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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, February 5, 2013

यह फिक्सिंग मिक्सिंग-हिन्दी व्यंग्य चिंतन (yah fising mixing-hindi vyangya chinttan satire thought)

              फुटबाल में फिक्सिंग होती होगी इसका शक हमें पहले से ही था।  इसका कारण यह है की हमारे देश में व्यसाय, खेल, फिल्म तथा अन्य क्षेत्रों में पूरी तरह से पश्चिमी संस्कृति घर कर चुकी है।  ऐसे में हमारे देश के व्यवसाई  और खिलाड़ी कोई ऐसा काम नहीं कर सकते जो पश्चिम वाले नहीं करें।  पश्चिम वाले जो काम करें वह हमारे देश के लोग भी हर हाल में करेंगे यह भी निश्चित है।  एक बात तय है कि सांसरिक विषयों में कोई मौलिक रूप के हमारे  देश में अब होना संभव नहीं है। विश्व में हमारा देश आध्यात्मिक गुरु माना जाता है पर सांसरिक विषयों के मामले में तो पिछड़ा हुआ है।  यह अलग बात है कि इन सांसरिक विषयों में भी हमारे अनेक प्राचीन सिद्धांत हैं जिनको अब लोग भूल चुके है ।  बात फुटबाल की हो रही है तो हम अपने क्रिकेट खेल को भी जोड़ लेते हैं।  पूरी तरह व्यवसायिक हो चुके क्रिकेट खेल में फिक्सिग नहीं  होती हो अब इस बात पर संदेह बहुत कम लोग को रह गया है।  दूसरी बात यह कि मनोरंजन की दृष्टि से इस देखने वालों की संख्या अधिक है खेलने वाले बहुत कम दिखते हैं।  फिर आजकल मनोरंजन के साधन इतने हो गये हैं कि क्रिकेट खेल के प्रतिबद्ध दर्शक अत्यंत कम रह गये हैं।  अनेक विशेषज्ञ तो इस बात पर हैरान है कि भारत में चलने वाली क्लब स्तरीय प्रतियोगिता आखिर किस तरह के आर्थिक स्त्रोत पर चल रही है? अभी कल ही इस खेल के खिलाड़ियों की नीलामी हुई।  अनेक खिलाड़ियों की कीमत देखकर अनेक विशेषज्ञों के मुंह खुले रह गये। एक विदेशी खिलाड़ी ने तो अपनी कीमत पर खुद ही माना है कि वह उसके लिये कल्पनातीत या स्वपनातीत है। ।
               फुटबॉल चूंकि भारत में अधिक नहीं खेला जाता इसलिये उसके मैचों में फिक्सिंग का अनुमान किसी को नहीं है पर देश जो खेलप्रेमी इन फुटबॉल मैचों को देखते हैं उनको अनेक बार ऐसा लगता है कि कुछ खिलाड़ी अनेक बार अपने स्तर से कम प्रदर्शन करते हैं या फिर कोई पूरी की पूरी टीम अप्रत्याशित रूप से हार जाती है।  अभी कुछ समय पहले संपन्न फुटबॉल विश्व के दौरान अनेक मैच शुकशुबहे का कारण बने।  क्रिकेट हो या फुटबॉल इन खेलों में अब जमकर पैसा बरस रहा है। यह पैसा खेल से कम उससे इतर गतिविधियों के कारण अधिक है।  अनेक खिलाड़ियों को कंपनियां अपना ब्रांड एम्बेसेडर बना लेती है।  भारत में तो अनेक खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिन्होंने बीसीसीआई की कथित राष्ट्रीय टीम का मुंह तक नहीं देखा पर करोड़पति हो गये हैं।  अनेक खिलाड़ियों पर स्पॉट फिक्सिंग की वजह से प्रतिबंध लगाया गया है जो कि इस बात का पं्रमाण है कि फिक्सिंग होती है। यहां यह भी बता दें कि जिन खिलाड़ियों पर यह प्रतिबंध लगे वह प्रचार माध्यमों के ‘स्टिंग ऑपरेशन’ की वजह से लगे न कि बीसीसीआई की किसी संस्था की जांच में वह फंसे। इसका मतलब यह कि जिनका ‘स्टिंग ऑपरेशन’ नहीं हुआ उनके भी शुद्ध होने की पूरी गांरटी नहीं हो सकती।  सीधी बात यह कि जो पकड़ा गया वह चोर है और जिस पर किसी की नज़र नहीं है वह साहुकार बना रह सकता है।
   हमारा मानना है कि खेलों में फिक्सिंग अब रुक ही नहीं सकती।  इसका कारण यह है कि एक नंबर और दो नंबर दोनों तरह के धनपति इसमें संयुक्त रूप से शामिल हो गये हैं।  दोनों में एक तरह से मूक साझोदारी हो सकती है कि तुम भी कमाओ, हम भी कमायें।  यह भी संभव है कि दो नंबर वाले एक नबर वालों का चेहरा आगे कर चलते हों और एक नंबर वाले भी अपनी सुरक्षा के लिये उनका साथ मंजूर करते हों।  क्रिकेट से कहीं अधिक महंगा खेल फुटबॉल है। उसमें शक्ति भी अधिक खर्च होती है।  दूसरी बात  यह कि दुनियां में कोई भी व्यवसाय क्यों न हो कुछ सफेद और काले रंग के संयोजन से ही चलता है। अब चूंकि भारतीय अध्यात्म दर्शन की बात तो कोई करता नहीं इसलिये हम अंग्रेज लेखक जार्ज बर्नाड शॉ के इसी सूत्र को दोहराते हैं कि इस दुनियां में कोई भी आदमी दो नंबर का काम किये बिना अमीर नहीं हो सकता।  साथ ही यह भी जो सेठ साहुकार फुटबॉल या अन्य खेलों के खिलाड़ियों को पाल रहे हैं वह उनके खेल को अपने अनुसार प्रभावित न करते हों यह संभव नहीं है।  इस तरह की फिक्सिंग के सबूत मिलना संभव नहीं है पर मैच देखकर परिणाम पूरी की पूरी कहानी बयान कर ही देता है।  




लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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