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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, February 27, 2016

हरियाणा की घटनाऐं अत्यंत चिंता का विषय-हिन्दी लेख (Hariyana ki Ghatnaen chinta ka vishay-Hindi Article)

                हरियाणा में अब हिंसा थम गयी है। अब वहां हिंसक तत्वों की पहचान का दौर चल रहा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में वर्ष 2016 में हरियाणा में हिंसा के नाम से पृष्ठ दर्ज हो गये हैं। न्यायालय व प्रशासन ने इस हिंसा में शामिल लोगों पर कड़ी कार्यवाही की बात कही है। हम यह अपेक्षा करते हैं कि उन पर कड़ी कार्यवाही की भी जायेगी पर इतिहास के दाग इससे मिटने वाले नहीं है। जब देश के प्रचार माध्यम जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय पर ध्यान केद्रित करने के प्रयास के बीच हरियाणा की हिंसा के समाचार दूसरी वरीयता से प्रसारित कर रहे थे तब हमें हैरानी हुई थी। हम सोच रहे थे कि हरियाणा के आमजन इतने सारे हिंसक तत्वों के बीच अपनी रक्षा कैसे कर रहे होंगे? इस हिंसा में लोगों को भारी धनहानि भी हुई है उन्हें अपने जीवन के अगला हिस्सा भारी संघर्ष से गुजारना पड़ेगा यह तय है। सच तो यह है कि इस दौरान हरियाणा से असुरकाल झेला है। जिनकी कोई हानि नहीं हुई उन्हें भगवान का धन्यवाद व्यक्त करना चाहिये।
                हम भी देख रहे हैं कि हरियाणा में हुई भारी हिंसा की जानकारी देने की बजाय प्रचार माध्यम मुरथल के उस सामूहिक बलात्कार कांड की बात ज्यादा कर रहे हैं जिसके प्रमाण इतने दिन के बाद भी लापता हैं। हमारा मानना है कि अगर ऐसा हुआ है तो वह अत्यंत निंदाजनक है पर प्रचार माध्यमों को पूरे हरियाणा में हुई तमाम हिंसक घटनाओं की जानकारी देना चाहिये।  उस भयानक दौर में महिलाओं से बदतमीजियां हुई होंगी-यह बात तय है पर प्रमाण के अभाव में एक ही घटना पर सनसनी फैलाने तक ही सीमित रहना चाहिये। कुछ टीवी चैनलों ने लूटपाट के दृश्य दिखायें हैं। ऐसा लगता है हरियाणा के पता नहीं कितने इलाकों में इतना भयानक वातावरण बन गया था? इस तरह की सामूहिक हिंसा जहां होती है वहां लंबे समय तक भय का वातावरण रहता है पर जहां नहीं होती वहां भी समाचारों से भय का वातावरण बन जाता है। यह भय का भाव पीढ़ियों तक चलता है। विभाजन के समय सिंध व पंजाब से पलायन लोगों की यहां पैदा हुई पीढ़ियों में ऐसी सामूहिक हिंसा का भय किसी कोने में दबा हुआ देखा जा सकता है जो उनके पूर्वज सौंप गये। ताज्जुब इस बात का है कि देश के कथित बुद्धिजीवी हरियाणा की हिंसा की बजाय जेएनयू के मुद्दे पर अधिक चर्चा कर रहे हैं।
                अनेक बुद्धिजीवी तो अभिव्यक्ति की आजादी व अपनी विचाराधाराओं को बचाने के लिये शाब्दिक द्वंद्व में लगे है जबकि इस समय सामूहिक हिंसा की प्रवृत्ति रोकने विषय होना चाहिये।  अभिव्यक्ति की आजादी एक नकली  तो विचाराधारायें एक कल्पित विषय है। अभिव्यक्ति की आजादी न हो तो भी अनेक देश बचे हैं। एक ही विचाराधारा पर चलने वाला चीन भी तरक्की कर रहा है पर सामूहिक हिंसा देश के लिये वास्तविक संकट होती हैं जिनसे देश बंटने या टूटने से अधिक मिटने के खतरे पैदा कर सकते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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