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Wednesday, September 21, 2011

32 रुपये और गरीबी-हिन्दी कविता (32 rupess and powerty or 32 rupaye aur garibi-hindi kavita or poem)

खबर यह थी कि
बत्तीस रुपये खर्च करने वाले लोग
गरीब नहीं माने जायेंगे,
किसी तरह की मदद नहीं पायेंगे।
तब तय किया भिखारियों की यूनियन ने
अब दानदाताओं से पांच दस रुपया मांगने की बजाय
पांच सौ और हजार रुपयें का नोट
मांगने के लिये हाथ बढ़ायेंगे,
खाना तो मिल जाता है कहीं भी
मगर दवा दारु के लिये
अब हमारा जिम्मा हमारे ही कटोरे पर है
उनको समझायेंगे।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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