ज़माने से अलग कब तक
अपनी बस्ती मनाओगे,
मुश्किल यह है कि
सभी इंसानों के जीने का एक ही सलीका है,
तन्हाईयों में हमेशा रहना कठिन है
दर्द और खुशियां
भीड़ में आने का यही तरीका है,
अकेले में कब तक मस्ती मनाओगे।
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समझौतों से जिंदगी में
ऊब आ जाती है,
बगावत करने पर
जिन्दगी तन्हाई के खतरे में घिर जाती है।
हालत बदलने का ख्याल अच्छा है
पर इंसानी फितरत बदलने में
बहुत मुश्किल आती है।
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समय बदलता है ज़माने को
पर कुछ इंसान उसके लिये
जद्दोजेहद कर रहे हैं,
फुरसत में समय बिताने के लिये
यह अच्छा काम है,
खाली वक्त में खाली जगह पर
बदलाव के नारे भर रहे हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
2 comments:
sooooooo niceeeeee thinking...
so nice thank you.......
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