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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, December 23, 2014

तरक्की और शिक्षा के दावे-हिन्दी कविता(tarakki aur shiksha ke dave-hindi poem)



तरक्की बेमतलब लगती

जब ज़माने में

वफा के कुऐं सूखे हों।



शिक्षा के दावे खोखले लगते

जब लोग बोलते ढेर सारे शब्द

मगर उनके अर्थ रूखे हों।





कहें दीपक बापू भरोसे के साथ

चलना भूल गये सभी,

दिमाग में हलचल थमी

सामानों की भीड़ में

दिल खो गये हैं अभी,

दौलत के लगा लिये ढेर

लगता है फिर भी

लोग अभी भूखे हों।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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