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Tuesday, March 24, 2015

व्यवसायिक क्रिकेट मनोरंजन उद्योग मानना चाहिये-हिन्दी चिंत्तन लेख(cricket is not a play but a tred-hindi article on cricket match)



          अभी आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता समाप्त भी नहीं हुई है कि भारत में एक क्लब स्तरीय प्रतियोगिता का प्रचार प्रारंभ हो गया है। सभी टीवी चैनल पर उसका विज्ञापन आ रहा है।  तय बात है कि क्रिकेट जहां आम लोगों के लिये खेल है तो व्यवसायियों के लिये यह मनोरंजन का सामान बन गया है।  मेरे विचार से क्रिकेट का खेल तभी तक खेल है जब तक उसे मुफ्त मन बहलाने के लिये अपनाया जाये। जहां पैसे का लेनदेन हो वहां इसे व्यापार मानना चाहिये।  एक तरह से यह फिल्म की तरह ही आम जनमानस का मनोरंजन करता है।
          ऐसे में यह सवाल उठता है कि जिस तरह छोटे बड़े व्यापारियों से कर वसूली की जाती है उसी तरह क्या क्रिकेट से भी की जायेगी?  जब सड़क पर ठेले और फुटपाथ पर गुमटी लगाने वाले से कर वसूला जाता है यह मानकर कि वह कमाता है तो क्या क्रिकेट का व्यापार करने वालों से भी राजस्व वसूली नहीं की जाना चाहिये?

          अनेक आर्थिक विशेषज्ञ तो यही कहते हैं कि इस पर उसी तरह मनोरंजन कर लगना चाहिये। हालांकि क्रिकेट से छोटी या बड़ी राशि कमाने वाले कथित नये पुराने खिलाड़ी इसे प्रोत्साहन देने के लिये करमुक्त की सुविधा जारी रखने के समर्थक हैं।  जहां तक नये तथा युवा खिलाड़ियों की बात है तो सभी को राष्ट्रीय या क्लब स्तरीय टीम में जगह नहीं मिलती पर अनेक इस प्रयास में रहते हैं कि शायद उनका भाग्य चमक जाये।  इतना ही नहीं अनेक क्रिकेट कोच तथा संस्थान हजारों युवकों को महान खिलाड़ी बनाने का सपना दिखाकर अपनी कमाई कर रहे हैं।  देखा जाये तो क्रिकेट खेल से सट्टा व्यवसाय ही नहीं बल्कि प्रशिक्षण उद्योग भी फलने फूलने के लिये खड़ा हो गया है।  हमने देखा है कि अनेक नवयुवक क्रिकेट खिलाड़ी बनने के लिये हाथ पांव मारने के बाद जीवन के दूसरे मार्ग की तरफ मुड़ गये पर इसके पहले उन्होंने ढेर सारी राशि अपने अपूर्ण सपने पर व्यय कर दी। जब से रंग बिरंगे कपड़े पहनने का प्रचलन क्रिकेट खिलाड़ियों में आया है तब से वह फिल्मी नायक की तरह लगते हैं।  जिस तरह पहले लोग फिल्म में भूमिका पाने के लिये लालायित रहते थे अब क्रिकेट खिलाड़ी बनने का प्रयास करते हैं-फिल्मों के बारे में तो अब यह धारण बन गयी है कि वहां पर अब वंशवाद की परंपरा चल पड़ी है इसलिये वहां सामान्य परिवार के लोग जाने की नहीं सोचते। शायद यही कारण है कि अनेक आर्थिक तथा सामाजिक विद्वान व्यवसायिक क्रिकेट को खेल नहीं वरन् मनोरंजन का व्यापार मानते हुए उससे राजस्व वसूली की सिफारिश करते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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