 25, 2017

वादों के सौदागरों का याद से नाता नहीं-दीपकबापूवाणी (vadon ke saudagar ko yaad se nata nahin-DeepakBapuWani)

घासफूस के घर में भी इंसान रहते हैं, देह के पसीने में उनके बयान बहते हैं।
दीपकबापूशिकायतें अब नहीं करते, माननीयों की हर ठगी खुलेआम सहते हैं।।
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वादे निभाने के लिये नहीं होते, करने वाले कभी शब्दों का बोझ नहीं ढोते।
दीपकबापूचतुराई से बेच रहे सपने, जागने वाले उनके ग्राहक नहीं होते।।
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जीवन के सफर में मार्ग भी बदल जाते हैं, कहीं हम कहीं साथी बदल जाते हैं।
दीपकबापूकिसका इंतजार करें किसे करायेंअपने इरादे भी बदल जाते हैं।।
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सबसे ज्यादा झूठे अपने सिर पर ताज पहने, सज्जन लगे बदनीयती का राज सहने।
दीपकबापूलाचार से ज्यादा हुए आलसी, मक्कार शान से विजयमाला आज पहने।।
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बेकार की बातों का जारी  है सिलसिला, तारीफ के विचार पर है भारी गिला।
दीपकबापूढूंढते जहान में मीठे बोल, हर शब्द अर्थ मिठास से खाली मिला।।
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खरीदने से मिले खुशी सभी जाने, बांटने से बढ़ती जाती सभी माने।
दीपकबापूसोचते कोई खुश दिखे, चिंता में सभी खड़े मुक्का ताने।।
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अपने सपने सभी ने सजा लिये, जीते है सभी पराये दर्द का मजा लिये।
दीपकबापूमृत संवेदना के साथी, कौन सुने दर्द सभी ने मुंह बजा लिये।
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वादों के सौदागरों का याद से नाता नहीं, भूलने से कुछ उनका जाता नहीं।
दीपकबापूबातों से पकाते लोगों का दिमाग, भरती जेब मगर कुछ जाता नहीं।।
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भूख जिसे लगी उसने रोटी पाई, हर गुंजरते पहर खाली पेट लेता अंगड़ाई।
दीपकबापूसब पाया दिल का चैन छोड़, हर ऊंचे पर्वत से लगी मिली खाई।।
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Wednesday, May 3, 2017

सौदे की वफा एक साल-हिन्दी व्यंग्य कविता (Saude ki Vafa ek saal-Hindisatire poem)

सौदे की वफा एक साल-हिन्दी व्यंग्य कविता
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सामानों से शहर सजे हैं
खरीदो तो दिल भी
मिल जायेगा।

इंसान की नीयत भी
अब महंगी नहीं है
पैसा वफा कमायेगा।

कहें दीपकबापू बाज़ार में
घर के भी सपने मिल जाते
ग्राहक बनकर निकलो
हर जगह खड़ा सौदागर
हर सौदे की वफा
एक साल जरूर बतायेगा।
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सिंहासन का नशा-हिन्दी व्यंग्य कविता
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आकाश में उड़ने वाले पक्षी
कभी इश्क में
तारे तोड़कर लाने का
वादा नहीं करते हैं।

जाम पीने वाले
कतरा कतरा भरते ग्लास में
ज्यादा नहीं भरते हैं।

कहें दीपकबापू सिंहासन पर
बैठने का नशा ही अलग
जिन्हें मिल जाता 
फिर कभी उतरने का 
इरादा नहीं करते हैं।
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नीयत के सियार
दिखने मे गधे हैं।
‘दीपकबापू’ न पालें भ्रम
स्वार्थ से सभी सधे हैं।
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