यह अव्यवसायिक ब्लॉग/पत्रिका है तथा इसमें लेखक की मौलिक एवं स्वरचित रचनाएं प्रकाशित है. इन रचनाओं को अन्य कहीं प्रकाशन के लिए पूर्व अनुमति लेना जरूरी है. ब्लॉग लेखकों को यह ब्लॉग लिंक करने की अनुमति है पर अन्य व्यवसायिक प्रकाशनों को यहाँ प्रकाशित रचनाओं के लिए पूर्व सूचना देकर अनुमति लेना आवश्यक है. लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
Thursday, February 28, 2008
दूसरों के सवालों के जवाबों के की तलाश में लग जाओ-हिन्दी शायरी
जितना हो सके उनसे परे हो जाओ
सीखो दूसरों के सवालों का जवाब देना
क्योंकि वही रास्ता जाता है
अध्ययन और मनन की तरफ
अपना सवाल उलझता है अपने अन्दर
कभी बाहर नहीं निकल पाता
घुटता है आदमी उसमें
इसलिए दूसरों के सवालों के
जवाबों की तलाश में लग जाओ
हर कोई ढूंढ रहा है यहाँ अपने मुकाम
देखता है बाहर
सोचता है अन्दर
विचारों से शून्य हैं सब
बोलने के के लिए सबके पास है
शब्दों का विशाल समंदर
सवालों से भरी है सबकी झोली
कोई नहीं बोलता जवाबों की बोली
तुम जवाबों की तलाश में लग जाओ
तुम सवाल-दर-सवाल करते रहोगे
कोई नहीं देगा जवाब
सारा दर्द अकेले ही सहोगे
कोई नहीं आयेगा तुम्हें समझाने
अपने लोग भी हो जायेंगे अनजाने
जब करोगे अध्ययन और मनन
निकलोगे दूसरों के सवालों का जवाब
अपने लिए भी ढूंढ लोगे
अपने लिए सभी ढूंढ रहे हैं कुछ न कुछ
तुम दूसरों की तलाश में लग जाओ
----------------------------------------------
Tuesday, February 26, 2008
संत कबीर वाणी: गले में माला डालने से हरि नहीं मिलते
मैं-मैं बड़ी बलाइहै सकै तो निकसौ भाजि
कब लग राखु हे सखी, रुई लपेटी आगि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यह मैं-मैं बहुत बड़ी बला है। इससे निकलकर भाग सको तो भाग जाओ, अरी सखी रुई में आग को लपेटकर तू कब तक रख सकेगी।
'कबीर'माला मन की, और संसार भेष
वाला पहरयां हरि मिलै तो अरहट कई गलि देखि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सच्छी माला ही अचंचल मन की है बाकी तो संसारी भेष है। मालाधारियों का यदि माला पहनने से हरि मिलना होता तो रहटको देखो हरि से क्या उसकी भेंट हो गई। उसने तो इतने बड़ी माला गले में डाली।
Monday, February 25, 2008
संत कबीर वाणी:गुरु करें जानकर, पानी पिएँ छानकर
बिना विचारै गुरु करे, परे चौरासी खानि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं की पानी को सदैव छान कर पीना चाहिऐ तथा गुरू को अच्छी तरह जान कर ही अपना गुरु बनाना चाहिऐ . छान कर पानी पीने से शरीर को व्याधियां नहीं होती और गुरु से सदगति प्राप्त होती है. अगर किसी अयोग्य को गुरु बना लिया तो फिर चौरासी के चक्कर में पड़ना पडेगा।
गुरु गुरु में भेद है, गुरु गुरु में भाव
सोईं गुरु नित वंदिए, शब्द बतावे दाव
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु शब्द एक ही पर फिर भी गुरु कहलाने वाले लोगो के कर्मों के आधार पर उनमें अंतर होता है. ऐसे व्यक्ति को बुरु बनाना चाहिऐ जो शब्द के दाव बताने की अलावा उसके गूढ़ और भावनात्मक अर्थ बताता है।
Sunday, February 24, 2008
संत कबीर वाणी- हरि रस जैसा कोई रसायन नहीं
तिल इक घटमैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी रसायनों का सेवन कर लिया मैंने मगर हरि-रस जैसी कोई और रसायन नहीं पाई। एक तिल भी घट में शरीर में यह पहुंच जाए तो वह सारा ही कंचन में बदल जाता है।
'कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई
सिर सौंपे सोई पिये, नहीं तौ पीया न जाई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गए हैं, पर इस मदिरा को कोई एक ही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को प्रसन्नता के साथ सौंप देगा।
Saturday, February 23, 2008
संत कबीर वाणी:सोने का मदिरा से भरा पात्र भी निंदनीय
ऊंचे कुल की जनमिया करनी ऊँच न होय
कनक कलश मद सों, भरा साधू निंदा सोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि केवल ऊंचे कुल में जन्म लेने से किसी के आचरण ऊंचे नहीं हो जाते। सोने का घडा यदि मदिरा से भरा है तो साधू पुरुषों द्वारा उसकी निंदा की जाती है।
कोयला भी हो ऊजला जरि बरि ह्नै जो सेव
कनक कलश मन सों, भरा साधू निंदा होय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं भली भांति आग में जलाकर कोयला भी सफ़ेद हो जाता है पर निबुद्धि मनुष्य कभी नहीं सुधर सकता जैसे ऊसर के खेत में बीज नहीं होते।
Thursday, February 21, 2008
मनुस्मृति: आसक्ति रहित लोग ही हो सकते हैं धर्मोपदेशक
२.वेदों में जहाँ दो कथनों में विरोध हो वहाँ विद्वान लोगों को बराबर महत्व देते हुए उचित निर्णय लेना चाहिए।
३.धर्म के चार लक्षण हैं-१.वेदों द्वारा प्रतिपादित २. स्मृतियों द्वारा अनुमोदित ३. महर्षियों द्वारा आचरित 4. जहाँ किसी विषय में एक से अधिक मत हों वहाँ उस धर्म को अपनाने वाले व्यक्ति की आत्मा को प्रिय। इन कसौटियों पर सिद्ध होने वाला ही प्रामाणिक धर्म है।
Wednesday, February 20, 2008
संत कबीर वाणी:हरि हैं हीरा और भक्त है जौहरी
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि हरि ही हीरा है और जौहरी है हरि का भक्त। हीरे को हाट-बाजार में बेच देने के लिए उसने दूकान लगा रखी है। वहीं और तभी उसे कोई उसे खरीद सकेगा।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अनमोल पदार्थ जो मिल गया उसे तो छोड़ दिया और कंकड़ हाथ में ले लिया। हंसों के साथ से बिछुड़ गया और बगुलों के साथ हो लिया।
Saturday, February 16, 2008
चाणक्य नीति:बदहजमी में अच्छा भोजन भी विष होता है
१.स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन जिस प्रकार बदहजमी के अवस्था में लाभ के स्थान पर हानि पहुंचाता है और विष का काम करता है। इस अवस्था में किया गया सुस्वादु भोजन व्यक्ति के लिए प्राणलेवा भी हो सकता है।
२.निरंतर अभ्यास न होने से शास्त्रों से प्राप्त ज्ञान भी मनुष्य के लिए घातक हो सकता है। वैसे तो वह विद्वान होता पर अभ्यास के अभाव में अपने ज्ञान का विश्लेषण नहीं करता इसलिए वह भ्रमित होता है और अवसर आने पर सही ढंग से काम न करने पर उसे उपहास का सामना करना पड़ता है और सम्मानित ज्ञानीव्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु के समान होता है।
३.वृद्ध व्यक्ति यदि किसी युवा कन्या से विवाह कर लेता है तो उसका जीवन मरण के समान हो जाता है। कहा जाता है कि पुरुषों के अपेक्षा स्त्रियों में काम की शक्ति आठ गुना अधिक होती है। हब वृद्ध पति से पत्नी को संतुष्टि नहीं होती वह गुप्त रूप से कहीं और मन लगाने की सोचती है। इसलिए वृद्ध पुरुष को किसी तरुणी से विवाह कर अपना जीवन नरकमय नहीं बनाना चाहिऐ।
४.प्रत्येक अच्छी बुरी वस्तु के लिए सीमा होती है और और उसका अतिक्रमण उसे दुर्गति का शिकार बना देता है.
लोकप्रिय पत्रिकायें
-
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan) - रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके। --- हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...6 years ago
-
पाकिस्तान को मोदी जी से डरना ही चाहिये-संदर्भःभारत पाक संबंध-सामायिक लेख - पाकिस्तानी भले ही परमाणु बम लेकर बरसों से भारतीय हमले से बेफिक्र हैं यह सोचकर कि हम एक दो तो भारत पर पटक ही ल...8 years ago
-
धार्मिक ग्रंथ की बात पहले समझें फिर व्यक्त करें-हिन्दी लेख - अभी हाल ही में एक पत्रिका में वेदों के संदेशों के आधार पर यह संदेश प्रकाशित किया गया कि ‘गाय को मारने या मांस खाने वाले ...9 years ago
-
हिन्दी दिवस पर दीपकबापू वाणी - हृदय धड़के मातृभाषा में, भाव परायी बाज़ार में मत खोलो। कहें दीपकबापू खुशी हो या गम, निज शब्द हिन्दी में बोलो।। ————— दिल के जज़्बात अपने हैं, अपनी जुबां हिन्...9 years ago
विशिष्ट पत्रिकायें
-
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan paa jaate-DeepakbapuWani - *छोड़ चुके हम सब चाहत,* *मजबूरी से न समझना आहत।* *कहें दीपकबापू खुश होंगे हम* *ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।* *----* *बुझे मन से न बात करो* *कभी दिल से भी हंसा...6 years ago
-
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin) - *जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है* *आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।* *कहें दीपकबापू मन के वीर वह* *जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।* *---* *सड़क पर चलकर नहीं देखते...6 years ago
-
रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते-दीपक बापू कहिन (Rank ka naam jaapte bhi raja ban jate-DeepakBapuKahin) - *रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते, भलाई के दावे से ही मजे बन आते।* *‘दीपकबापू’ जाने राम करें सबका भला, ठगों के महल भी मुफ्त में तन जाते।।* *-----* *रुपये से...6 years ago
-
पश्चिमी दबाव में धर्म और नाम बदलने वाले धर्मनिरपेक्षता का नाटक करते रहेंगे-हिन्दी लेख (Convrted Hindu Now will Drama As Secularism Presure of West society-Hindi Article on Conversion of Religion) - हम पुराने भक्त हैं। चिंत्तक भी हैं। भक्तों का राजनीतिक तथा कथित सामाजिक संगठन के लोगों से संपर्क रहा है। यह अलग बात है ...6 years ago