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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, August 24, 2014

इंसान और मोर-हिन्दी कविता(insan aur mor-hindi kavita)




नाचते नाचते मोर
थकने के बाद अपनै मैले पांव
देखकर रोता है।

इंसान भी चढ़ जाता
धन पद और प्रतिष्ठा के शिखर पर
फिर अकेले में बोर होता है।

बेजुबानों की मौत भी होती लापता
इंसान को लगता है छोटा घाव
तब बहुत शोर होता है।

कहें दीपक बापू कुदरत का खेल
बहुत अजीब है,
जिनकी जेब भरी
बेदिल होकर भी कहलाते दिलवाले
पसीने में दिल लगाता इंसान
कहलाता गरीब है,
कोई नहीं लगता हिसाब
कोई इंसान जिंदादिल होकर
कितना समय बिताता
कितनी उम्र मुफ्त में खोता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Sunday, August 17, 2014

हृदय के भाव-हिन्दी कविता(hridya ke bhav-hindi poem)



भीड़ में भक्ति भाव
जब दिखाया जाता है
लगता है मानो
पंक्ति में खड़े होकर
राशन की लाईन में
फल के लिये
नाम लिखाया जाता है।

कहें दीपक बापू हृदय के भाव
बाहर कभी झूंड में नहीं आते,
शोर के बीच सर्वशक्तिमान का रूप
देखते हुए नरमुंड आपस में टकराते,
आसमान की तरफ
ताकने को बाध्य करते
जमाने को राह दिखाने वाले
किसी को अंतर्मन में
दर्शन करना सिखाया नहीं जाता
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
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Sunday, August 10, 2014

बाज़ार में खुशी की तलाश-हिन्दी कविता(bazar meih khushi ki talash-hindi poem)





कई ठगों ने बेच दी

लोगों को  सोने का अंडा देने वाली मुर्गी

मगर धरती पर कभी नज़र नहीं आयी।



बहुत से आशिकों ने

माशुकाओं से किया वादा

आसमान से तारे तोड़ लाने का

मगर जमीन पर

कभी चमक नज़र नहीं आयी।



इंसानों की पीढ़ियां गुजर गयी

हाथ उठाये आकाश की तरफ

दरियादिली बरसने की आस में

मगर किसी फरिश्ते की छवि

इस धरती पर नज़र नहीं आयी।



कहें दीपक बापू कुदरत का कमाल है

हर शय मौजूद है इंसानी शरीर में

फिर भी बेखबर हैं सभी

ढूंढने जाते खुशी बाज़ार में पैसा लेकर

खर्च कर भी तसल्ली

किसी में नज़र नहीं आयी।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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Friday, August 1, 2014

गुलामों ने पहन लिया उधार का ताज-हिन्दी कविताऐं(gulamon ne pahan liya udhar ka taaz-hindi peom's)



लिखे गये हिन्दी में
इतिहास में ऐसे मशहूर किस्से भी हो गये।
कहें दीपक बापू गुलामी का भूत
जिनके सिर पर  चढ़ा
आधुनिक दिखने की चाह में
अधकचड़े लोग अंग्रेजी के हिस्से हो गये।
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गुलामों ने पहन लिया उधार का ताज,
आकाओं की भाषा का चला रहे राज।
कहें दीपक बापू  अंधेरे में तीर चलाते,
देशी इतिहास में विदेशी पीर ढलाते,
गांव से चलकर वह शहर आये
फिर भी नहीं जाने मातृभूमि का सच
कर रहे हैं परदेसी गुलामी पर नाज।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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