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Sunday, August 10, 2014

बाज़ार में खुशी की तलाश-हिन्दी कविता(bazar meih khushi ki talash-hindi poem)





कई ठगों ने बेच दी

लोगों को  सोने का अंडा देने वाली मुर्गी

मगर धरती पर कभी नज़र नहीं आयी।



बहुत से आशिकों ने

माशुकाओं से किया वादा

आसमान से तारे तोड़ लाने का

मगर जमीन पर

कभी चमक नज़र नहीं आयी।



इंसानों की पीढ़ियां गुजर गयी

हाथ उठाये आकाश की तरफ

दरियादिली बरसने की आस में

मगर किसी फरिश्ते की छवि

इस धरती पर नज़र नहीं आयी।



कहें दीपक बापू कुदरत का कमाल है

हर शय मौजूद है इंसानी शरीर में

फिर भी बेखबर हैं सभी

ढूंढने जाते खुशी बाज़ार में पैसा लेकर

खर्च कर भी तसल्ली

किसी में नज़र नहीं आयी।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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