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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, June 18, 2015

शीशे के घर में रहने वाले-हिन्दी कविता(sheehse ke ghar mein rahane wale-hindi poem)


इंसान कभी देवता नहीं होते
जरुरत हो तो
बड़ा कसूर भी कर जाते हैं।

चालाक अंदाज हो तो
लोग माफी देने के लिये
मजबूर भी हो जाते हैं।

कहें दीपक बापू शीशे के घर में
रहने वाले पत्थर फैंकने लगे हैं
रास्ते चलते लोगों पर
पहरेदारों की फौज देखकर
सभी उनसे दूर भी हो जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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