ईमानदारी की बात करते हुए
अब डर लगने लगा है,
अपना चाल चलन भी
अब शक के घेरे लगता है,
सुला दिया है इसलिए सोच को
आंखें खुली हैं मगर सपना जगा है।
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आओ, कुछ किताबों में लिखे
कल्पित नायकों को
दूनियां के सच की तरह रच लें,
लोग उनको ढूंढते रहें,
हम दोस्त बनकर
उनके घर की दौलत लूटते रहें,
इस तरह पहरेदारों से बच लें।
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बेईमान और ईमानदारी के फर्क को
अब कोई इंसान नहीं जानता है,
उच्च चरित्र की बातें किताबों में
पढ़ते हैं सभी
मगर जिंदगी में हर कोई
चादर के बाहर पांव तानता है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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6 years ago
1 comment:
बहुत बढ़िया प्रस्तुति। सुन्दर रचना।
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