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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, June 3, 2015

सौदगरों के जलवे-हिन्दी कविता(saudagaron ke jalwe-hindi poem)

मजबूर लोगों की
संख्या इतनी कि
सौदागर अपना सहयोग बेच रहा है।

रोटी से ज्यादा भूखे
लोग है मन के रूखे
बहलाने के नाम पर
सौदागर भोग बेच रहा है।

पैसे के पीछे पागल ज़माना
अक्ल नहीं उसे कमाना
ताकत के नाम पर
सौदागर रोग बेच रहा है।

कहें दीपक बापू भक्ति से
आसक्ति जीत रही है
बदनाम होता है वह सौदागर
जो योग मुफ्त बेच रहा है।
----------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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