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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, July 29, 2009

जमाना जड़ रहे-हिंदी व्यंग्य कविता (hindi hasya kavita)

वह लोग आसमान से नहीं उतरे
जो जमाने में बदलाव लायेंगे।
किताबों ने बना दिया है
उनकी अक्ल को जड़
इतिहास के इंसानों को
वह आसमान से उतरा बतायेंगे।
जमीन पर पैदा आदमी
जड़ की तरह जमा रहे
भीड़ में भेड़ की तरह सजता रहे
इसलिये झूठे किस्से बाजार में सजायेंगे।
ओ। भीड़ में सजे भेड़ की तरह सजे इंसानों
जिनके इशारों पर चलते हुए
अपनी जिंदगी और जमाने में
बदलाव की उम्मीद लगाये बैठे हो
अपनी कामयाबी की जड़ों को
तुम्हारी लिये वह मिट्टी में नहीं मिलायेंगेे।
गुलाम बनकर अपने पैरों पर
मारोगे तुम कुल्हारी
वह उनके दर्द से अपना कक्ष सजायेंगे।
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जड़ बनकर लोग खड़े रहें
उन पर खड़ा करें अपनी कामयाबी महल।
बदलाव की वह कभी नहीं करेंगेपहल।
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नारा लगाते हैं वह
जमाने को बदल देंगे।
पर उनके काबू में रहे आम इंसान
इसलिये सभी जगह वह दखल देंगे।
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जमाना जड़ रहे
उसी पर उनकी पीढ़ियों का भविष्य टिका है।
इसलिये कहते हैं वह सबसे यही
‘होगा वही सब कुछ
जो सर्वशक्तिमान ने लिखा है’।

...........................
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