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Saturday, August 14, 2010

भूत पर यकीन-हास्य कविता (bhoot par yakin-hasya kavita)

पोते ने दादा से पूछा
‘‘अमेरिका और ब्रिटेन में
कोई इतनी भूतों की चर्चा नहीं करता,
क्या वहां सारी मनोकामनाऐं पूरी कर
इंसान करके मरता है,
जो कोई भूत नहीं बनता है।
हमारे यहां तो कहते हैं कि
जो आदमी निराश मरते हैं,
वही भूत बनते हैं,
इसलिये जहां तहां ओझा भूत भगाते नज़र आते हैं।’’

दादा ने कहा-
‘‘वहां का हमें पता नहीं,
पर अपने देश की बात तुम्हें बताते हैं,
अपना देश कहलाता है ‘विश्व गुरु’
इसलिये भूत की बात में जरा दम पाते हैं,
यहां इंसान ही क्या
नये बनी सड़कें, कुऐं और हैंडपम्प
लापता हो जाते हैं,
कई पुल तो ऐसे बने हैं
जिनके अवशेष केवल काग़ज पर ही नज़र आते हैं,
यकीनन वह सब भूत बन जाते हैं।’’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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1 comment:

निर्मला कपिला said...

सटीक कटाक्ष आभार । आपको स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

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