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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, April 27, 2014

अपनी अपनी सोच-हिन्दी व्यंग्य कविता(apni apni soch-hindi vyangya kavita)



अपने दोष लोगों को दिखते नहीं
दूसरों के गिरेबां में लोग झांकते हैं,
गैरों धवल कपड़ों पर दाग लगते देखने की चाहत है
अपनी कमीज पर सोने के बटन टांकते हैं।
कहें दीपक बापू हर जगह तमाम विषयों होती बहस
निष्कर्ष कहीं से मिलता नहीं है,
हर कोई जमा है अपनी बात पर
तयशुदा इरादे से हिलता नहीं है,
कान बंद कर लिये अक्लमंदों ने
मौका मिलते ही जुबां से  अपनी अपनी फांकते है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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