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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, January 11, 2008

चजई- ब्लोगर नंबर वन का रास्ता

लिखने में जो मजा है
वह इनाम में कहाँ आता है
जिनकी होती है इनाम पर नजर
उनको लिखना भी नहीं आता
कुछ लोगों के लिए भाषा कभी
मन के भाव की नहीं होती
यह एक व्यापार का जरिया बन जाता है

करते हैं बहुत सारे ढोंग
भाषा को समृद्ध करने का
पर उनका शब्द ज्ञान
पुरस्कारों के सौदे तक ही सिमट जाता है
कहीं से तस्वीर उठाते
कहीं से शब्द चुराते
और अपने ग्रंथालय सजाते
बनते हैं शब्दों के व्यापारी जब निर्णायक
अपनों-अपनों की शक्ल देख पाते
भला अक्ल से कहाँ नाता जोड़ पाते
चेहरे पर होती है मुस्कराहट
मन में स्वार्थ छा जाता है

अख़बार और पत्रिकाओं में तो देखा था
अब अंतर्जाल पर भी
उनकी माया का विस्तार नजर आता है
नाम के लिए बनाते वेब साईटें
कटिंग उठाकर चिपकाते
अपनी मौलिकता सब जगह जताते
सर्वोतम से होते कोसों दूर
पर खिताबों के लिए भीड़ में जुट जाते
जिस भाषा की सेवा करने का करते दावा
उससे उनका कोई रिश्ता नजर नहीं आता है

कहैं दीपक बापू
कलम कोई हमने इनाम पाने के लिए
कभी नहीं उठाई हैं
पर कभी नहीं भायी धोखाधड़ी
इसलिए हास्य कविता से जोड़ दी दिल की लड़ी
कभी पढा नहीं इसलिए ऐसा कर गए
हमारे लिए विषय का जुगाड़ कर गए
उनको निभाना है इनामों से रिश्ता
हमें हास्य कविता से नाता जोड़ना आता है
नही चाहते कभी शिखर
पर ख़ुद ही हमारे सामने खडा हो जाता है
किसी को नंबर वन से हटाना नहीं चाहते
क्योंकि लोगों के दिल से ही रास्ता
ब्लोगर नंबर वन को ले जाता है
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नोट यह एक काल्पनिक हास्य रचना है और इसका किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है और अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाए तो वही जिम्मेदार होगा.

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

करते हैं बहुत सारे ढोंग
भाषा को समृद्ध करने का
पर उनका शब्द ज्ञान
पुरस्कारों के सौदे तक ही सिमट जाता है
दीपक जी धन्य्वाद, ऊपर की पक्तिया दिल को छू गई
वाह कया कविता हे एक एक शव्द बहुत कुछ कह गया हे,

Anonymous said...

आपकी कविता मन को छू गई....बहुत बढ़िया कविता लिखते हैं आप...ऐसे ही लिखते रहे.

Anonymous said...

"कुछ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष निगाहें भी उठी हैं कि अंतिम दौर की सूची में कविताओं के चिट्ठे नहीं हैं – तो यहाँ भी मैं कहना चाहूँगा, कि ब्लॉग पुरस्कारों के लिए कविता, साहित्य इत्यादि के अलग से कुछ श्रेणियाँ रहें तो उत्तम. अन्यथा मुझे अंदेशा है कि सिर्फ कविता, और साहित्य वाले ब्लॉगों पर इस पुरस्कार में तो क्या किसी भी अन्य ब्लॉग पुरस्कार में स्थान बना पाना असंभव तो नहीं मगर मुश्किल जरूर होगा।" ये कमेन्ट रवि रतलामी जी ने सारथी पर दिया है
जबकी सम्मान हेतु हिंदी के ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित
मे लिखा था

चयन का सामान्य आधार-संस्था 3 ऐसे हिंदी चिट्ठाकारों को सम्मानित करना चाहती है, जिन्हें भाषा, शिल्प, विषय वस्तु, प्रभाव, सादगी, व्यूवरशीप एवं अन्य कारणों से आदर्श कहा जा सके । संस्था यह भी अपेक्षा रखती है कि ऐसे चिट्ठाकार जो बड़े महानगर के न हों और जो तकनीकी और संचार के आधुनिक सुविधाओं से भी विशेष रूप से न जुड़े हों । वे लगातार अपनी मौलिक रचनात्मकता को भी अंतरजाल पर सिद्ध करते रहे हों । किन्तु अंतिम चयन निर्णायक मंडल के विवेक पर ही किया जायेगा ।
3. सम्मानित होने वाले ब्लॉगरों की कोई स्तरीय एवं साहित्यिक पांडुलिपि संस्था को प्रस्तुत होने पर संस्था उसे निःशुल्क प्रकाशित कर सकेगी । तथा ऐसे रचनाकार को संबंधित कृति की 100 प्रतियाँ अर्थात् (लगभग10,000 रुपये का सहयोग)प्रदान किया जायेगा ।

क्या समनित ब्लॉगर ओरिजनल क्रियेटिव लेखक है ?? अगर हाँ तो कृपा कर कही ये भी अवश्य बताये की क्रियेटिव लेखन क्या होता हे ?? और पुरुस्कार प्राप्त ब्लॉगर के किस ब्लोग को आप किताब के रूप मे प्रकाशित करेगे ? प्रविष्टी मांगने के समय बनाए नियमो का सरासर उन्ल्घन हुआ है ।
सवाल निर्णायक के निर्णय का नहीं है , सवाल प्रविष्टियों के चुनाव का है । प्रविष्टी चुनाव का आधार ही गलत है । अगर आप को नए और पुराने ब्लॉगर को पुरुस्कार देना था तो आप को नियम मे ये स्पष्ट करना चाहीये था की अनूप जी को हम लाइफ टाइम अचिवेमेंट देना चाहते है , और कोई महिला ब्लॉगर ऊँगली ना उडाये इसलिये ममता को दे देते है ।
अब रवि जी का ये कहना गलत है की श्रेणियाँ होनी थी !!!!!! पुरूस्कार के लिए ।

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