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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, June 27, 2018

कठपुतली के खेल पर चलता अब जनतंत्र-(kathputali ke khel par chalata ab Jantantra-DeepakBapuWani0

रोटी की तलाश करें धूप में उनका बसेरा, महलवासी कहें मुफ्त में जमीन को घेरा।
‘दीपकबापू’ परायी करतूतों पर नज़र डालते, अपने काले कारनामें से सभी ने मुंह फेरा।।
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कत्ल हुई लाशों पर जमकर रोते हैं, फिर कातिलों के हक का बोझ भी ढोते हैं।
‘कहें दीपकबापू’ हमदर्दी के सौदे में कमाते, वही बीमारी के साथ दवा भी बोते हैं।।
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वादे लुटाते दिल खोलकर पूरे कौन करे, खाली मटके में पानी शब्द बोलकर कौन भरे।
‘दीपकबापू’ मजबूर बंधक राजपद संभालें, विज्ञापन में वंदना बजे अक्लमंद मौन धरे।।
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ज़माने पर राज का अहंकार कौन छोड़ पाया, गैर दर्द पर हंसना कौन छोड़ पाया।
‘दीपकबापू’ सभी जीवों से ज्यादा अक्ल पाई, फिर भी अहंकार कौन छोड़ पाया।।
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कठपुतली के खेल पर चलता अब जनतंत्र, मांस के बुत पढ़ रहे अभिव्यक्ति मंत्र।
‘दीपकबापू’ धन बल से जीत लेते जनमत, पांच बरस भोगते चलाते राज्य यंत्र।।
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चिराग जलाते और मोर पंख हिलाते, सर्वशक्तिमान को अपनी शक्ति से हिलाते।
सड़क पर थामें भिन्न भिन्न रंग के झंडे, ‘दीपकबापू’ बाहर लड़ें अंदर हाथ मिलाते।।

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