समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, May 1, 2009

एकता की बात और इज्जत की लड़ाई-हास्य व्यंग्य

वह कुटिल साधु अपने लिये स्थाई ठिकाना ढूंढने निकला था पर उसे कुछ समझ में नहीं आया कि कहां रुकें? वह चाहता था कि वह ऐसी जगह रुके जहां चारों तरफ पेड़ पौद्ये हों? जहां के निवासी मेहनती और धनी हों। पास में कोई नदी बहती हो। वह एक अपराधी था और राज्य के दबाव के चलते वह अपने धंधे छोड़कर दूसरा धंधा करना चाहता था। इसलिये उसने साधु का वेश बना लिया। वह चलता थक गया पर चलता जा रहा। आखिर वह थक कर एक पेड़ के नीच आंखें बंद कर बैठ गया। कुछ देर बार उसने आंखे खोली तो देखा सामने चार लोग जमीन पर बैठकर उसे देख रहे हैं। फिर उसने अपने चारों तरफ देखा तो दंग रह गया। वैसी ही जगह वहां थी जैसी वह चाहता था। उसने चारों तरफ देखा। पक्के मकान ही दिखाई दिये। खेतों में फसल लहरा रही थी तो पेड़ के झुंड उनके किनारे खडे थे दूर बहती नहर भी उसने देखी।
फिर उसने उन चारों लोगों की तरफ देखा और कहा-‘बच्चों तुम कौन हो? और यहां कैसे आये हो?’
उनमें एक न कहा-‘हम चारों आसपास के चार गावों के हैं। यहां दोपहर में गपशप करने के लिये मिलते हैं। आज आप यहां विराजे हैं। आपको ध्यान में देखकर हम चुपचाप बैठ गये कि आप ध्यान से निवृत हों तो कुछ आपसे ज्ञान की बात सुनें ताकि हमारे मन का संताप दूर हो जाये।’
साधु ने पूछा-‘तुम्हारे अंदर कैसा मानसिक संताप है?’
दूसरे ने कहा-‘बाबा, हमारे गांवों में आपसी दुश्मनी है। लोग हमारी मित्रता को देखकर ताने कसते हैं। कहते हैं कि तुम अपने गांव के वफादार नहीं हो और दुश्मन गांव वाले से दोस्ती करते हो। आप बताओ यहां एकता कैसे करवायें?
साधु ने कहा-‘उनमें लड़ाई बढ़ाकर फायदा उठाओ। एकता से तुम्हें क्या मिलने वाला है?’
चारों एक दूसरे का मूंह देखने लगे। तीसरा बोला-‘बाबा, दरअसल हम यही तो सोचते हैं कि एकता से हमें फायदा होगा कोई व्यापार करेंगे तो चारों गावों के ग्राहक मिलेंगे। अभी तो यह हाल है कि बीच में कोई दुकान खोलो तो दुश्मन गांव का आदमी रात को जलाकर भाग जाता है। हमारे गांव का आदमी इसलिये सामान नहीं खरीदता कि हमारी दुश्मन गांव वाले से दोस्ती है दूसरे गांव वाले द्वारा खरीदने का सवाल ही नहीं है। इसलिये बेकार घूम रहे हैं। वैसे अगर उनकी दुश्मनी से फायदा उठाने की कोई योजना हो तो हम उसी भी चलने को तैयार हैं एकता की बात भी तो हम अपने फायदे के लिये सोच रहे हैं।’
उस कुटिल साधु ने कहा-‘ठीक है! तुम अपने गांवों में जाओ और इस बात का हमारे बारे में प्रचार करो कि खूब चढ़ावा हमारे पास आ रहा है। इस पेड़ के नीचे आज ही हम एक कच्ची कुटिया बना लेते हैं। तुम जाकर दुश्मन गावों के लोगों द्वारा हम पर अधिक चढ़ावे की बात करो। उनमें होड़ लग जायेगी। अपने गांव की इज्जत दाव पर लगने के भय से लोग खूब चढ़ावा लायेंगे। गांव में जाकर बाहर के गांव के मुकाबले और गांव में जाति, भाषा और धर्म के मुकाबले इज्जत की बात करना। बस देखो! कैसे काम बनता है। इसमें तुम्हारा कमीशन भी बन जायेगा। हम यहां एक मूर्ति लगा लेते हैं तुम यहां पर उस प्रसाद तथा दूसरा सामान चढ़ाने का सामान बेचने का काम शुरू कर देना। बस! फिर देखो धन दौलत तुम्हारे कदम चूमने लगेगी।’
चैथे ने कहा-‘पर हम वहां जाकर यह झूठ कैसे बोलें कि आपके पास चढ़ावा बहुत आ रहा हैं अभी तो आपकी कुटिया भी नहीं बनी और बनेगी तो उसमें दिखाने के लिये भारी चढ़ावा कैसे आयेगा?’
साधु ने कहा-‘हम जनता को कुटिया के बाहर दर्शन देंगे। हमारी कुटिया में प्रवेश किसी का हाल फिलहाल तो नहीं होगा। जब हम अंदर हों तो तुम यहां पहरा देना और कहना कि ‘साधु महाराज अभी अंदर साधना और ध्यान कर रहे है। जैसे हम अभी बैठे बैठे नींद ले रहे थे और तुमको लगा कि हम ध्यान लगा रहे हैं। वैसे ही भक्तों को भी यही वहम बना रहेगा कि अंदर कुटिया में भारी चढ़ावा होगा। वैसे इस बहाने अनजाने में सही तुम्हारा दुश्मन गावों में एकता लाने का सपना भी पूरा कर लोगे, पर हां एकता की बात करना पर चारों गांवों एकता होने बिल्कुल नहीं देना। एकता उतनी होने देना तुम्हारे धंधे के लिये खतरा न हो और इज्जत की लड़ाई को कभी बंद नहीं होने देना।’

वह चारों चले गये। अगले दिन सुबह चारों गावों से भीड़ उस कुटिल साधु के पास तमाम तरह का सामान लिये चली आ रही थी और वह मंद मंद मुस्करा रहा था।
.......................................................
यह हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग
‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’
पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर