समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, January 27, 2014

अपना चंदन रहें खुद घिसते-हिन्दी व्यंग्य कविता(apna chandan rahen ghiste-hindi vyangya kavita)



लगता है ख्वाब में आयेंगे आसमान  से फरिश्ते,
निभायेंगे बिना मिन्नत किये हमसे अपने रिश्ते।
कहें दीपक बापू
हर पल जंग लड़ना ही  जिंदगी की सच्चाई है,
भले ही पलायन करने की कसम हमने खाई है,
बहुत आशिक कर चुके चांद तारे जमीन पर लाने के इरादे,
आकाश मुस्करा रहा है सदियों से सुनकर झूठे वादे,
सपने देखना अब बंद कर दिया लोगों ने,
खरीद रहे दूसरे की सोच घेरा दिमागी रोगों ने,
सभी के घर भरे दुनियां भर के सामानों से,
फिर भी ख्वाहिशों के झुंड के लिये फिर रहे अरमानों से,
दिल बहलाने के लिये भटकते लोगों का समझाना कठिन है
 अक्लमंदों के लिये ठीक यही कि अपना चंदन रहें खुद घिसते।
----------------


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Tuesday, January 21, 2014

कागजी नाव-हिन्दी व्यंग्य कविता (kagzi naav-hindi vyangya kavita)




वह ठहरे हल्के इंसान
चेहरे पर रोज नया मुखौटा लगाकर आते हैं,
गंभीरता का करते हैं नाटक
जल्दी ही जोकर हो जाते हैं।
कहें दीपक बापू
वादों पर कभी वह खरे उतर सकते नहीं,
अपने भरोसे पर यकीन खुद करते नहीं,
यह प्रचार का खेल हैं
जहां उनकी काली नीयत भी सुंदर नज़र आती है,
फरेबी अदायें महंगी बिक जाती हैं,
सौदागर बेच रहे बाज़ार में कागजी ख्वाब,
कारिंदों करें कारिस्तानी वह दिखायें रुआब,
सियायत हो या ज़माने का भला
कामयाब खिलाड़ी वही नज़र आते हैं,
वादों से वफादारी निभाने के बजाय
कागजी नाव जो चला पाते हैं।
----------------

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, January 11, 2014

रहीम दर्शन-परोपकार की भावना हर मनुष्य में होती है(rahim darshan-paropkar ki bhawana hay manushya mein hotee hai)



            आधुनिक लोकतांत्रिक युग में प्रत्येक देश में जनप्रतिनिधि शासनतंत्र चलाते हैं।  पहले राजतंत्र में राजा लोग बिना किसी शोरशराबे के जनहित करते थे पर अब लोकतांत्रिक प्रणाली में इन जनप्रतिनिधियों को एक अवधि के पास जनता के सामने जाना होता है इसलिये वह अपने हर प्रयास को जनकल्याण से जोड़कर अपना प्रचार करते हैं। दूसरी बात यह है कि राज्य व्यवस्थाओं में अनुप्पादक कार्यों पर अधिक व्यय किया जाने लगा है। पूरे विश्व में कंपनी नामक दैत्य को अर्थव्यवस्था सौंप दी गयी है जिसमें समाज के प्रति दया या ममता का भाव होना ही संभव नहीं है। इस कंपनी दैत्य की दिलचस्पी केवल अपने उत्पादन तथा आय के बढ़ते आंकड़ों में होती है। छोटे, मध्यम तथा उच्च वर्ग के निजी व्यवसायों को एकदम समाप्त किया जा रहा है। देखा जाये तो निजी व्यवसाय वर्ग में लगे लोग समाज और आय में सामजंस्य बनाकर चलते रहे हैं जिसे इस कपंनी दैत्य समाप्त करता जा रहा है। राज्य व्यवस्थाओं में कंपनियों के स्वामियों का हस्तक्षेप अब प्रत्यक्ष दिखने लगा है। इस उहापोह की स्थिति में  समाज अस्थिर हुआ है जिससे लोग अब स्वयं के संघर्ष में लिप्त होते जा रहे हैं।  इधर राज्य व्यवस्था में लोगों की दिलचस्पी बनाये रखने के लिये समाज कल्याण का विषय इस तरह जोड़ा गया है जिससे लोगों को अपने पक्ष में रखा जा सके। इस तरह का प्रचार निरंतर होता है कि लोगों का कल्याण राज्य ही कर सकता है और जो राज्यकर्म से परे है वह किसी का सहायक नहीं हो सकता।

कविवर रहीम कहते हैं कि
--------------------
हित रहीम इतनै करैं, जाकी जितौ बिसात।
नहिं यह रहै न वह रहै, रहै कहन की बात।।
            सामान्य हिन्दी में भावार्थ-परोपकार का भाव हर मनुष्य में होता है। जिसका जितना सामर्थ्य होता वह दूसरे की सहायता किये बिना नहीं रहता। यह अलग बात है कि किसी की चर्चा होती है किसी की नहीं।

            यह मानना गलत है कि समाज में आम लोगों की दिलचस्पी नहीं होती। सच बात तो यह है कि हर इंसान में परोपकार की भावना होती है।  इस संसार में लोग राज्य व्यवस्थाओं की वजह से नहीं वरन् एक दूसरे की सद्भावना की वजह से जिंदा रहते हैं। कहते हैं कि भगवान भूखा उठाता है पर सुलाता नहीं है, यह मानवीय संवदेनाओं को संकेत करता है। हमारे देश में तो भले ही समाज जाति, धर्म और भाषाई आधार पर बंटा है पर जहां किसी व्यक्ति पर संकट हो वहां लोग मदद करते समय इस बात की परवाह नहीं करते कि पीड़ित व्यक्ति आखिर किस समुदाय का है? सभी लोग बड़े बड़े दान नहीं करते पर जो छोटे दान करते हैं वह प्रचार करने नहीं आते। आजकल कंपनी दैत्य लोगों की सहायता के नाम पर बड़े बड़े गीत, संगीत और खेल के तमाशे करते हैं।  खासतौर से गरीब बच्चों के नाम पर बड़े अभिनेताओं, गायकों और खिलाड़ियों का जमावड़ा किया जाता है। इस तरह समाज में यह प्रचार किया जाता है कि समाज कल्याण पैसे और पद की शक्ति के सहारे ही किया जा सकता है। जबकि हमारा मानना है कि इस तरह से सामान्यजनों को बहलाया जाता है ताकि अव्यवस्था, गरीबी, तथा तनाव से ग्रस्त लोग बागी नहीं हो जाये। एक बात याद रखें जिनके पास पद, पैसे और प्रतिष्ठा का ढेर लगा है वह व्यवस्था में परिवर्तन से घबड़ाते है।  इसलिये समाज में फैले असंतोष से भयभीत होेने के कारण वह कुछ व्यय इस तरह करते हैं जिससे बगावत थमी रहे।  सच बात यह है कि आम मनुष्य दूसरे का स्वभाविक रूप से सहायक होता है।  जिस तरह कोई आदमी ऐसा नहीं मिलता जिसने कभी जीवन में कोई अपराध नहीं किया हो उसी तरह ऐसा भी नहीं मिल सकता जिसने कभी किसी यथासंभव मदद न की हो।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर