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Saturday, October 10, 2009

बेबस क्रंदन-व्यंग्य शायरी (Bebas-vyangya shayri)

वाशिंगटन हो या लंदन
मेलबोर्न हो वैलिंगटन
घिसा जाता है सभी जगह
अपने फायदे का चंदन।
अमन के लिये चारों तरफ नारे लगाये जाते
मगर डालरों में मोह में खुल जाते
दहशतगर्दों के बंधन।
बड़े लोग ढूंढ रहे सभी जगह अपने फायदे,
आम आदमी को काबू करने वास्ते बनाते वही कायदे,
अपनी दौलत शौहरत की रखवाली के लिये
अमीरों ने गरीबों को बनाया गुलाम
तय कर दिये, कागज पर शब्द लिखकर बंधन।
आग लगाकर बुझाने वालों से उम्मीद करना बेकार
न जाने जो हंसना, क्या जाने बेबस का क्रंदन।।

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