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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, December 26, 2007

फ्लॉप और हिट का खेल

क कवि पहुंचा ब्लोगर के घर और बोला
'यार, कवि सम्मेलनों में होने लगी है
हुटिंग ज्यादा
मुझे किसी ने अंतर्जाल पर जाकर
अपनी कविता की दुकान सजाने का
आइडिया सुझाया
तो मुझे तुम्हारा नाम याद आया'

ब्लोगर बहुत खुश हुआ
उसने सोचा अब तक मिलती थी
उनचास टिप्पणियां
अब पचास का जुगाड़ खुद मेरे पास आया
तत्काल उसे कम्प्यूटर के सामने बिठाकर
अंतर्जाल पर काम करने का
पूरा आइडिया समझाते हुए
उसका भी एक ब्लोग बनवाया
जाते-जाते कवि गुरूदक्षिणा में
कवि ने दिया ज्ञान
'क्या यह अगड़म-बगडम लिखते हो
कुछ कवितायेँ और कहानियां लिखा करो
अपनी हिन्दी के ज्ञान का विस्तार करो
जिसकी वजह से इतना तुमने नाम पाया'

ब्लोगर ने बाँध ली कवि की बात गाँठ बांधकर
जुट गया साहित्य सृजन में
पर होता गया फ्लॉप
रचनाएं तो बहुत होने लगीं
टिप्पणियां होती गईँ कम
फिर भी वह लिखने से बाज नही आया
एक दिन पहुँचा कवि के घर
और बोला
'बहुत दिन से न तुम्हें देखा
न तुम्हारा ब्लोग
जो तुमने मुझसे बनवाया '

कवि ने उसे अपना ब्लोग दिखाया
और बोला
'तुमसे बनाने के बाद मैंने
ब्लोग को छद्म नाम से बनाया
क्योंकि चुराई हुई कविताओं के लिए
मैं तो पहले ही बदनाम था
उससे बचने का यही रास्ता नजर आया
देखो मेरे नाम पर पुरस्कार भी आया'
ब्लोगर ने देखा कवि का ब्लोग
उसमें कवि के कतरनों के नीचे
उसकी कविताओं के ही अंश लगे थे
जिनमें कवि ने जोडा था अपना नाम
जिनमें पचास-पचास से
ज्यादा कमेन्ट जड़े थे
फिर कवि ने दिखाए
दूसरे ब्लोग
उनमें भी टिप्पणियों में
ब्लोगर की कविताओं की छबि थी
उसने कवि से कहा
'यहाँ भी तुम बाज नहीं आये
मेरी कतरन से हिट पाए
तुम्हारे रास्ते पर चलाकर मैं
तो हो गया फ्लॉप ब्लोगर
तुमने मेरी रचनाओं से ही
इतना बड़ा पुरस्कार पाया'

कवि घबडा गया और बोला
'यार, मैं क्या करता
मैंने तो अखबार की कतरनों और
तुम्हारी कविताओं के अंशों से ही काम चलाया
यही आइडिया मेरी समझ में आया
अब तुम किसी और से मत कहना
मेरी जिन्दगी में तो पहला
पुरस्कार आया'

ब्लोग वहाँ से निकल बाहर आया
और आसमान में देख कर बोला
'अजब है दुनिया
मैं कवितायेँ लिखकर हिट से
फ्लॉप ब्लोगर हो गया
और वह ब्लोग पर मेरी कवितायेँ लिखकर
हिट कवि कहलाया'
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जिसने जो माँगा मिल जाता हो
यह जरूरी नहीं
अगर ऐसा होता धरती पर
स्वर्ग होता हर कहीं

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