मुखौटों से रिश्ते रखते हुए
अब हम ऊबने लगे हैं,
वादों की नाव कभी चलती नहीं
इसलिये ख्वाबों में ही डूबने लगे हैं,
इंसानों के मर गये जज़्बात,
गद्दारी और वफादारी की नहीं जानते जात,
देखा हमने, क्योंकि रोज दुनियां के सच के साथ जगे हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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3 years ago
1 comment:
ब्लाग को जोड़ने वाला लिंक खुल नहीं रहा है। अच्छा प्रयास है, बधाई।
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