काम पर है तो घर की याद
और घर पर अपने काम की चिंता
आदमी हो गया है एकाकी
हर पल बस एक ही सोच
कोई काम न रह जाये बाकी
सब जानते हैं दुनियां उनके
दम पर नहीं चलतीं
पाल रहे हैं जो जिंदगियां
वह भी उनके सहारे नहीं पलती
जिनके मालिक कहलाते हैं
मुसीबत के साथ देंगे
कहां यह ख्याल कर पाते हैं
दुनियां चलती है
अपनी गति से
आदमी को यह खुशफहमी पालना
अच्छा लगता है कि
सब हो रहा है उसकी मति से
अंधी दौड़ मे दौड़ रहा है आदमी
कोई चीज मिलना न रह जाये बाकी
अपनी असलियत से बेखबर आदमी
अपने दिल पर ही नकाब लगा लेता है
किसी और को क्या देगा
अपने आप को दगा देता है
आसमान में उड़ता हुआ आदमी
जमीन की हकीकतों को
चाहता है भुलाना
भेजता है अपने तनाव को स्वयं बुलाना
शोर में करता शांति की तलाश
बीभत्स दृश्यों में कांति की आस
हर पल भाग रहा है आदमी
कहीं कुछ देखना न रह जाये बाकी
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दीपक भारतदीप
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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3 years ago
1 comment:
Wah..wah
achhi rachna hai deepak g
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