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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, June 21, 2010

दुनियां का सच-हिन्दी क्षणिका (duniyan sa sach-hindi short poem)

मुखौटों से रिश्ते रखते हुए
अब हम ऊबने लगे हैं,
वादों की नाव कभी चलती नहीं
इसलिये ख्वाबों में ही डूबने लगे हैं,
इंसानों के मर गये जज़्बात,
गद्दारी और वफादारी की नहीं जानते जात,
देखा हमने, क्योंकि रोज दुनियां के सच के साथ जगे हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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1 comment:

अजित गुप्ता का कोना said...

ब्‍लाग को जोड़ने वाला लिंक खुल नहीं रहा है। अच्‍छा प्रयास है, बधाई।

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