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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, January 1, 2012

नया वर्ष आया यानि कैलेंडर बदल गया-हिन्दी लेख (new year meens change of calengder naya varsha ya sal ka ana yani celader ka badlana-hindi lekh aur kavita or article or poem)

              1 जनवरी 2012 सुबह से ही बरसात की बूंदों की आवाज घंटी की तरह सुनाई दे रही थी। ऐसा भी लगा कि शायद ओले गिर रहे हों। ईसवी संवत् के नये वर्ष का नया दिन इस तरह ही शंखनाद करता हुआ बता रहा था कि वह आ गया है। 31 दिसम्बर 2011 रात्रि ग्यारह बजे हम सोये तो प्रातः निद्रा खुलते ही हमारा यह अनुभव था। बिस्तर से उठने का मन इसलिये नहीं हुआ कि सर्दी लग रही थी बल्कि हम न तो उस समय योग साधना कर सकते थे न ही उद्यान में जा सकते थे जो कि हमारे लिये प्रतिदिन शुरुआत की पहली प्रक्रिया है।
             घर की बिजली भी जा चुकी थी और इस तरह धुप अंधेरे में घड़ी में समय देखना भी मुश्किल था। अलबत्ता साढ़े चार बजे का टाईम लगाकर हम जिस ट्रांजिस्टर को रखते हैं वह बज रहा था। इसका मतलब यह था कि समय उससे आगे निकल चुका है। आखिर थोड़ी उहापोह के बाद हमनें बिस्तर का त्याग किया और कमरे में ही आसन लगाकर योग साधना प्रारंभ की। वहीं कुछ सूक्ष्म व्यायाम के साथ आसन किये जिसमें देह विस्तार रूप न ले। सूक्ष्म व्यायाम, जांधशिरासन तथा सर्वांगासन करने के पश्चात् पदमासन पर बैठकर प्राणायाम किया। प्राणायाम प्रारंभ करते हुए मनस्थिति बदलने लगी। प्रतिदिन आने वाली नवीनता ने धीरे धीरे अंदर पदार्पण किया। तब नव वर्ष जैसा आभास नहंी रहा। फिर ध्यान तथा नहान के बाद अन्य नियमित अध्यात्मिक प्रक्रिया संपन्न की। अब हमारा नवीन दिन आरंभ हो चुका था मगर वर्षा ने बता दिया कि अभी हमें घर से बाहर निकलने नहीं देगी।
         कुछ देर बरसात रुकी तो हम आश्रम चले गये। वहां से कई दूसरी जगह जाने का विचार मौसम की वजह से नहीं बन सका।
       अपने वाहन पर बैठकर हम बाहर निकले तो अपने ही वाहन पर जा रहे एक मित्र ने हाथ उठाकर अभिवादन में कहा-‘‘हैप्पी न्यू ईयर’।
        हमने औपचारिकता निभाई-‘‘आपको भी बधाई’।
वह बोले-‘‘आज तो जमकर बरसात हो रही है।’’
    हमने कहा-‘‘हां, दक्षिण में थाने नाम का तूफान आया है उसका परिणाम यहां दिखाई दे रहा है। मौसम विशेषज्ञों ने बता दिया था कि इस तरह की बरसात होगी।’
       वह बोले-‘‘पर दक्षिण तो बहुत दूर है।’’
      हमने कहा‘‘हवाओं को कौन हवाई जहाज या रेल में सवार होना होता है। न ही वह किलोमीटर की माप जानती हैं जो डर जायें। वह तो चलती हैं तो चलती हैं। बादलों को भी कुछ नहंी दिखता। जहां मौका मिला पानी गिरा दिया। वैसे अपने इलाके में पानी की जरूरत है। एक तरह से कहें तो यह नये वर्ष के पहले ही दिन अमृत बरस रहा है।’’
       भले ही सर्दी बढ़ती है पर मावठ की बरसात हमारे उत्तर भारत में अमृत मानी जाी है। यही बरसात न केवल फसलों के लिये सहायक है बल्कि गर्मी तक के लिये भूजल स्तर को भी बनाये रखती है। इस दृष्टि से ईसवी संवत 2012 का नया दिन एक शुभ संदेश लेकर आया है। इतना जरूर है कि ऐसे में घर के बाहर मौज मस्ती करने में बाधा आती है। फिर हमारे देश की सड़कें इस तरह की हैं कि सामान्य स्थिति में भी वहां रात्रि को चलना खतरनाक होता है ऐसे में बरसात का पानी वहां संकट बन जाता है तब दुर्घटनाओं का भय अधिक दिखता है। फिलहाल भारत के दक्षिण के साथ ही जापान में यही दिन खतरनाक परिणामों वाला रहा है। जिस थाने ने उत्तर भारत में अमृतमयी बरसात की है वही दक्षिण में भयंकर उत्पात मचाता रहा है। जापान में भूकंप के तेज झटके अनुभव किये गये हैं। वैसे उत्तर भारत में भी सभी के लिये आरामदायक स्थिति केवल स्वस्थ लोगों के लिये हो सकती है अगर वह संयम के साथ रहें तो, मगर अनेक प्रकार रोगियों के लिये यह ठंड अत्यंत दर्दनाक हो जाती है। कुल मिलाकर हम नया वर्ष या नया दिन पर खुशियां जो मनाते हैं वह केवल मन को बहलाने के लिये है जीवन और प्रकृत्ति का जो रिश्ता है उसका इससे कोई संबंध नहीं है। इस अवसर पर प्रस्तुत है कल लिखी गयी एक कविता-
दिन बीतता है
देखते देखते सप्ताह भी
चला जाता है
महीने निकलते हुए
वर्ष भी बीत जाता है,
नया दिन
नया सप्ताह
नया माह
और नया वर्ष
क्या ताजगी दे सकते हैं
बिना हृदय की अनुभूतियों के
शायद नहीं!
रौशनी में देखने ख्वाब का शौक
सुंदर जिस्म छूने की चाहत
शराब में जीभ को नहलाते हुए
सुख पाने की कोशिश
खोखला बना देती है इंसानी दिमाग को
मौज में थककर चूर होते लोग
क्या सच में दिल बहला पाते हैं
शायद नहीं!
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             वर्ष का बदलना तो कैलेंडर बदलने से ही हो जाता है। हमने कैलेंडर नया खरीदा आज सुबह लगा दिया ताकि अवसर पड़ने पर तारीखें देख सकें। शादी विवाह के निमंत्रण मिलने पर वहां जाने के कार्यक्रम बनाने या किसी त्यौहार पर उसे बाहर मनायें या घर में ही, यह फैसला करने में कैलेंडर बड़ा सहायक होता है। उसमें दूध का हिसाब लिखने का भी काम किया जा सकता है। मन चाहे तो अपना भविष्य फल भी देखा जा सकता है। पुराने साल का जो समय था वह निकल गया। अब नया इसलिये लाये कि शायद उसमें हमारे लिये नया मामला बन जाये। हां मन को बहलाने के लिये यह ख्याल बुरा नहीं है। यह मन ही तो है जो मनुष्य को चलाता है। मनुष्य की बुद्धि को यह भ्रम होता है कि वह उसे चला रही है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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