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Sunday, October 19, 2014

मस्तिष्क में चिंताओं के धागे-हिन्दी कविता(mastishka mein chintaon ke dhage-hindi )



poem)
सभी इंसान
अपने भविष्य के लिये
सपने बुनते हैं।

अंतर इतना है
समझदार अपनी औकात देखकर
रास्ते पर चलते
नासमझ अपनी ताकत से
ज्यादा लक्ष्य चुनते हैं।

कहें दीपक बापू विकास का रथ
उधार और मदद के पहियों से
बढ़ रहा आगे,
सामान घर में भरा
मस्तिष्क में उलझे
चिंताओं के धागे,
चमकते चेहरों के मुख से भी
अंतरंग क्षणों में
लड़खड़ाते स्वर से
टूटते शब्दों को हम सुनते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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