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Saturday, June 21, 2008

एक बेसिर पैर की हास्य कविता

अंतर्जाल पर लिखने वाले
चिट्ठाकार अपनी तुलना करने लगते श्वान से
बिल्ली से करते क्यों शरमाते
प्रतिदिन नजरें गढ़ाये रहते हैं
ब्लागवाणी पर हिट पाने के लिये
और कभी भद्र तो कभी अभद्र
नारे लिख आते
भला इसमें कहां श्वान के लक्षण नजर आते हैं
लिखने को भी भौंकना कैसे कह पाते
पता नहीं कौन शिक्षक और कौन शिष्य
सभी वाद पर वाद लाये जाते

कहैं महाकवि दीपक बापू
‘जब सभी अपने पर ही
लगा रहे उपाधियां
तो क्यों हम भी पीछे रह जायें
आज से हम भी अब स्वयं ही महाकवि हो जायें
यह चिट्ठाकार भी किस दुकान का
चिट्ठा लिख कर आते
दस पंक्ति लिख कर ही
जोरदार हिट पा जाते
उनक्र चिट्ठे और हमारी पत्रिकाओं के
चेहरे एक जैसे लगते
पर अंदर कविता हो या दुकान का हिसाब
रजिस्टर सभी एक जैसे फबते
हम लेखक और संपादक ठहरे
चिट्ठाकारों से बहुत डरते
लिखेंगे चंद शब्द और छा जायेंगे
हम कितना भी लिखें फ्लाप ही रह जायेंगे
हम तो समझाते क्यों कोसते हो अपने आपको
ढूंढ लो अपने अंदर भी प्रतिभा
तो हमारी तरह महाकवि बन जाओगे
ब्लागवाणी पर कम हिट होंगे
अपने ब्लाग का नाम भी अखबार में नहीं
देख पाओगे
पर हमारी तरह आम पाठकों में
हिट होते जाओगे
चिट्ठाकार से अंतर्जाल के प्रसिद्ध लेखक
बनते नजर आओगे
वाद और नारों पर देश चलता रहा है
इसलिये आज भी वहीं खड़ा है
गहन चिंतन नहीं करेंगे
हर विद्वान इसी पर अड़ा है
हम तो देते हैं मुफ्त में सलाह
शायद कभी हमें ब्लागवाणी पर जोरदार हिट मिल जायें
एक दिन तो हिट पायें
और फिर मित्रों में अपना रुतवा दिखायें
यहां तो फ्लाप होकर ही काम चलाते
अपने ऊपर ही कस कर फब्तियां
वाह-वाह की लगी तख्तियां
कितनी देर देंगी शक्तियां
पर चिट्ठाकारों की इस महफिल में
हम साहित्यकार कहां टिक पाते
फिर भी मित्र हैं हमारे
उनकी कुंठाओं पर हास्य कविता लिखकर उनको हंसाते
...................................
नोट-यह एक काल्पनिक हास्य कविता है जो इस फ्लाप पत्रिका को हिट बनाने के लिये विशेष रूप से लिखी गयी है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है अगर किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।

2 comments:

Udan Tashtari said...

प्लॉप काहे की-हिट है जी हिट. आप तो लिखते चलो. शुभकामनाऐं.

Anonymous said...

bhut hi sundar. likhate rhe.

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