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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, June 28, 2015

दंड शक्ति रखते हुए भी योगी उद्दंड नहीं होते(dand shakti rakhte hue bhi yogi uddand nahin hote)

                              एक पूर्व क्रिकेट खेल व्यापारी का किस्सा इन दिनों अंतर्जाल और प्रचार माध्यमों में छाया हुआ है। क्रिकेट के व्यापार में अनेक आरोपों का बोझ उठाये वह लंदन में बैठकर भारत में दूसरों पर आक्षेप कर अपने नायकत्व की छवि बना रहा है। भारतीय राजनीति के अनेक शिखर व्यक्तित्व उसके निशाने पर हैं।  हमारी इस तरह के राजसी विषय में इतनी रुचि नहीं है कि इस पर अधिक लिखने का प्रयास करें पर जिस तरह इस आड़ में योग विषय का मजाक बनाया जा रहा है वह थोड़ा आपत्तिजनक लग रहा है। उसे लेकर भारतीय शासन क्या कदम उठायेगा इस पर टिप्पणी करना हमारा काम नही है पर इस प्रसंग से उत्साहित कुछ लोग बराबर यह कह रहे हैं कि समाज को  योग साधना की प्रेरणा देने की बजाय शिखर पुरुषों को राजसी विषयों पर अपना हाथ दिखाना चाहिये।
                              अभी 21 जून को योग दिवस के अवसर भारत के अनेक राजसी शिखर पुरुषों ने सार्वजनिक  स्थानों पर साधना करते हुए समाज में चेतना लाने का प्रयास किया।  इससे समाज में चेतना कितनी फैली यह अलग से चर्चा का विषय है पर एक बात तय है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग विषय का विस्तार होगा।  योग न करने वाले कभी इसके अभ्यास करने वालों को समझ नहीं पाते तो विरोधियों का कहना ही क्या? योग साधकों को किसी विषय पर उत्तेजित नहीं करना चाहिये। जिन्होंने इसका बरसों अभ्यास किया हो उन्हें हम जैसे कम अवधि के साधक भी चुनौती नहीं देते। जब कोई दूसरा उनको देता है तो उस पर हंसी ही आती है। सच बात तो यह है कि अधिक अभ्यास करने वाले योगियों के पास दंड देने की स्वाभाविक रूप से आ जाती है पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह उद्दंडता पर उतर कर दूसरों को संतुष्ट करने का प्रयास करें।  दूसरी बात यह कि योगी का मौन हमेंशा चिंत्तन और मनन की क्रिया के लिये होता है इसलिये किसी खास विषय पर उनसे तत्काल निष्कर्ष बताने की आशा नहीं करते।  जब वह अपने समय पर बताते हैं तो दूसरे को हतप्रभ कर देते हैं। हम स्पष्ट कर दें कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर योग का विषय अनावश्यक रूप से नहीं घसीटा जाता तो हम कभी यह लेख नहीं लिखते। अपने बारह अभ्यास से योग विशारद लोगों की छवि हमारे हृदय में है उसी के कारण यह लिखने के लिये प्रेरित भी हुए। किसी के प्रति भ्रम या दृढ़ विश्वास व्यक्त करना भी हमारा लक्ष्य नहीं है क्योंकि अंततः यह धरती गोल है-यहां समय ही सबसे बलवान है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Wednesday, June 24, 2015

नसीब का खेल-हिन्दी कविता(naseeb ka khel-hindi poem)

जिनकी नस में बसा है लोभ
समाज सेवा के लिये
लेने दान निकले हैं।

सहिष्णुता का अभाव
क्रोध के साथी
शहर में शांति के लिये
मुक्का तान निकले हैं।

कहें दीपक बापू आकाश से
कोई चला रहा है यह संसार,
धरती पर तो कातिलों ने 
सजा लिया खुला दरबार,
रास्तों पर हमले और हादसे
नसीब का हिस्सा है
आम इंसान घर से
यही मान निकले हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Thursday, June 18, 2015

शीशे के घर में रहने वाले-हिन्दी कविता(sheehse ke ghar mein rahane wale-hindi poem)


इंसान कभी देवता नहीं होते
जरुरत हो तो
बड़ा कसूर भी कर जाते हैं।

चालाक अंदाज हो तो
लोग माफी देने के लिये
मजबूर भी हो जाते हैं।

कहें दीपक बापू शीशे के घर में
रहने वाले पत्थर फैंकने लगे हैं
रास्ते चलते लोगों पर
पहरेदारों की फौज देखकर
सभी उनसे दूर भी हो जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Saturday, June 13, 2015

कूड़े पर हास्य कविता(KUDE PAR HASYA KAVITA-a COMEDY POEM)


कूड़े का ढेर कहें दीपक बापू से
‘‘फ्लाप कवि होकर तू मुझे
ऐसे क्या घूर रहा है
इक दिन ऐसा आयेगा
जब मेरे इर्दगिर्द मेला लग जायेगा
तब मैं घूरूंगा ऐसा तोहे।’’

सुनकर मुस्कराये दीपक बापू
पता है मोहे बीस साल में
घूरे के दिन भी फिरते हैं,
सोने के मुकुट भी कई बार
लोहे की तलवारों से घिरते हैं,
तेरे नाम पर ढेर सारा पैसा
इधर से उधर हो जाता है,
पता नहीं किधर जाता है,
इक दिन तू उठ जायेगा,
फिर लौटकर यहीं आयेगा,
हम देख रहे तेरे
कभी राजसी कभी कागजी ठाठ,
कई बार आते नये कागज
कभी पाता पुराना टाट,
नफरत से नहीं देख रहे
हास्य कविता समर्पित करते तोहे।’’
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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Monday, June 8, 2015

योग करो तो जानो-21 जून विश्व योग दिवस पर विशेष हिन्दी लेख(yog karo to jano-A Hindu Hindi article on world yog diwas or yoag day,A New post vishwa yoga world day)


     भारतीय योग संस्थान देश में योग साधना के निशुल्क शिविर लगाता है। इसमें निष्काम भाव से शिक्षक नये लोगों को योगसाधना का अभ्यास बड़े मनोयोग से सिखाते हैं। यह लेखक स्वयं इस संस्थान के शिविर में अभ्यास करता रहा है।  हमारा मानना है कि योग साधना की पूरी प्रक्रिया जो भारतीय योग संस्थान के शिविरों में अपनाई जाती है वह अत्यंत वैज्ञानिक है।  समय समय पर अनेक योग विशारद भी अपना कीमती समय व्यय कर योग साधकों का मार्गदर्शन करते हैं। एक बात तय रही कि भारतीय योग संस्थान से जुड़ा कोई भी साधक यह स्वीकार नहीं कर सकता कि ओम शब्द और सूर्यनमस्कार के बिना कम से कम आज के समय में योग पूर्णता प्राप्त कर सकता है।  सूर्यनमस्कार कोई कठिन आसन है यह भी सहजता से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
21 जून को विश्व में योग दिवस मनाया जा रहा है पर देखा यह जा रहा है कि भारत के प्रचार माध्यम अपनी कथित निष्पक्षता दिखाने के लिये योग विरोधियों को सामने ला रहे हैं। प्रश्न यह है कि इन प्रचार माध्यमों के पास वह कौनसा पैमाना है कि वह किसी एक व्यक्ति को अपने समुदाय का प्रतिनिधि मान लेते हैं।  हमने यह देखा है कि अनेक ऐसे लोग भी इन शिविरों में आते हैं जिन्हें भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा से प्रथक कर देखा जाता है। वह न केवल ओम का जाप करते हैं वरन् सूर्यनमस्कार के साथ ही गायत्री मंत्र, शांति पाठ, महामृत्यंजय पाठ तथा प्रार्थना का गान करते हैं।  जब हम उन्हीं के समुदाय का कोई आदमी  टीवी उनके प्रतिनिधि के रूप में योग साधना का विरोध करते देखते  है तब हमारे मन में यह सवाल आता है कि उसे समूचे समुदाय का स्वर कैसे मान लिया जाये? क्या भारतीय प्रचार माध्यम यह मानते हैं कि सामुदायिक नाम से पहचान तथा किसी समाज विशेष से जुड़ी संस्था से जुड़े होने पर कोई भी अपने लोगों का अघोषित प्रतिनिधि हो जाता है?
   यह सोच प्रचार माध्यमों में कार्यरत लोगों की जड़ प्रकृत्ति की परिचायक है। ऐसे लोग योग पर अधिकार के साथ बोलते जरूर हैं पर उनका स्वयं का  अभ्यास नहीं होता वरन् उनकी योग्यता यह होती है कि येनकेन प्रकरेण वह पर्दे के सामने आ ही जाते हैं। ऐसे लोगों को हमारी सलाह है कि योग करो तो जानो। इस विषय पर बोलने या लिखने का मानस मन पर गहरा प्रभाव तब तक  नहीं होता जब तक वक्ता या लेखक स्वयं योग के समंदर में गहराई में जाकर मोती न चुनकर आया हो।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

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Wednesday, June 3, 2015

सौदगरों के जलवे-हिन्दी कविता(saudagaron ke jalwe-hindi poem)

मजबूर लोगों की
संख्या इतनी कि
सौदागर अपना सहयोग बेच रहा है।

रोटी से ज्यादा भूखे
लोग है मन के रूखे
बहलाने के नाम पर
सौदागर भोग बेच रहा है।

पैसे के पीछे पागल ज़माना
अक्ल नहीं उसे कमाना
ताकत के नाम पर
सौदागर रोग बेच रहा है।

कहें दीपक बापू भक्ति से
आसक्ति जीत रही है
बदनाम होता है वह सौदागर
जो योग मुफ्त बेच रहा है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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