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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, August 19, 2008

आदमी अपने दिल पर नकाब लगा लेता है-हिंदी शायरी

काम पर है तो घर की याद
और घर पर अपने काम की चिंता
आदमी हो गया है एकाकी
हर पल बस एक ही सोच
कोई काम न रह जाये बाकी

सब जानते हैं दुनियां उनके
दम पर नहीं चलतीं
पाल रहे हैं जो जिंदगियां
वह भी उनके सहारे नहीं पलती
जिनके मालिक कहलाते हैं
मुसीबत के साथ देंगे
कहां यह ख्याल कर पाते हैं
दुनियां चलती है
अपनी गति से
आदमी को यह खुशफहमी पालना
अच्छा लगता है कि
सब हो रहा है उसकी मति से
अंधी दौड़ मे दौड़ रहा है आदमी
कोई चीज मिलना न रह जाये बाकी

अपनी असलियत से बेखबर आदमी
अपने दिल पर ही नकाब लगा लेता है
किसी और को क्या देगा
अपने आप को दगा देता है
आसमान में उड़ता हुआ आदमी
जमीन की हकीकतों को
चाहता है भुलाना
भेजता है अपने तनाव को स्वयं बुलाना
शोर में करता शांति की तलाश
बीभत्स दृश्यों में कांति की आस
हर पल भाग रहा है आदमी
कहीं कुछ देखना न रह जाये बाकी
.............................................
दीपक भारतदीप

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