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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, September 14, 2015

गरीब के ख्वाब पर व्यापार-हिन्दी कविता(Garib ke khwab par vyapar-Hindi Poem)

भव्य हवेली की खिड़कियां
बाहर से अंदर झांकना कठिन
अंदर से भी बाहर झांकता कौन?

बाहर संवरा हुआ उद्यान
लगता स्वर्ग जैसा
सवाल यह अंदर हांफता कौन है।

कहें दीपक बापू गरीब के ख्वाब पर
व्यापार चलाने वाले
बस इतने दिलदार होते
कपड़े और रिश्ते
धूल के कण लगने पर ही
बदल देते
लौह दरवाजे के पीछे
हवा के झौंके से भी
सांस नहीं उखड़ती तो हांफता कौन है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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