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Sunday, April 14, 2013

मनुस्मृति से संदेश-जल में गंदगी नहीं बहाना चाहिये (manusmriti se sandesh-jal mein gandagi nahin bahana chahiye)

            भारतीय उपमहाद्वीप में को पूरे विश्व में समशीतोष्ण क्षेत्र माना जाता हैं। यहां गर्मी, सर्दी और बरसात हमेशा ही प्रचुर मात्रा में अपना प्रभाव दिखाती है।  प्रकृति की अनुकंपा के रूप  में अनेक ऐसी नदियां यहां विद्यमान रही हैं जिन्होंने यहां जल का प्रवाह सदियों से जीवन को प्रफुल्लित बनाये रखा है। इसके बावजूद गर्मी के दिनों में यहां पानी का अभाव हो जाता है।  आधुनिक प्रबंधकीय व्यवस्था के चलते अनेक नदियों पर बड़े बांध भी बनाये गये।  कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि बड़े बांधों की बजाय छोटे बांध बनाने चाहिये। हमारे देश में प्रचुर मात्रा में बरसात होती है। देवराज इंद्र की कृपा इस देश पर कभी कम हो ऐसा देखा नहीं गया। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्षा के जल का संचय करने के लिये छोटे छोटे बांध बनाकर देश में किसी वर्ष अवर्षा की स्थिति पैदा होने पर उससे निपटा जा सकता है। इतना ही नहीं अब तो हार्वेस्ट के माध्यम से घरों में भी जल सुरक्षा की प्रणाली भी प्रचलन में आ गयी है।
     बढ़ती जनसंख्या की दृष्टिगत जिस प्रकार के जलप्रबंधन की आवश्यकता थी वह किया गया नहीं गया जिससे देश में ग्रीष्मकाल के दौरान पानी के लिये अनेक स्थानों पर त्राहि त्राहि मची रहती है। यह संकट तब तक चलता है जब तक वर्षा नहीं हो जाती। वर्षा होने के बाद फिर बाढ़ का प्रकोप भी सामने आता है। इस बाढ़ में नदियां ही नाले भी उफनते हुए अपना जल घरों में ले आते हैं। सच बात तो यह कहें कि परमात्म की कृपा भारत देश पर अधिक हुई इसलिये यहां जल की प्रचुर मात्रा में है पर यहां के जनमानस में जल के प्रति जरा भी सम्मान का भाव नहीं है। कहा जाता है कि जिस चीज की उपलब्धता अधिक होती है उसकी मांग घट जाती है पर जल कोई वस्तु नहीं जीवन है। यही बात लोगों की समझ में नहीं आती।
               
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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नाप्सु मूत्रं पुरीषं वाष्ठीवनं वा समुत्सृजेत्।
अमेध्यमलिप्तमन्द्वा लोहतं वा विषाणि वा।
       हिन्दी में भावार्थ-जल में मल मूत्र, कूड़ा, रक्त तथा विष आदि नहीं विसर्जित करना चाहिये। इससे पानी प्रदूषित हो जाता है।
    लोग नदियों और नालों में ही बिना विचारे गंदगी का विसर्जन करते हैं। सबसे हैरानी बात तो यह कि कारखानों के कचड़े का रुख भी उन नदियों और नालों की तरफ कर दिया गया है जिनमें जीवन के लिये जल प्रवाहित होता है। लोग तथा पशु पक्षी उनमें नहाते हैं।  अभी हाल ही में इलाहाबाद कुंभ के दौरान अनेक टीवी चैनलों पर नदियों के प्रदूषित होने के विषय पर  बहस आ रही थी।  उसमें भाग लेने वाले साधु संतों ने देश की पवित्र नदियों प्रदूषित होने पर जो टिप्पणियां कीं वह समाज की आंखें खोलने के लिये काफी थी।  जो साधु संत इन नदियों के जल पवित्र होने पर उनमें  नहाना धर्म मानते हैं वही  बता रहे थे कि ऐसा करना शरीर के लिये कष्टकारक है।  अनेक साधु संतों ने यह जानकारी भी दी कि  इन नदियों में उनके उद्गम  स्त्रोत से निकला पानी पानी आना तो दूर बरसात का पानी भी बहकर नहीं आता। बड़े बांधों में उनका पानी रोका जाता है और बड़े शहरों का गंदा पानी बहकर नदियों का नाम जीवित किये हुए है।
      जल का ऐसा अपमान हो रहा है। उसका परिणाम यह है कि देश में गर्मी के ऋतु में जलसंकट लोगों की हालत खराब कर देता है।  इसलिये जहां तक हो सके जल के प्रति पवित्र संकल्प रखना चाहिये। जहां तक हो सके जल को प्रदूषित करने से बचाना चाहिये। यह जल ही  हमारे जीवन का आधार है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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