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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 2, 2008

फटे हुए मामले पर कुछ नहीं लिखा-हास्य व्यंग्य

चेले को हमें एक निबंध लिखने को दिया और कहा-''कम से कम आधा घंटा तंग मत करना। हम अंतर्जाल पर लिख रहे हैं। बहुत दिन हुए कोई हिट होने वाला मसाला नहीं बना पाए। ''

उसके बाद हम कुर्सी पर आलथी-पालथी मारकर टाईप करने लगे। तो चेला बोला-''बढिया, गुरूजी। वाह मजा आ गया।''

हमने चौंक कर कहा-''क्या बात हैं अभी तो हमने तुम्हें ब्लोग लिखना और कमेन्ट देना सिखाया ही नहीं और तू देखते-देखते सीख गया। देख हमारे पास पढ़ने का तुझे कितना फायदा हो गया। अब तू अपने घर से डबल फीस ले आया कर। यह ब्लोग का विषय मुफ्त में नहीं सीखने दूंगा।''

चेला बोला-''गुरूजी, में ब्लोग की बात नही कर रहा हूँ। आप जिस तरह करवटें बदलकर लिख रहे हैं ऐसे अंग्रेज लेखक करते हैं। मेरे पापा बता रहे थे एक अंग्रेज लेखक ३२ प्रकार की कुर्सियों पर ६४ प्रकार की बैठक आकर लिखते थे। अब आप भी भी जिस तरह करवट बदलकर लिख रहे हैं उससे तो लगता है आप भी देश के नंबर वन हिन्दी ब्लोगर बन जायेंगे। ''

हमें गुस्सा आ गया-''तो तू हमारे जले पर नमक छिड़क रहा है जरूर गुरु माता ने तुझे हमारी फजीहत के बारे में बता दिया है। सुन पहली बात तो यह है कि वह लोग हमारे हलके ब्लोग को उड़ाकर ले गए और पांच रेटिंग रख दी। भारी ब्लोग तो वह लोग उठा ही नहीं पाए। उसके बाद जो हमने हास्य कवितायेँ बरसाईं वह भी बेमिसाल थीं और जमकर हिट हुईं थीं। तेरी गुरु माता तो बस हमारा मजाक बनातीं हैं। दूसरा यह अंग्रेज लेखकों की बात तो मेरे सामने किया ही मत कर। हम भारत के लोग जमीन पर जमीन के और देखते हुए लिखते हैं और इसलिए आज भी हमारा पुराना लिखा दुनिया में सम्मान पाता है। तीसरा यह है कि हम फटे हुए मामले पर लिख रहे हैं और इसलिए सुखासन में बैठकर लिख रहे हैं ताकि कहीं 'फटे में टांग न फंस जाये'।

चेला पहले तो देखने लगा फिर आश्चर्य चकित होते हुए बोला-''इस तरह फटे मामले पर लिखेंगे तो टांग नहीं फंसेगी?''

हमने कहा-''कैसे फंसेगी? कम अक्ल कहीं के! देख नहीं रहा आलथी-पालथी मारकर लिख रहे हैं।''

फिर बोला-''गुरु जी, पर मामला फटा कैसे है?''
हमने कहा-''हमें खुद नहीं मालुम? बस फटा हुआ है। लोग एक दूसरे पर बरस रहे हैं। उनको मिल रहे हैं जोरदार हिट बाकी तरस रहे हैं। ऐसा लगता है कि फटा हुआ मामला ही पढा जा रहा है। लोगों को फुरसत ही नहीं है कुछ और पढ़ने से।''
चेले ने पूछा-''गुरु जी, फिर आप क्यों झमेले में पढ़ रहे हैं। वैसे वह लोग लिख क्या रहे हैं।''
हमने कहा-''यही समझ में नहीं आ रहा है। हमने कल खूब प्रयास किया पर समझ में नहीं आया। कंप्यूटर के सामने उल्लुओं की तरह बैठे रहे।''

चेले ने पूछा-''फिर आप क्या लिख रहे हैं?''
हमने कहाँ-''हम भी लिख रहे हैं पर क्या हमको नहीं मालुम। अगर कुछ पढ़कर समझ में आता समझने वाली बात लिखते। अब हम भी लिख रहे हैं और किसी के समझ में आएगा इसमें हमें भी शक है। बात समझ में आये तो समझ वाली बात लिखें।''
उधर से गुरु माता की आवाज सुनकर किचन में चाय लेने चला गया। वहाँ उसकी गुरुमाता ने पूछा--''तेरे गुरूजी तुझे पढा रहे हैं कि कंप्यूटर से चिपके हुए हैं।''
चेले ने कहा--''गुरु जी फटे मामले पर कुछ आलथी-पालथी मारकर लिख रहे हैं।''
गुरुमाता ने पूछा-''क्यों? आलथी-पालथी मारकर क्यों?
चेले ने कहा-''इसलिए के फटे में टांग न फस जाये।''
गुरुमाता वहीं से जोर से चिल्लाकर बोली-''गुरु जी से कहो, दूसरों के मामले में टांग मत फंसाओ।

चेला चाय के दो कप लेकर आया और बोला-''गुरु जी, आखिर आप लिख क्या ले रहे हो। मुझसे गुरुमाता ने कहा है कि पूछ कर आओ।''

हमने कहा-'' बोल दे। कुछ नहीं लिख रहे। तुझे वहाँ सब कहने की क्या जरूरत थी? जाकर कह दे गुरूजी फटे मामले पर कुछ नहीं लिख रहे हैं।''

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