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Thursday, May 25, 2017

वादों के सौदागरों का याद से नाता नहीं-दीपकबापूवाणी (vadon ke saudagar ko yaad se nata nahin-DeepakBapuWani)

घासफूस के घर में भी इंसान रहते हैं, देह के पसीने में उनके बयान बहते हैं।
दीपकबापूशिकायतें अब नहीं करते, माननीयों की हर ठगी खुलेआम सहते हैं।।
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वादे निभाने के लिये नहीं होते, करने वाले कभी शब्दों का बोझ नहीं ढोते।
दीपकबापूचतुराई से बेच रहे सपने, जागने वाले उनके ग्राहक नहीं होते।।
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जीवन के सफर में मार्ग भी बदल जाते हैं, कहीं हम कहीं साथी बदल जाते हैं।
दीपकबापूकिसका इंतजार करें किसे करायेंअपने इरादे भी बदल जाते हैं।।
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सबसे ज्यादा झूठे अपने सिर पर ताज पहने, सज्जन लगे बदनीयती का राज सहने।
दीपकबापूलाचार से ज्यादा हुए आलसी, मक्कार शान से विजयमाला आज पहने।।
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बेकार की बातों का जारी  है सिलसिला, तारीफ के विचार पर है भारी गिला।
दीपकबापूढूंढते जहान में मीठे बोल, हर शब्द अर्थ मिठास से खाली मिला।।
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खरीदने से मिले खुशी सभी जाने, बांटने से बढ़ती जाती सभी माने।
दीपकबापूसोचते कोई खुश दिखे, चिंता में सभी खड़े मुक्का ताने।।
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अपने सपने सभी ने सजा लिये, जीते है सभी पराये दर्द का मजा लिये।
दीपकबापूमृत संवेदना के साथी, कौन सुने दर्द सभी ने मुंह बजा लिये।
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वादों के सौदागरों का याद से नाता नहीं, भूलने से कुछ उनका जाता नहीं।
दीपकबापूबातों से पकाते लोगों का दिमाग, भरती जेब मगर कुछ जाता नहीं।।
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भूख जिसे लगी उसने रोटी पाई, हर गुंजरते पहर खाली पेट लेता अंगड़ाई।
दीपकबापूसब पाया दिल का चैन छोड़, हर ऊंचे पर्वत से लगी मिली खाई।।
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